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राहुल की यात्रा का पहला दौर कामयाब : मगर असली लक्ष्य है बिहार जीतना

राहुल की बिहार यात्रा का पहला दौर खतम हो गया। दूसरा दौर जब भी शुरू हो मगर उससे पहले ही वोट चोरी पूरे देश में मुद्दा बन गई

राहुल की यात्रा का पहला दौर कामयाब : मगर असली लक्ष्य है बिहार जीतना
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  • शकील अख्तर

अब विपक्ष को जो वहां महागठबंधन के नाम से चुनाव लड़ रहा है अपना पूरा ध्यान चुनाव की तैयारी पर लगाना चाहिए। चुनाव आयोग के दांव पेंच चलेंगे। उस पर दबाव पड़ा है। मगर मोदी सरकार की तरफ से दबाव ज्यादा है। जाहिर है कि सत्ता का दबाव ज्यादा काम करेगा बनिस्बत विपक्ष और जनता के दबाव के। लेकिन चुनाव आयोग की साजिशों के बावजूद महागठबंधन को अपना चुनाव पूरी ताकत और कुशलता से लड़ना होगा।

वैराहुल की बिहार यात्रा का पहला दौर खतम हो गया। दूसरा दौर जब भी शुरू हो मगर उससे पहले ही वोट चोरी पूरे देश में मुद्दा बन गई। यही इस यात्रा का पहला उद्देश्य था। देश में जगह-जगह वोट चोरी पर चर्चा होने लगी। बिहार का आदमी देश में हर जगह है। वह बता रहा है कि उसके घर गांव में कितने वोट कटे। जो जिन्दा हैं उनके नाम मुर्दों में लिख दिए और जो कई-कई बार वोट डाल चुके हैं उनके नाम ही गायब हैं। 18, 20, 22 साल के युवा जिनका नाम खोज-खोज कर घर-घर जाकर पहले जोड़े जाते थे उनके नाम ही नहीं हैं।

जागरुकता हर जगह फैल गई है। अब बंगाल में जहां इसके बाद एसआईआर करने का भाजपा सोच रही थी करना मुश्किल होगा। राहुल का यह प्राथमिक उद्देश्य था जो पूरा हो गया। मगर असली उद्देश्य या लक्ष्य चुनाव जीतना होता है। अगर राहुल की इतनी सफल यात्रा जिसमें जनता ने सहभागिता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए बिहार जीत में नहीं बदलती है तो यात्रा बेकार हो जाएगी। इसका उठाया मुद्दा वोट चोरी दम तोड़ देगा।

अब विपक्ष को जो वहां महागठबंधन के नाम से चुनाव लड़ रहा है अपना पूरा ध्यान चुनाव की तैयारी पर लगाना चाहिए। चुनाव आयोग के दांव पेंच चलेंगे। उस पर दबाव पड़ा है। मगर मोदी सरकार की तरफ से दबाव ज्यादा है। जाहिर है कि सत्ता का दबाव ज्यादा काम करेगा बनिस्बत विपक्ष और जनता के दबाव के।

लेकिन चुनाव आयोग की साजिशों के बावजूद महागठबंधन को अपना चुनाव पूरी ताकत और कुशलता से लड़ना होगा। निगाह चुनाव आयोग की धांधलियों पर रखना होगी। सुप्रीम कोर्ट में सही पैरवी करते रहना होगी। जनता को लगातार जागरूक करते रहना होगा और कार्यकर्ताओं को मजबूत करके बूथ लेवल तक पहुंचाना होगा।

आखिरी मैसेज चुनाव नतीजों से ही जाएगा। लड़ाई बराबरी की नहीं है। विपक्ष को लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं मिलेगी। मगर जब तक मोदी है विपक्ष के पास कोई आप्शन नहीं है। इन्हीं हालातों में लड़ना होगा।

पहले तो यह था कि प्रधानमंत्री मोदी को भी चुनाव के जरिए ही हटाया जा सकेगा। मगर पहलगाम के आतंकवादी हमले और उसके बाद अमेरिका के दबाव में सीज फायर ने परिस्थितियां पूरी तरह बदल दी हैं। अभी संसद के खतम हुए मानसून सत्र में मोदी का गिरता हुआ असर साफ दिख रहा था। भाजपा सांसद उस तरह मोदी और अमित शाह के साथ खड़े नहीं दिखे जैसे इससे पहले के सत्रों में दिखते थे। लोकसभा जहां पिछले 11 साल में राहुल गांधी को बोलने नहीं दिया गया।

विपक्ष के हर नेता को हूट किया गया। पूरे विपक्ष को सदन से निष्कासित कर दिया गया वहां मोदी के प्रवेश करने पर वोट चोर गद्दी छोड़ के नारे लगे। अमित शाह के मुंह पर संविधान संशोधन का विपक्ष के मुख्यमंत्रियों को हटाने का बिल फाड़कर फेंका गया।

यह मोदी अमित शाह के डर के खतम हो जाने का परिचायक था। राहुल का पिछले कुछ समय से यही प्रमुख नारा था डरो मत! और डर विपक्ष में खतम हुआ लेकिन इसके साथ सत्ता पक्ष में भी बना डर का माहौल खतम हुआ।

