राहुल की तीसरी यात्रा : मोदी जी के लिए बड़ा चैलेंज
गठबंधन के खिलाफ कांग्रेस में कुछ लोग बहुत बोलते हैं। मगर यह वे हैं जो अपनी सीट भी कभी निकाल नहीं पाते

- शकील अख्तर
गठबंधन के खिलाफ कांग्रेस में कुछ लोग बहुत बोलते हैं। मगर यह वे हैं जो अपनी सीट भी कभी निकाल नहीं पाते। राहुल गांधी अब कांग्रेस में निर्णायक भूमिका में हैं। अपनी तीसरी यात्रा शुरू कर दी है। पार्टी में कहीं कोई विरोध तो दूर की बात अब असहमति भी नहीं बची है। यहीं से राहुल को इसका उपयोग करने की जरूरत है। कांग्रेसियों के लिए नहीं।
राहुल की तीसरी यात्रा शुरू। आज के कांग्रेसियों को यह अपना सौभाग्य मानना चाहिए कि उन्हें राहुल जैसा जांबाज नेता मिला। नहीं तो जिस तरह 2011-12 में उन्होंने बिना लड़े अन्ना हजारे जैसे एक नकली आन्दोलनकारी के सामने हथियार डाल दिए थे उसके बाद पार्टी को फिर खड़ा करने की संभावनाएं कम बची थीं। इसीलिए 2014 में आते ही मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने लगे थे। कांग्रेसियों ने भी उसमें सहयोग देते हुए 2019 में राहुल गांधी का अध्यक्ष पद से इस्तीफा ले लिया था।
यह पूरा इतिहास बताना इसलिए जरूरी है कि इस समय मोदी के कमजोर होने के साथ कांग्रेस के जिन नेताओं ने इसमें कुछ नहीं किया उनका अहंकार फिर यूपीए के समय के मुगालतों तक पहुंच गया है। बिहार में राहुल की यात्रा ने कांग्रेसियों की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। पिछले हफ्ते कांग्रेस की स्क्रिनिंग कमेटी पटना गई थी। वहां उसने संभावित उम्मीदवारों से मुलाकात की। अभी 13 और 14 अगस्त को। दो हजार प्रत्याशियों के आवेदन आए हैं। कांग्रेस ने हर सीट पर संभावित उम्मीदवारों का पैनल बनाना शुरू कर दिया है। इन सबमें कोई बुराई नहीं है मगर बस यह याद रखना चाहिए कि यात्रा राहुल और तेजस्वी दोनों की है। लेफ्ट के लाल झंडे भी बड़ी संख्या में शामिल हैं और सामाजिक आधार पर बनीं दूसरी पार्टियां भी।
लेकिन बड़ी ताकत आरजेडी है। अगर चुनाव जीतेगी तो आरजेडी और हारेगी तो वह। कांग्रेस और लेफ्ट सहयोगियों की भूमिका में ही हैं। मजबूत सहयोगी हैं। अपना अलग जनाधार है मगर लीड आरजेडी ही करेगी। लोकसभा के यूपी के चुनाव में कांग्रेस ने वहां के मुख्य दल सपा के साथ ठीक से मिलकर चुनाव लड़ा तो उसकी 6 सीटें आ गईं। सपा की 37 और भाजपा जिसने 2019 में 80 में 63 सीटें जीती थीं नंबर दो की पार्टी बनकर 33 पर रूक गई। मोदी जी को ऐसा झटका लगा कि सामान्य बहुमत भी नहीं मिल पाया। 240 पर रुकना पड़ा।
गठबंधन के खिलाफ कांग्रेस में कुछ लोग बहुत बोलते हैं। मगर यह वे हैं जो अपनी सीट भी कभी निकाल नहीं पाते। राहुल गांधी अब कांग्रेस में निर्णायक भूमिका में हैं। अपनी तीसरी यात्रा शुरू कर दी है। पार्टी में कहीं कोई विरोध तो दूर की बात अब असहमति भी नहीं बची है। यहीं से राहुल को इसका उपयोग करने की जरूरत है। कांग्रेसियों के लिए नहीं। कांग्रेस पार्टी के विचार और नीतियों के लिए। उसके कार्यकर्ताओं के लिए और देश की जनता के लिए। आप यकीन मानिए कि अगर आज की तारीख में जैसा कि मोदी जी चाहते हैं कांग्रेस राहुल विहिन हो जाए तो ये कांग्रेसी 10 टुकड़ों में बंट जाएंगे और इनमें से आधे टुकड़े मोदीजी से जाकर मिल जाएंगे।
मोदी जी और भाजपा जो कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती है वह कांग्रेस मुक्त नहीं राहुल मुक्त या नेहरू गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस की कोशिश करती है। तो राहुल इस समय अपने सर्वश्रेष्ठ फार्म या कह सकते हैं कि अभी तक के राजनीतिक जीवन के सर्वोच्च शिखर पर हैं। पार्टी में भी और विपक्ष में भी। यही वह समय है जब उन्हें असली लक्ष्यों के लिए काम करना शुरू करना चाहिए। पार्टी में लोकतंत्र, उदारता, सख्ती नहीं करना यह सब तब ठीक होता है जब आपकी गाड़ी सही चल रही हो। इस समय तो गाड़ी को पटरी पर लाने की जरूरत है। उनकी एक के बाद एक कोशिशों ने वास्तव में मोदी जी को बैकफुट पर धकेल दिया है। यह सुप्रीम कोर्ट का एसआईआर पर फैसला, चुनाव आयोग की प्रेस कान्फ्रेंस और बिहार की यात्रा में पहले दिन उमड़ी हुई जोशीली भीड़ सब राहुल का प्रभाव बढ़ने का ही नतीजा है।
