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ग्रेट स्मॉग 1952: लंदन की वो धुंध जिसने 5 दिनों में ही लील ने हजारों जान

दिसंबर 1952 की शुरुआती ठंड में लंदन हमेशा की तरह धुएं, कोहरे और औद्योगिक धूल से घिरा हुआ था

ग्रेट स्मॉग 1952: लंदन की वो धुंध जिसने 5 दिनों में ही लील ने हजारों जान
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नई दिल्ली। दिसंबर 1952 की शुरुआती ठंड में लंदन हमेशा की तरह धुएं, कोहरे और औद्योगिक धूल से घिरा हुआ था, लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि 4 दिसंबर की सुबह से कुछ बदलाव दिखने लगा था लेकिन अगले दिन यानी 5 दिसंबर को इसका रूप ही बदल गया। यह धुंधला दौर दुनिया के पर्यावरण इतिहास का सबसे भयावह अध्याय बन जाएगा। इसे बाद में ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन कहा गया।

एक ऐसा जहरीला मिश्रण जिसमें धुआं, कोयले की राख, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पानी की बारीक बूंदें शामिल थीं। यह धुंध इतनी घनी थी कि लोग अपने ही घरों में सामने रखी वस्तुएं तक नहीं देख पा रहे थे। सड़कें ठप हो गईं, बसें-ट्राम रुक गईं, और अस्पतालों में अचानक सांस संबंधी रोगियों की भीड़ टूट पड़ी।

यह स्मॉग सामान्य स्थिति नहीं था; यह मानव-निर्मित प्रदूषण और असामान्य मौसम के खतरनाक मेल का नतीजा था। उस दौर में लंदन की अधिकतर चिमनियों, फैक्ट्रियों और घरों में निम्न-गुणवत्ता वाले “पीले कोयले” (लो ग्रेड सल्फर कोल) का बड़े पैमाने पर उपयोग होता था। 4 दिसंबर को जैसे ही ठंडी हवा ने शहर को ढका, तापमान कुछ अलग सा हो गया। एंटी साइक्लोन वेदर सिस्टम ने पूरे शहर को अपनी आगोश में ले लिया। ऊपरी लेयर की गर्म हवा ने नीचे की ठंडी हवा को रोक दिया। प्रदूषक ऊपर उठ नहीं सके और पूरे शहर पर एक मोटी, दमघोंटू चादर की तरह बैठ गए।

इस घने स्मॉग ने केवल कुछ घंटों में हल्की तकलीफ को गंभीर संकट में बदल दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक अगले 5 दिनों में ही शहर में मौतों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। लोग सीढ़ियां चढ़ते हुए बेहोश हो जाते, बाहर चलना असंभव था। दमा, ब्रोंकाइटिस और हृदय-रोग से पीड़ित मरीजों की हालत सबसे पहले बिगड़ी। आधिकारिक अनुमानों में शुरुआती तौर पर लगभग 4,000 मौतें बताई गईं, लेकिन बाद में किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों—खासकर 2004 में यूके हेल्थ प्रोटेक्शन एजेंसी और किंग्स कॉलेज लंदन की संयुक्त समीक्षा से स्पष्ट हुआ कि कुल मृतकों की संख्या 12,000 के आसपास थी।

यह घटना केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी; यह चेतावनी थी कि अनियंत्रित औद्योगिक विकास, खराब ईंधन, और शहरी प्रदूषण किस तरह एक आधुनिक महानगर को मौत के कुहासे में बदल सकता है।

ग्रेट स्मॉग ने ब्रिटेन की राजनीति और समाज को झकझोर दिया। इसी घटना के बाद 1956 में ब्रिटेन ने क्लीन एयर एक्ट लागू किया, जिसने घरेलू कोयले के उपयोग को सीमित किया, “स्मोकलेस जोन” बनाए और उद्योगों को स्वच्छ ईंधन अपनाने के लिए बाध्य किया। पर्यावरण नीति का यह एक ऐतिहासिक मोड़ था, जिसने आगे चलकर दुनिया भर के देशों को शहरी प्रदूषण के खिलाफ कानून बनाने के लिए प्रेरित किया।


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