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'इंडिया' के समक्ष चुनौतियां और अवसर

शनिवार को घोषित लोकसभा चुनाव ऐसी परिस्थितियों में होने जा रहे हैं जिनमें एक तरफ तो योजनाबद्ध तरीके से सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने खजाने को लबालब कर रखा है

इंडिया के समक्ष चुनौतियां और अवसर
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शनिवार को घोषित लोकसभा चुनाव ऐसी परिस्थितियों में होने जा रहे हैं जिनमें एक तरफ तो योजनाबद्ध तरीके से सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने खजाने को लबालब कर रखा है, तो वहीं दूसरी ओर सुनियोजित षड्यंत्र के तहत अपने प्रमुख विपक्षी दल व मुख्य चुनौती देने वाली पार्टी कांग्रेस के वित्तीय संसाधनों को इस तरह अवरूद्ध कर दिया है कि वह उनका प्रचार के लिये इस्तेमाल ही न कर सके।

हालांकि संवैधानिक रूप से सभी दलों को चुनाव लड़ने के लिये एक सी परिस्थितियां मुहैया कराने का दावा वह संस्था कर रही है जो देश में निर्वाचन करने के लिये संविधान की ओर से अधिकृत व उत्तरदायी है- केन्द्रीय निर्वाचन आयोग। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस एवं अप्रत्यक्ष रूप से कहें तो संयुक्त प्रतिपक्ष यानी 'इंडिया' गठबन्धन के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां एवं अवसर लोकसभा चुनाव- 2024 को लेकर हैं।

चुनावी कार्यक्रम उसी दिन घोषित हुआ है जिस दिन राहुल गांधी ने अपनी लगभग 6700 किलोमीटर की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' का समापन मुम्बई में किया। मणिपुर से 14 जनवरी को निकली यह यात्रा उनकी 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से निकलकर कश्मीर में 30 जनवरी, 2023 को समाप्त हुई 'भारत जोड़ो यात्रा' का दूसरा संस्करण थी। इसके समापन अवसर पर उन तमाम विपक्षी दलों के बड़े नेताओं द्वारा मुम्बई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में एक बड़ी रैली के आयोजन ने यह साफ संदेश दे दिया है कि कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज़ करने, प्रतिपक्षी नेताओं पर छापेमारी कर उन्हें जेल भेजने तथा विपक्षी दलों के नेताओं-प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त के बाद भी इंडिया गठबन्धन न केवल अटूट है बल्कि वह चुनाव में जाने को उत्सुक है। राहुल की पहली यात्रा शुरू तो हुई थी लोगों में विभाजन को रोकने एवं उन्हें जोड़ने (जिसे 'नफरत के खिलाफ मोहब्बत की दूकान' बतलाया गया और प्रारम्भ में जिसका मज़ाक भी उड़ाया गया था) के प्रयासों से, लेकिन इस दौरान उभरे मसलों ने ऐसे जनविमर्श का रूप ले लिया जो न केवल उसके बाद के सियासी परिदृश्य की बुनियाद बना बल्कि उसने ही दूसरी यात्रा का औचित्य भी तैयार किया। इसमें कांग्रेस ने राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की मांग की।

कहने को ये तीन शब्द ही हैं पर इनके जरिये एक विस्तृत चुनावी एजेंडा तैयार कर लिया गया। इनसे न केवल अनेक नाकामियों व भाजपा के प्रहारों से पस्त कांग्रेस में जान लौटी वरन राहुल की छवि को जिस तरह से एक कुटिल, प्रदीर्घ और महंगे अभियान के तहत बिगाड़ा गया था, उसका भी पर्दाफाश हुआ। लोग जान गये कि इसके पीछे भाजपा व उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मंशा क्या थी। जनता के सामने अब सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया है कि पहले 'कांग्रेस मुक्त भारत' और फिर 'विपक्ष मुक्त भारत' का नारा देने वाली भाजपा का उद्देश्य राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक शक्तियों को अपने हाथों में लेना है। पूंजी आधारित राजनैतिक सत्ता तैयार करने के लिये भाजपा हेतु आवश्यक था कि वह लोगों को किसी न किसी नशे का आदी बनाये। धर्म, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, राष्ट्रवाद का इस्तेमाल उसने मादक द्रव्यों की तरह किया और उसका भरपूर लाभ उठाया। साम्प्रदायिक तनाव, धार्मिक उन्माद और राष्ट्रवाद का जहर बो कर भाजपा ने अनेक राज्यों तथा 2019 की चुनावी फसल काटी।

