रक्षा और पशुकल्याण साथ चलें
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आवारा कुत्तों की समस्या पर कड़ा रुख अपनाते हुए दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह में शेल्टर होम में स्थानांतरित करने का आदेश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आवारा कुत्तों की समस्या पर कड़ा रुख अपनाते हुए दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह में शेल्टर होम में स्थानांतरित करने का आदेश दिया, जहां नसबंदी और टीकाकरण होगा। इसके बाद कुत्तों को सड़कों पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा। शीर्ष अदालत ने 28 जुलाई को दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या, उनके काटने एवं रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर स्वत: संज्ञान लिया था, उसके बाद यह फैसला सुनाया है। इस फैसले पर समाज में दो फाड़ नज़र आ रही है। एक तबका है जो इस फैसले को अधिकाधिक प्रसारित करते हुए जितने आवारा कुत्ते आसपास के इलाकों में दिख रहे हैं, उन्हें फौरन हटाने की मांग कर रहा है। जबकि दूसरे तबके को इस आदेश पर आपत्ति है कि यह बेजुबानों के साथ क्रूरता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से 2011 में आई फिल्म चिल्लर पार्टी का ध्यान आ गया। जिसमें एक रिहायशी इलाके में कार साफ करने वाले बच्चे के साथ रह रहे कुत्ते को हटाने पर शक्तिशाली लोग तुल जाते हैं। हालांकि कुछ लोगों की सहृदयता और सबसे बढ़कर छोटे बच्चों के आंदोलन से आखिरकार उस कुत्ते को कॉलोनी में रहने का हक मिल जाता है। बच्चों का मंत्री महोदय से टीवी पर वाद-विवाद भी होता है, जिसमें वे अपनी स्कूल की नैतिक शिक्षा के किताब के उदाहरण देते हैं। कुत्ते के हक के लिए जब बच्चे सड़क पर निकलते हैं तो उनके हाथों में पोस्टर रहता है- ये दुनिया भिड़ू की भी है।
यही बात दरअसल समाज को समझने की जरूरत है कि इस दुनिया पर, हवा, पानी, जंगल, धरती पर केवल इंसान का हक नहीं है, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी भी इसके उतने ही हकदार हैं। जब इंसान इनका हक छीनता है, तो फिर किसी न किसी तरह उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। बेशक लावारिस पशुओं के होने से बहुत सी दिक्कतें आती हैं, गंभीर दुर्घटनाएं भी होती हैं। लेकिन इसका ये अर्थ नहीं है कि उन्हें बाड़े में बंद कर दिया जाए या मार डाला जाए। कई ऐसे प्रकरण सामने आ चुके हैं जिसमें निरीह पशुओं को बेरहमी से मार दिया गया और उनसे असुविधा का बहाना बता दिया गया। अदालत के आदेश के बाद सड़क के कुत्तों के प्रति क्रूरता खासतौर पर बढ़ेगी, अब ऐसा अंदेशा हो रहा है।
वैसे लावारिस कुत्तों की दिक्कत केवल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ही नहीं है। पूरे देश में लावारिस पशुओं से जुड़ी दुर्घटनाएं हो रही हैं। पिछले साल 2024 में देशभर में 37 लाख से अधिक कुत्ते काटने के मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 5.19 लाख से ज्यादा पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे। अदालत का आदेश खास तौर पर दिल्ली-एनसीआर के लिए है। दिल्ली में हर दिन औसतन 2,000 कुत्तों के काटने की घटनाएं सामने आ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक रेबीज से होने वाली मौतों में से 36 प्रतिशत भारत में होती है, जो