केंद्र और बिहार सरकार वोट की राजनीति में मस्त : अनिल कुमार
जनतांत्रिक विकास पार्टी (जविपा) के अध्यक्ष अनिल कुमार ने यहां शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार और बिहार सरकार सिर्फ वोट की राजनीति में मस्त है

पटना। जनतांत्रिक विकास पार्टी (जविपा) के अध्यक्ष अनिल कुमार ने यहां शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार और बिहार सरकार सिर्फ वोट की राजनीति में मस्त है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बिहार आए जरूर, मगर सिर्फ राजनीति कर लौट गए। उन्हें इसकी चिंता नहीं है कि यहां के लोग किस हाल में रह रहे हैं। संवाददाताओं से मुखातिब जविपा प्रमुख ने कहा, "शाह को कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश की जनता किस हाल में है। तभी तो कुर्सी के लिए एक ओर नीतीश कुमार शाही भोज में शाह को बुलाते हैं और दूसरी ओर राज्य में आर्थिक तंगी से तबाह लोग आत्महत्या कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि रोहतास के बैरपुरा गांव में आर्थिक तंगी से परेशान महिला कंचन कुंवर ने अपने 13 साल के बेटे के साथ आत्महत्या कर ली। सरकार की गलत नीतियों के कारण गरीब और गरीब, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। सिर्फ बिहार में नहीं, सारे देश में यही हाल है।
कुमार ने कहा कि अमित शाह बिहार की राजनीति के शतरंज पर अपनी बिसात बिछाने आए थे, बिछाकर चले गए। उनके एजेंडे में बिहार का विकास और बिहार में किसान, छात्र, मजदूर, दलित, महादलित, युवा, रोजगार व महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध को जगह नहीं मिली। उन्हें बताना चाहिए था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और ढाई साल पहले चुनावी रैली में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित सवा लाख करोड़ का विशेष पैकेज कब मिलेगा?
उन्होंने नीतीश कुमार को नसीहत देते हुए कहा कि उन्हें शाह से डिनर टेबल पर ही निडर होकर बिहार का हक मांगना चाहिए था। नीतीश बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर जनता को सिर्फ बरगला रहे हैं।
अनिल कुमार ने नियोजित शिक्षकों के मामले में केंद्र और राज्य सरकार को घेरते हुए कहा कि बिहार के 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों को केंद्र से उस समय निराशा हाथ लगी, जब केंद्र सरकार ने बिहार सरकार का समर्थन करते हुए समान कार्य के लिए समान वेतन का विरोध किया।
उन्होंने कहा कि बीते दिनों दर्जनभर से ज्यादा दुष्कर्म की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। समाचारपत्रों की रिपोर्ट के अनुसार, सीआईडी कमजोर वर्ग के आंकड़े कहते हैं कि हर साल राज्य से 2000 से अधिक बच्चियां गायब हो रही हैं।
जविपा प्रमुख ने कहा कि प्रधानमंत्री की पहल पर सांसदों द्वारा गांवों को गोद लिया गया था, उन गांवों की हालत आज चार साल बाद भी क्यों बदहाल है?