मोदी के 11 साल के शासन का अगर कोई एक आधार था तो वह डर ही था। जिसकी वजह से खुद उनकी पार्टी, सभी संवैधानिक संस्थाएं, मीडिया सब उनके नियंत्रण में रहते थे। अब वह डर खतम हुआ तो मोदी अपने आप कमजोर दिखने लगे। इसलिए जो पहले माना जाता था कि उन्हें केवल चुनाव के जरिए ही हटाया जा सकता है अब माना जाने लगा है कि खुद उनकी पार्टी उनके साथ नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर से लेकर देश में हर जगह उनकी असफलताएं दिखने लगी हैं।

राजनीति में नेता तभी तक स्वीकार्य होता है जब तक वह मजबूत दिखता है। राहुल गांधी का उनकी खुद की पार्टी में विरोध हो गया था। उन्हें अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। पार्टी के 23 बड़े नेताओं ने उनके खिलाफ सोनिया गांधी को पत्र लिखा था। मगर राहुल ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा फिर दूसरी यात्रा करके और विपक्ष में एकजुटता लाकर इंडिया गठबंधन बनाकर मोदी को 2024 के चुनाव में बहुमत लाने से रोक दिया। उसके बाद राहुल न केवल अपनी पार्टी में पूरे विपक्ष में और जनता में मजबूत नेता के तौर स्थापित हो गए।

और दूसरी तरफ उसी काल खंड में मोदी लोकसभा में बहुमत से दूर रहकर, अमेरिका के दबाव में आकर भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ सफलता के निर्णायक क्षणों में रोकने और उसके बाद भी टैरिफ को नहीं रोक पाने के बाद अपना सारा रौब रुतबा खो चुके हैं। बची खुची कसर उनकी चीन यात्रा ने पूरी कर दी।

गलवान में मारे गए हमारे बीस बहादुर सैनिकों की शहादत आंखों के सामने घूम गई। उसके बाद चीन को जो क्लीन चिट दी थी कि न कोई घुसा है न कोई है कि याद आ गई। चीन जाने की जरूरत पर सवाल होने लगे। जो चीन पाकिस्तान के साथ संघर्ष में पूरी तरह उसके साथ खड़ा था। हमारी सेना के उपसेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने कहा कि सामने पाकिस्तान था मगर पीछे चीन लड़ रहा था। अब पाकिस्तान के साथ भारत क्रिकेट मैच खेल रहा है और चीन तो प्रधानमंत्री खुद पहुंच गए। तुर्किए जिस तीसरे देश का नाम सेना ने लिया था कि वह भी पाकिस्तान के साथ लड़ रहा था उससे फिर कारोबार शुरू कर दिया। गोदी मीडिया तक ने हेडिंग लगा दी सरकार का यूटर्न। विदेश नीति पूरी तरह असफल बताई जा रही है।

समस्या यह है कि विदेश नीति देश के लिए होती है। मगर मोदी पिछले 11 साल में अपनी छवि बनाने के लिए विदेश नीति चला रहे थे। अभी लेटेस्ट जापान का उदाहरण सामने है। वहां भारत जापान संबंधों में पलीता लगाकर गोदी मीडिया यह दिखा रहा है कि जापान में भारतीय सुरक्षित नहीं हैं। लेकिन मोदी की वजह से कोई डर नहीं है। यह जापान पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है। वहां भारतीय या विदेशी सुरक्षित नहीं। कोई देश कैसे बर्दाश्त करेगा?

मोदी का नाम रहे। बाकी देश के बारे में लोग क्या सोचेंगे इसकी चिन्ता नहीं। हर देश में जहां मोदी जाते हैं ऐसे ही ड्रामे किए जाते हैं। और इसी का असर है कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष के समय एक देश भी भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ।

यही हालत अब भाजपा के अंदर सवाल पैदा कर रहे हैं। संघ ने अभी उसके सौ साल का जश्न नहीं बिगड़े इसलिए 75 साल की उम्र के मसले को किनारे कर दिया है। मगर इससे सवाल खत्म नहीं होगा। सरसंघ चालक मोहन भागवत मोदी के साथ डूबती नाव का सफर नहीं करेंगे। फिलहाल भाजपा और संघ दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे हैं कि सवाल कहां से उठेंगे। कहीं से भी उठ सकते हैं।

मोदी बहुत कमजोर विकेट पर हैं। ट्रंप के टैरिफ का सामना केवल बातों से नहीं हो सकता। निर्यात होने वाला माल रुका पड़ा है। फैक्ट्रियां बंद होने की नौबत आ गई है। बेरोजगारी के भयानक दिनों में यह गरीबी में आटा गीला जैसी बात हो जाएगी। भाजपा और संघ लंबे समय तक चुप बैठा नहीं रह सकता। देश की प्रतिष्ठा के साथ आर्थिक हालात भी बहुत गंभीर मोड़ पर पहुंच गई है। ऐसे में विपक्ष जरा भी ढील नहीं दे सकता। उसे पासा पलटते हुए दिख रहा है।

राहुल बिहार के बचे हुए जिलों में दूसरी यात्रा की घोषणा कर सकते हैं और उसके बाद मोदी के लिए बिहार बचाना और खुद को बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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