ऐसे में पहला वास्तविक लक्ष्य बिहार जीतना होना चाहिए। इस समय मोदी के कुछ भी अनुकूल नहीं है। बस कांग्रेस और विपक्ष कोई गलती न करे तो मोदी जी के लिए बिहार चुनाव वाटर लू साबित हो सकता है। यह हार गए तो फिर वापसी करना मुश्किल है। उम्र 75 की हो चुकी होगी। जिसे आधार बनाकर उन्होंने संगठन में सबसे मजबूत नेता रहे लालकृष्ण आडवानी को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया था। भाजपा में वाजपेयी संगठन के बाहर ज्यादा पहुंच रखते थे। मगर संगठन के अंदर तो सारी ताकत आडवानी के पास थी। उन्हें भी 75 पार के नाम पर सक्रिय राजनीति से हटा दिया गया।
तो सोचिए मोदी जी अगर बिहार हार जाते हैं तो फिर 75 के बाद उनका पद पर बना रहना कितना मुश्किल हो जाएगा। सीज फायर उसके बाद ट्रंप का टैरिफ किसी पर वे एक शब्द नहीं बोल पाए। और अब वोट काटने पर उनकी चुप्पी। लोकतंत्र में एक साथ 65 लाख वोट कटें और सत्ताधारी पार्टी चुप रहे। क्या मतलब है इसका? कि वोट सारे उसके विरोधियों के कटे हैं और क्या मतलब हो सकता है?
पार्टी वहीं चुप रहती है जहां उसे फायदा होता है। मतलब राहुल का यह आरोप सही है कि वोट काटे भी और जोड़े भी जैसा उन्होंने कर्नाटक के मामले में दस्तावेजों के साथ दिखाया। तो यह सब घटनाक्रम मोदीजी को कमजोर साबित कर रहा है। और यही राहुल को ताकतवर।
मगर असली ताकत नतीजों में होती है। बिहार में राहुल की यह 1600 किलोमीटर की यात्रा तो सफल होगी। यात्रा के मास्टर बन गए हैं वे। देश में इससे पहले किसी ने इतनी यात्राएं नहीं कीं। पहले दक्षिण से उत्तर तक 4000 किलोमीटर की। फिर दूसरी पूर्व से पश्चिम 6600 किलोमीटर की। फिर भी कमियां निकालने वाले कहते हैं कि सड़क पर नहीं आते। अभी संसद से चुनाव आयोग जाते हुए सड़क से ही हिरासत में लिए गए थे। पटना में इससे पहले राज्य चुनाव कार्यालय पर प्रदर्शन करने पहुंचे थे। हथरस अभी बंगलुरु कर्नाटक। मगर वही बात है कि जिस गोदी मीडिया को नहीं देखना उसे नहीं दिखेगा। मगर आम जनता को दिख रहा है और नेता को जनता से ही मतलब होना चाहिए। और यह जनता एसआईआर के नाम पर बहुत परेशान हुई है। उतने ही बीएलओ भी हुए हैं। क्यों? क्योंकि बीजेपी को इसमें अपना फायदा दिख रहा था। तो जनता वह चीज है जो बता देती है कि तुम अपना फायदा सोचकर हमें परेशान कर रहे हो तो हम भी चाहे कुछ हो जाए तुम्हारा फायदा नहीं होने देंगे।
लेकिन जनता की मर्जी पूरी हो इसके लिए विपक्ष को अपनी कमजोरियों पर फौरन रोक लगाना पड़ेगी। नंबर एक सीट बंटवारे में विवाद से बचना। कांग्रेस और लेफ्ट दोनों को ज्यादा सीटों पर लड़ने के मोह से बचकर गठबंधन की ज्यादा सीटें आएं इस पर ध्यान देना होगा। कांग्रेस पिछली बार 70 सीटों पर लड़ी थी। और केवल 19 जीती थी। जिनमें से भी अब उसके पास 17 ही हैं। 2015 में 27 जीती थी। मगर उसमें से आधे से ज्यादा नेता कांग्रेस विधायक दल भी नीतीश भाजपा के साथ चले गए थे।
अभी 90 से लेकर 100 लड़ने की बात हो रही है। यात्रा जैसे जैसे आगे बढ़ेगी कांग्रेसियों की मांग और बढ़ती जाएगी। राहुल को यहीं सख्ती और संतुलन रखना होगा। उनकी पार्टी में ऐसे नेता हैं जो लालू और तेजस्वी के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। यह समय इसका नहीं है। लालू तेजस्वी के खिलाफ बोला हर शब्द भाजपा के जंगल राज के नरेटिव को मजबूत करता है।
राहुल को सख्त शब्दों में बता देना होगा कि यह चुनाव लालू तेजस्वी को कमजोर करने के लिए नहीं मोदी को कमजोर करने के लिए लड़ा जा रहा है और लास्ट बात टिकट बिक्री एक नहीं होने पाए। वैसे तो कई जगह यह आरोप लगते हैं। मगर बिहार में सबसे ज्यादा। सब बड़े नेताओं को बुलाकर साफ कहना होगा कि टिकट बिक्री का पता चला तो फिर कोई नहीं बचा सकता। पार्टी से बाहर।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


