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'संचार साथी' ऐप को लेकर छिड़ा विवाद, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी बोले - तानाशाही के अंतिम छोर पर पहुंच चुकी सरकार

दूरसंचार विभाग द्वारा सभी नए मोबाइल फोन में 'संचार साथी' ऐप प्री-इंस्टॉल करने को अनिवार्य बनाने को लेकर विवाद छिड़ गया है। इसको लेकर कांग्रेस नेताओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सरकार पर नागरिकों की प्राइवेसी में हस्तक्षेप करने और संसद में चर्चा से बचने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार जवाबदेही से भाग रही है और विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है।

संचार साथी ऐप को लेकर छिड़ा विवाद, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी बोले - तानाशाही के अंतिम छोर पर पहुंच चुकी सरकार
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'संचार साथी' ऐप पर विवाद, प्रमोद तिवारी बोले- ये तानाशाही की ओर कदम

नई दिल्ली। दूरसंचार विभाग द्वारा सभी नए मोबाइल फोन में 'संचार साथी' ऐप प्री-इंस्टॉल करने को अनिवार्य बनाने को लेकर विवाद छिड़ गया है। इसको लेकर कांग्रेस नेताओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सरकार पर नागरिकों की प्राइवेसी में हस्तक्षेप करने और संसद में चर्चा से बचने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार जवाबदेही से भाग रही है और विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है।

कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि यह सरकार धोखे और संसदीय परंपराओं के टूटने की मिसाल बन चुकी है। दो दिन पहले सरकार ने कहा था कि सुबह नौ बजे तक हम बता देंगे कि बैठक कब होगी, कहां होगी और एजेंडा क्या होगा। लेकिन जब आज विपक्ष ने महत्वपूर्ण सवाल उठाए तो सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।

सरकार के नए ऐप पर पूछे गए सवाल पर भी प्रमोद तिवारी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह ऐप निजता के अधिकार पर सीधा हमला है। सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि यह हर नागरिक का मूल अधिकार है, लेकिन सरकार ऐसा ऐप लेकर आई है जिससे किसी की भी प्राइवेसी सुरक्षित नहीं रहेगी।

उन्होंने पूछा कि क्या आप नागरिकों की निजी बातचीत सुनेंगे? पति-पत्नी की बातें टैप करेंगे? राजनीतिक विरोधियों के फोन सुनेंगे? अगर यह सब होता है, तो लोकतंत्र और तानाशाही में फर्क ही क्या रह जाएगा? प्रमोद तिवारी का कहना है कि सरकार नागरिकों पर निगरानी बढ़ाकर लोकतंत्र को कमजोर करने की दिशा में बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि सरकार अब तानाशाही के अंतिम छोर पर पहुंच चुकी है।

उन्होंने बीएलओ के मुद्दे पर भी सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि कितने बीएलओ आत्महत्या कर चुके हैं, कितने जान गंवा चुके हैं, लेकिन सरकार को इसकी परवाह तक नहीं। उन्होंने किसानों के आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि जब 900 किसान मारे गए तब जाकर सरकार जागी थी। अब जब बीएलओ मर रहे हैं, तो सरकार कब चर्चा कराएगी? संसद आखिर चर्चा और निर्णय लेने के लिए ही बनी है, लेकिन सरकार चर्चा से बच रही है।

इसके बाद कांग्रेस सांसद तनुज पुनिया ने भी निजता को लेकर सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत राइट टू प्राइवेसी सबका अधिकार है, लेकिन सरकार बार-बार ऐसे कदम उठा रही है जो लोगों की निजी जानकारी में दखल देते हैं।

तनुज पुनिया ने पेगासस मामले का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार पहले भी ऐसी जासूसी कर चुकी है और अब नए ऐप्स और सिस्टम के बहाने वही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। उन्होंने कहा कि यह सीधे-सीधे संविधान और बाबासाहेब अंबेडकर की विचारधारा का अपमान है।

वहीं, कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव आयोग पर दबाव बनाकर चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। सत्ता में रहने के लिए भाजपा साम-दाम, दंड-भेद, यंत्र, मंत्र, तंत्र हर हथकंडा अपना रही है। मतदाता सूची में गड़बड़ी से लेकर काले धन के इस्तेमाल तक, हर तरह का खेल चल रहा है। लोकतंत्र में सबसे जरूरी चीज होती है निष्पक्ष चुनाव, लेकिन आज वह बिल्कुल नहीं दिख रहा है।

हुड्डा का कहना है कि एसआईआर प्रक्रिया को लेकर तमाम सवाल हैं, लेकिन उन सवालों का जवाब सरकार की तरफ से नहीं दिया जा रहा। उन्होंने मांग की कि इस पूरे मामले पर खुलकर बहस होनी चाहिए, पारदर्शिता लानी चाहिए और देश को ये बताया जाना चाहिए कि चुनाव प्रक्रिया में क्या हो रहा है। उनका आरोप है कि सरकार बहस से बच रही है और विपक्ष की बात सुनने को तैयार नहीं।


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