इस समस्या की गंभीरता को बताता है। हालांकि इसमें पशुओं का नहीं प्रशासन की निष्क्रियता का दोष है। पशु जन्म नियंत्रण नियम 2023 के तहत नसबंदी और टीकाकरण के बावजूद दिल्ली में 10 लाख लावारिस कुत्तों में से आधे से भी कम की नसबंदी हुई, जिससे आबादी नियंत्रण में विफलता दिखी। दरअसल इस काम के लिए प्रशिक्षित और योग्य लोगों की भारी कमी है। अदालत भी इस बात को जानती है। उसने दिल्ली सरकार को वैक्सीन स्टॉक और इलाज की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। साथ ही 5,000 कुत्तों की क्षमता वाले शेल्टर होम बनाने और प्रशिक्षित कर्मचारियों की तैनाती करने का निर्देश दिया गया है।
अदालत ने आदेश तो दिया है, लेकिन विचारणीय है कि दो महीनों में एकदम से कितने लोगों को इसके लिए प्रशिक्षित कर नियुक्त किया जा सकता है। राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दशकों से चली आ रही मानवीय और साइंटिफिक पॉलिसी से पीछे ले जाने वाला कदम बताया है। उनका कहना है कि ये बेज़ुबान आत्माएं कोई 'समस्या' नहीं हैं, जिन्हें मिटाया जा सके। आश्रय, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल के जरिये सड़कों को बिना किसी क्रूरता के सुरक्षित रखा जा सकता है। इस पर पूरी तरह पाबंदी क्रूर-अदूरदर्शी है और हमारी करुणा को खत्म करता है। हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जन सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों कैसे एक साथ-साथ चलें।
यही लक्ष्य होना चाहिए कि लोग सुरक्षित रहें और पशुओं पर अत्याचार न हो। मेनका गांधी ने भी कहा है कि , 'दिल्ली में तीन लाख आवारा कुत्ते हैं। उन सभी को पकड़कर शेल्टर होम भिजवाया जाएगा। उनको सड़कों से हटाने के लिए दिल्ली सरकार को 1 हजार या 2 हजार शेल्टर होम बनाने होंगे। क्योंकि ज्यादा कुत्तों को एक साथ नहीं रखा जा सकता। सबसे पहले तो उसके लिए जमीन तलाशनी होगी। इस पर 4-5 करोड़ के करीब खर्च आएगा। क्योंकि हर केंद्र में केयरटेकर, खाना बनाने वाले और खिलाने वाले, और चौकीदार की व्यवस्था करनी होगी।'
मेनका गांधी की आशंका वाजिब है, क्योंकि एमसीडी के पशु चिकित्सा सेवाएं विभाग के पास मात्र 648 कर्मचारी और अधिकारी के पद स्वीकृत हैं। साथ ही कुत्तों को पकड़ने के लिए 24 वैन हैं। एमसीडी के पास 20 बंध्याकरण केंद्र हैं, उनमें में एक समय में मात्र चार हजार कुत्तों को रखने की ही क्षमता है। इन्हें स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से संचालित किया जाता है। इनमें हर माह करीब 15 हजार आवारा कुत्तों का बंध्याकरण किया जाता है। नोएडा में भी अभी एक ही शेल्टर होम है, जबकि तीन बनाने प्रस्तावित है। फरीदाबाद में एक भी शेल्टर होम नहीं है।
शेल्टर होम बनाना, कुत्तों के लिए योग्य स्टाफ, खान-पान, चिकित्सीय जरूरत इन सब पर करोड़ों रूपए महीने के खर्च होंगे, जिसके लिए अभी फंड नहीं है। माननीय अदालत को इसमें अंबानी के वनतारा जैसे केंद्रों से मदद की सलाह भी देनी चाहिए थी। जिन लोगों ने पूरा जंगल बनाकर देश-विदेश के जानवरों को वहां पाल लिया, वे हर महीने कुछ करोड़ रुपए लावारिस कुत्तों पर भी खर्च करें तो समाज की मदद हो जाएगी। वैसे लावारिस पशुओं में केवल कुत्ते नहीं, बंदर, सांड सबके कारण दुर्घटनाएं होती रही हैं। यहां राहुल गांधी के जनसुरक्षा और पशुकल्याण के सूत्र को समझने की जरूरत है।


