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कांग्रेस को नहीं मिला जीत का फार्मूला

पिछले आम चुनाव के बाद से लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस ने इस साल चुनावी गठबंधन के नये प्रयोग किये

कांग्रेस को नहीं मिला जीत का फार्मूला
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नयी दिल्ली। पिछले आम चुनाव के बाद से लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस ने इस साल चुनावी गठबंधन के नये प्रयोग किये लेकिन हालात नहीं बदले और 2017 के दौरान सात राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ एक ही जीत नसीब हो सकी हालांकि साल के अंत में राहुल गांधी के विधिवत पार्टी की बागडोर संभालने और गुजरात में संतोषजनक प्रदर्शन से पार्टी में नये जोश का संचार हुआ है।

साल की शुरुआत में कांग्रेस उपाध्यक्ष के तौर पर गांधी ने जोशीले युवा नेताओं के साथ गठबंधन का नया प्रयोग पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किया और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा ,लेकिन वहां यह प्रयोग असफल रहा।

साल के अंत में गुजरात में भी नया फार्मूला अपनाया और वहां पाटीदारों के युवा नेता हार्दिक पटेल, दलितों के युवा नेता जिग्नेश तथा पिछड़ों के युवा नेता अल्पेश ठाकोर को साथ लिया। वहां भी उसे जीत तो नहीं मिली लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गृहराज्य में कड़ी टक्कर देने में कामयाब रही। इससे पार्टी में उम्मीद का संचार हुआ है।

पार्टी के हाथ से राज्यों का निकलना इस वर्ष भी जारी रहा। कभी पूरे देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब सिर्फ चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में सिमट कर रह गयी है।

इस समय उसके पास पंजाब और कर्नाटक दो बड़े राज्य हैं। कर्नाटक में अगले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं। वहां अपनी सरकार को बचाये रखना उसके लिए नये वर्ष की पहली चुनौती होगी।

भाजपा और मोदी सरकार को पार्टी इस साल नोटबंदी, जीएसटी सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर संसद से सड़क तक घेरती रही। नोटबंदी और जीएसटी से होने वाली दिक्कतों को उसने संसद में जोरशाेर से उठाया और इसको लेकर भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला किया। नोटबंदी के मुद्दे पर उसने सिर्फ भाजपा और मोदी सरकार को ही नहीं घेरा बल्कि रिजर्व बैंक पर भी सरकार की कठपुतली बनकर काम करने का आरोप लगाया।

जीएसटी पर उसका आरोप है कि मोदी सरकार ने इसकी मूल अवधारणा के विपरीत इसे जल्दबाजी में लागू किया जिससे अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हुआ। इससे छोटे और मझौले कारोबारियों का काम ठप हो गया। उसका दावा है कि इन खामियों को दूर करने के लिए सरकार को गुजरात चुनाव के बीच इसमें बड़ा सुधार करना पड़ा।


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