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कुपोषण दूर करने में सब्जियों की महत्वपूर्ण भूमिका

भारतीय परिस्थितियों में यदि पोषण सुधारने का कोई एक सबसे सक्षम उपाय चुनना हो तो वह है सब्जियों की निर्धन परिवारों व जनसाधारण को अधिक उपलब्धि

कुपोषण दूर करने में सब्जियों की महत्वपूर्ण भूमिका
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सृजन संस्था की ओर से जहां ऐसी खेती के लिए तकनीकी सहायता, बीज व विभिन्न साज-सामान के रूप में सहायता दी जाती है, वहां मिट्टी व जल संरक्षण के कार्यों का योगदान भी कम नहीं है। जल-संरक्षण कार्यों जैसे तालाब से मिट्टी-गाद हटाने से बेहतर सिंचाई उपलब्ध होती है। तालाबों से निकली मिट्टी-गाद से खेत का उपजाऊपन बढ़ता है। कुछ किसानों को प्राकृतिक कृषि केन्द्र स्थापित करने की सहायता दी जाती है जहां गोबर, गोमूत्र आदि की खाद व हानिकारक कीटों से बचाव के उत्पाद तैयार किए जाते हैं।

भारतीय परिस्थितियों में यदि पोषण सुधारने का कोई एक सबसे सक्षम उपाय चुनना हो तो वह है सब्जियों की निर्धन परिवारों व जनसाधारण को अधिक उपलब्धि। सभी सब्जियों में कम या अधिक पोषण गुण है और यदि विविध सब्जियां पर्याप्त मात्रा में नियमित तौर पर भोजन में शामिल रहें तो पोषण का संतुलन अपने आप बना रहता है। विभिन्न विटामिन व खनिज तत्त्वों की उपलब्धि के लिए सब्जियां सबसे बेहतर स्रोत हैं। फाईबर भी उनसे अच्छा उपलब्ध होता हे। सब्जियों से हमें वे एंटीआक्सीडेंट प्राप्त होते हैं जो बीमारी व संक्रमण से रक्षा करने में बहुत सहायक हैं। विभिन्न सब्जियां कुछ विशेष रोगों व स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने में या उनके उपचार में सहायक हैं। आंखों के स्वास्थ्य की ही बात करें तो गाजर व हरी पत्तीदार सब्जियां इसके लिए विशेष लाभदायक हैं।

इधर सब्जियों के स्वास्थ्य गुणों पर एक सवाल भी उठाया गया है कि अधिक कीटनाशक दवाओं व रासायनिक खाद के उपयोग से इनके स्वास्थ्य गुणों में कमी आती है व कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। अत: प्राकृतिक खेती से प्राप्त सब्जियों को ही स्वास्थ्य व पोषण की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है।

इस संदर्भ में देखें तो सृजन संस्था द्वारा सब्जी का उत्पादन प्राकृतिक कृषि पद्धति से बढ़ाने के अभियान का स्वागत होना चाहिए, विशेषकर यह देखते हुए कि इसमें छोटे किसानों को और उनमें भी महिला किसानों को प्राथमिकता दी गई है। निर्धन आदिवासी व दलित किसानों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस तरह न केवल पौष्टिक सब्जियों के उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है, अपितु यह ऐसे किसानों के खेतों पर विशेष तौर पर बढ़ाया जा रहा है जिनके परिवार को बेहतर पोषण की अधिक जरूरत है।

इस संदर्भ में एक सवाल यह उठता है कि छोटे किसानों के पास तो कम भूमि है जिस पर उन्हें अपनी जरूरत का अनाज, दलहन आदि भी उगाना है तो फिर उनके पास अधिक सब्जी उगाने के लिए कृषि भूमि कैसे उपलब्ध होगी। इस समस्या को सुलझाने के लिए सृजन ने मल्टी लेयर या बहु-स्तरीय सब्जी की खेती का प्रसार किया है जिसमें विभिन्न स्तरों पर तरह-तरह की सब्जियां एक साथ उगाई जाती हैं, कुछ जमीन के नीचे, कुछ सब्जियां छोटे पौधों पर, कुछ बड़े पौधों पर तो कुछ ऊपर की ओर बेल के ऊपर रहती हैं। इसके लिए बांस, रस्सी व तार लगाकर बेलों को ऊपर तक बढ़ने का सहारा दिया जाता है जिनसे उनमें लगी सब्जी अधिक सुरक्षित भी रहती है। ऐसे बगीचों को प्रतिकूल मौसम व पशुओं से सुरक्षित भी किया जाता है।

ऐसे बगीचे के नियोजन में इस विषय की बड़ी समझ होती है कि किस पौधे को किस के साथ लगाना उचित है, मिट्टी के पोषण की दृष्टि से कैसा मिलन उचित है, कौन सा कोमल पौधा किसी बड़े पौधे की छाया में पनप सकता है आदि। इस तरह की समझ, निष्ठा और मेहनत के आधार पर बहुत से किसान बहुत कम भूमि में ही विविध तरह की सब्जियों का अच्छा उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। मौसम के अनुसार विभिन्न सब्जियां अलग-अलग समय पर बिक्री के लिए भी उपलब्ध होती रहती हैं व इस तरह आय की निरंतरता भी बनी रहती है।