ये वे मसले थे जिन्हें हल करते हुए ही भारत ने औपनिवेशिक दासता की बेड़ियां काटकर सम्प्रभुता हासिल की थी। मोदी व भाजपा-संघ जानते थे कि जब तक लोगों के मन में इस गौरवशाली इतिहास के प्रति सम्मान बना रहेगा, उनके मंसूबे पूरे नहीं हो सकते। इसलिये जनता एवं खासकर नयी पीढ़ी के मन में भ्रामक कहानियां गढ़ते हुए उस सम्पूर्ण विरासत को ही बदनाम किया गया। भारत के संवैधानिक मूल्यों को देश की कमजोरी बतलाते हुए ऐसे नये भारत का स्वप्न दिखाया गया जिसमें बहुसंख्यकों का वर्चस्व हो।

अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिमों-ईसाइयों के प्रति घृणा का माहौल बनाया गया। इसके लिये धर्म का राजनीति में बड़े पैमाने पर प्रवेश कराया गया। देश को ऐसे दो धड़ों में बांटा गया जिसमें एक ओर उन लोगों को धार्मिक व उसके जरिये देशभक्त बताया गया जो भाजपा के समर्थक हैं और दूसरे खांचे में सारे देश को बैठाया गया। इन स्थितियों में जब विपक्ष के पास भाजपा के पैंतरों की कोई काट नहीं थी, तब राहुल की दो यात्राओं ने लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष व प्रगतिशील ताकतों को राह दिखाई। उन्हें हौसला भी मिला। फिर, जैसे-जैसे राहुल की यात्राओं, उनके लोकसभा में दिये भाषणों, सभाओं, प्रेस कांफें्रस एवं अन्य तरह से होते खुलासों से लोगों की आंखें खुलती गईं, मोदी व भाजपा की मुश्किलें बढ़ने लगीं। इतना ही नहीं, जिस कांग्रेस से कई दल परहेज कर रहे थे, वे भी अंतत: उसकी छतरी तले आ गये। यह दीगर बात है कि कुछ लोग धोखा दे गये (नीतीश कुमार, जयंत चौधरी आदि) और ऐसे कुछ लोग शामिल नहीं हुए, जिनसे अपेक्षा थी (मायावती आदि)।

बहरहाल, एक ओर तो भाजपा के राममंदिर, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), यूसीसी जैसे साम्प्रदायिक मुद्दे नाकाम हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अनेक नाकामियों, भ्रष्टाचार, कारोबारियों से उनकी नज़दीकियों, चुनावी कदाचारों और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर हुई किरकिरी से मोदी की लोकप्रियता में व्यापक ह्रास हुआ है। इन तमाम मुद्दों के साथ कांग्रेस व विपक्ष ने भाजपा के सामने इतनी कड़ी चुनौती पेश की है कि भाजपा भी जान गई है कि परिस्थितियां वैसी अनुकूल नही है जैसी 2019 में थी। अनैतिक कार्रवाइयों व धन बल के बावजूद इंडिया के सामने भाजपा को सत्ता से हटाने का बड़ा अवसर है क्योंकि वह एकजुट है और उसके नेताओं के मन से केन्द्रीय जांच एजेंसियों का भय नहीं रह गया है। सीटों के समझदारीपूर्ण बंटवारे एवं चुनाव प्रचार में तालमेल बिठाकर विपक्ष चमत्कारिक उलटफेर कर सकता है।


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