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राहुल की भारत एक खोज पार्ट टू यात्रा से बिहार यात्रा तक की कहानी

राहुल अच्छे यात्री हैं। सफल। मगर दफ्तर में भी कोई होना चाहिए। सब व्यवस्था बनाए रखने के लिए

राहुल की भारत एक खोज पार्ट टू यात्रा से बिहार यात्रा तक की कहानी
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  • शकील अख्तर

तो यात्राएं लगातार दे रही हैं। मगर इससे कई गुना और ज्यादा दे सकती हैं। ये जो मिल रहा है अपने आप। देसी भाषा में कहते हैं अपरस आ रहा है। और अगर सिस्टम हो तो राहुल की मेहनत का पूरा फायदा मिल सकता है। लास्ट। उदाहरण के तौर पर बिहार में सही सीट शेयरिंग। फिर ईमानदारी से टिकट वितरण और आपस में एक दूसरे को हराने पर सख्ती से पाबंदी।

राहुल अच्छे यात्री हैं। सफल। मगर दफ्तर में भी कोई होना चाहिए। सब व्यवस्था बनाए रखने के लिए। राहुल का मिज़ाज अभी तक कांग्रेसियों की समझ में आ जाना चाहिए। बहुत मेहनती, लोगों से खुश होकर मिलने वाले। यह तीसरी बड़ी यात्रा है और जिस उत्साह और शौक से कर रहे हैं इसे देखकर लगता है कि अभी बिहार में ही एक और यात्रा कर सकते हैं। चुनाव की घोषणा होने से पहले तक वे पूरा बिहार कवर कर लेंगे।

लेकिन इन यात्राओं से जो माहौल बनता है उसे वोट में बदलने के लिए एक अलग व्यवस्था की जरुरत होती है। कांग्रेस उस इलेक्शन मैनेजमेंट व्यवस्था को अब तक बना नहीं सकी है।

इसलिए एक सेन्ट्रलाइजड आफिस ( केन्द्रीय कार्यालय) और एक राजनीतिक समझ वाली टीम बहुत जरूरी है। कांग्रेस ने यह सब काम किए। मगर आधे अधूरे तरीके से। एक वार रूम बनाया। बहुत चर्चा में रहा। 15 जीआरजी (गुरुद्वारा रकाबगंज रोड) एक ऐसा नाम जिसके अंदर प्रवेश की हसरत हर कांग्रेसी रखता था। 10 जनपथ जहां सोनिया गांधी रहती हैं जाना आसान था मगर वार रुम सपना।

उसके बाद उसी तर्ज पर अपना नया मुख्यालय इंदिरा भवन। जिसके बनने में कांग्रेसियों और जनता ने भी पैसे दिए हैं वहां भी प्रवेश निषेध। अब जहां जनता और कांग्रेस कार्यकर्ता जा सकते हैं उस 24 अकबर रोड के पुराने मुख्यालय में कोई पदाधिकारी नहीं आता। कोई बड़ा नेता नहीं।

मल्लिकार्जुन खरगे जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो कांग्रेसियों को उम्मीद थी कि वे अकबर रोड मुख्यालय के अपने कमरे में बैठेंगे। मगर वे भी नहीं बैठे। विपक्ष में रहते हुए भी कांग्रेस का कोई नेता जनता या कार्यकर्ता को सुलभ नहीं है। सत्ता में जब थे तब तो सवाल ही नहीं। सोनिया गांधी उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थीं। कई बार मंत्रियों और उच्च पदाधिकारियों से कहा कि कार्यकर्ताओं और जनता से मिला करो। मगर किसी ने नहीं सुना।

जनता और कार्यकर्ताओं को अब एक ही मौका मिला राहुल की यात्राओं में। यहां वे कुछ समय के लिए मिल सकते हैं। इसी तरह की राहुल से दूसरे जिम्मेदार नेताओं से मिलने की व्यवस्था दिल्ली में, राज्यों के मुख्यालयों में होना चाहिए। और इस सारी व्यवस्था को मानिटर करने के लिए एक जिम्मेदार टीम। जो दिल्ली में एक आफिस में बैठे।

अभी आप किसी पदाधिकारी से पूछ लो कि 2004 से अभी तक राहुल ने कितनी यात्राएं की हैं, उनका क्या फालोअप है तो कोई नहीं बता पाएगा। राहुल 2004 से जब पहली बार सांसद बने थे तब से यात्राएं कर रहे हैं। लोगों से मिल रहे हैं। दलितों के घर गए, किसान मजदूर के घर गए। खाना खाया रात रुके।

उनकी मदद की। और यह सब बातें उस समय की हैं जब केन्द्र में उनकी सरकार थी। मगर उस समय भी यह सारी बातें सही तरीके से लोगों के सामने रखी नहीं गईं।

राहुल ने पहली अखिल भारतीय यात्रा उसी समय की थी। 2006 से। बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाकों से लेकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से होते हुए कर्नाटक आंध्र के उन वन प्रांतों की जहां चंदन तस्कर वीरप्पन के मरने के बाद भी कई सालों तक भय का वातावरण रहा। हम उस समय ज्यादातर यात्राओं में साथ थे। और भी पत्रकार थे। बहुत कठिन यात्राएं थीं वह। आज भी राहुल के साथ चलना बहुत मुश्किल है। मगर उन दिनों तो वे ज्यादा यंग थे। अभी की यात्राओं में रात को प्रापर रुकते हैं। मगर उन दिनों तो आप कह सकते हैं कि चौबीस घंटे चलते थे। गाड़ी में ही सो लो और सुबह कहीं नहा-धो कर फिर गाड़ी में बैठ जाओ। उस समय हमने लिखा था भारत एक खोज पार्ट टू। वाकई देश को समझने की वे बेमिसाल यात्राएं थीं।