सृजन संस्था की ओर से जहां ऐसी खेती के लिए तकनीकी सहायता, बीज व विभिन्न साज-सामान के रूप में सहायता दी जाती है, वहां मिट्टी व जल संरक्षण के कार्यों का योगदान भी कम नहीं है। जल-संरक्षण कार्यों जैसे तालाब से मिट्टी-गाद हटाने से बेहतर सिंचाई उपलब्ध होती है। तालाबों से निकली मिट्टी-गाद से खेत का उपजाऊपन बढ़ता है। कुछ किसानों को प्राकृतिक कृषि केन्द्र स्थापित करने की सहायता दी जाती है जहां गोबर, गोमूत्र आदि की खाद व हानिकारक कीटों से बचाव के उत्पाद तैयार किए जाते हैं।

इस तरह अगर सब्जियों की बगिया में प्राकृतिक पद्धति अपनाने से सहायता मिलती है वहां यह संभावना भी बढ़ जाती है कि जल-संरक्षण और प्राकृतिक खेती का यह मिलन किसानों को इतना पसंद आ जाए कि वह अपनी पूर्ण खेती के लिए भी इसे अपना लें।

चित्रकूट जिले के मऊ ब्लाक में कोल बस्तियों गुइयां खुर्द और गुईयां कलां में भी इसी मिलन से आदिवासी किसानों ने प्रगति की है। यहां के जल-संरक्षण कार्यों में लगभग 10 लाख रुपए का खर्च आया जिनमें से 70 प्रतिशत तक तो इन आदिवासी परिवारों में मजदूरी के रूप में वितरित हो गए।

इस कार्य की सफलता के लिए इन परिवारों की नजदीकी भागेदारी प्राप्त की गई व उन्हें गांव विकास समितियों के रूप में संगठित किया गया। इसके साथ प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया गया। इस तकनीक से खर्च बहुत कम होने की संभावना ने भी इन छोटे किसानों को आकर्षित किया।

श्याम पहले मजदूर के रूप में इधर-उधर भटक रहा था, पर अब यह नए अवसर उपलब्ध होने पर उसने अपनी खेती सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया। उसकी पत्नी सविता सब्जी की खेती में नेत्तृत्व देने वाली महिला के रूप में सामने आई। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें सृजन ने एक सोलर पंप की सुविधा भी उपलब्ध करवाई।

इसी प्रखंड में लपांव गांव में भी इस प्रयास ने अच्छी प्रगति की। किरण ने अपना छोटा पर अति उत्पादक बगीचा गर्व से दिखाया। यहां बंदरों से रक्षा के लिए सृजन ने एक हरा नेट भी उपलब्ध करवाया है। परिवार के सभी सदस्य मिल कर यहां बहुत मेहनत व निष्ठा से सब्जियां उगाते हैं। किरण ने बताया कि प्राकृतिक पद्धति से उत्पादित सब्जी की गुणवत्ता इतनी अच्छी मानी जा रही है कि व्यापारी बगीचे तक पहुंचकर सब्जी खरीद कर ले जाते हैं। किरण के ससुर ब्रज बिहारी ने बताया कि कुछ सप्ताह पहले तक उनकी आंख इतनी कमजोर हो गई थी कि आप्रेशन करवाने की बात चल रही थी, पर अपने बगीचे में उत्पन्न सब्जी व विशेषकर चौलाई खाने से आंखों में बहुत तेजी से सुधार हो गया। इस परिवार ने घर के पास एक किचन गार्डन व फलों को छोटा बगीचा भी तैयार किया है।

इसी गांव में आशा ने घर के पास छोटा सा खाली स्थान देखकर वहां सुंदर किचन गार्डन तैयार कर लिया है। इससे परिवार का पोषण बहुत सुधर गया है व साथ में पड़ौसियों, आने वाले मेहमानों को भी आशा कुछ सब्जी का उपहार देती रही हैं। यहां एक गोलाकार ढंग की ऐसी सिंचाई व्यवस्था बनाई गई है कि सभी पौधों तक पानी पहुंच जाता है।

पुष्पा एक दलित महिला है जिसने अभी किचन गार्डन लगाना शुरू ही किया था पर वह इस प्रयास से बहुत उत्साहित थी। इस तरह कार्यक्रम के आरंभ होने के एक वर्ष के भीतर ही कई परिवार इससे जुड़ गए थे।

इसके अतिरिक्त सृजन ने अन्य सहयोगी संस्थाओं जैसे समाज सेवा संस्थान, अंत्योदय व युवा कौशल विकास मंडल के सहयोग से सब्जी की वाटिकाओं का प्रसार अनेक अन्य गांवों में भी किया है। हमीरपुर जिले (उत्तर प्रदेश) व कुछ अन्य स्थानों पर इन किसान परिवारों ने बताया कि उनके पोषण में भी सुधार हुआ है व वर्ष में विभिन्न समय पर इस प्रयास से कुछ नकद आय भी प्राप्त होती रहती है। मानिकपुर प्रखंड (जिला चित्रकूट) में सब्जी उगाने वाले समुदाय के किसानों ने कहा कि चाहे परंपरागत तौर पर उनका अपना सब्जी उगाने का बहुत अनुभव रहा है, फिर भी प्राकृतिक पद्धति व बहुस्तरीय सब्जी उत्पादन के इस मॉडल में उन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिला है।


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