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा मिला। अकेले 200 से ऊपर सीटें जीतीं। सत्ता में आई। 2011 में राहुल ने उत्तर प्रदेश के नोएडा के भट्टा पारसोल में यूपी सरकार द्वारा किसानों की जमीन अधिग्रहित किए जाने के खिलाफ किसान संदेश यात्रा की थी। उस समय यूपी में मायावती की सरकार थी। और वह आखिरी मायावती की सरकार साबित हुई। उसके बाद उनका ग्राफ लगातार गिरता चला गया। और अब लोकसभा में उनके पास एक सीट भी नहीं है। और विधानसभा में केवल एक सीट। और वह भी प्रत्याशी उमाशंकर सिंह के अपने व्यक्तिगत प्रभाव के कारण। बलिया जिले की रसड़ा सामान्य सीट। उमाशंकर सिंह तीसरी बार जीते। सुरक्षित सीटों से सब जगह बसपा हारी। यह राहुल की दूसरी यात्रा का प्रभाव।

भारत जोड़ो यात्रा 2022 जिसने सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पाई है उससे पहले भी राहुल कई यात्राएं कर चुके हैं। जैसा दो तो पहले बताईं। भारत एक खोज पार्ट टू और भट्टा पारसोल में किसानों के लिए किसान संदेश यात्रा। उसके बाद 2015 केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के बाद राहुल वहां पैदल गए। गौरीकुंड से पहाड़ी चढ़ाई। 4 घंटे में 13 किलोमीटर चढ़ गए। साथ के सब लोग या तो बैठ गए या मुख्यमंत्री थे हरीश रावत उन्होंने घोड़ा लिया। ऐसे ही 2018 की उनकी कैलाश मानसरोवर यात्रा रही। पैदल यात्रा। वहां भी 7 घंटे में 34 किलोमीटर। इसी तरह 2021 में पैदल ही चलते हुए उन्होंने वैष्णों देवी के दर्शन किए थे। रास्ते भर लोगों से मिलते बात करते हुए। इससे पहले भी सांसद बनने के साथ ही वे 2005 में भी वैष्णों देवी जा चुके हैं।

तो राहुल के साथ चलना बहुत मुश्किल है। मगर वे जहां जाते हैं। जो करते हैं। कहते हैं उनका फालोअप करना इतना मुश्किल नहीं है। राहुल के बुंदेलखंड दौरे के बाद यूपीए सरकार ने वहां के विकास के लिए 7266 करोड़ रुपए का एक विशेष पैकेज स्वीकृत किया था। जिसमें मध्य प्रदेश वाले हिस्से के लिए 3760 करोड़ और उत्तर प्रदेश के लिए 3506 करोड़ रूपए का प्रावधान था। इसके अलावा 200 करोड़ रुपए और अतिरिक्त की बात थी। मगर उसका कोई ठीक से उपयोग नहीं हुआ। जो राजनीतिक मानिटर करना चाहिए था नहीं हुआ। और सब सरकारी तंत्र की भेंट चढ़ गया।

राहुल की आगे की सफलताओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि जो निर्णय हों, घोषणाएं हो वे पूरी हों। पार्टी के स्तर से भी इसकी शुरूआत की जा सकती है। और जहां सरकारें हैं वहां से भी।

यह साल कांग्रेस ने संगठन का साल घोषित किया था। पार्टी में सबसे महत्वपूर्ण पद होता है जनरल सैकेटरी का, राज्यों के अध्यक्ष का और डिपार्टमेंटल हेड का। कितने हैं जिन्हें बदलने की कई बार बात हुई। मगर नहीं हटाए। जहां बदले वहां फायदा दिखा। बिहार में सफल यात्रा के पीछे वहां के बदले गए इंचार्ज कृष्णा अल्लावरु की संगठन और प्रबंधकीय क्षमता का बड़ा हाथ है।

आज स्थिति यह है कि राहुल, प्रियंका, अध्यक्ष खरगे से मिलने का कोई सिस्टम नहीं है। बड़े नेताओं को भी यहां वहां पूछना पड़ता है। देखिए यात्रा में मिले, किसी कार्यक्रम में मिले, संसद में मिलने से व्यवस्थाएं नहीं चलती हैं। वह तो आफिस में बैठकर बात करने से ही चीजें समझ में आती हैं।

तो यात्राएं राहुल और भी करेंगे। जो भारत जोड़ो यात्रा 2022 की बात कही थी ऊपर वह 4000 किलोमीटर की पैदल थी। कन्याकुमारी से कश्मीर तक। और उसके बाद पूर्व से पश्चिम तक। पिछले साल ही। 2024 में। जो 6600 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा थी और नतीजा तत्काल दिखा। प्रधानमंत्री मोदी जो 400 पार की बात कर रहे थे। 240 पर रुक गए। और कांग्रेस 100 पार कर गई।

तो यात्राएं लगातार दे रही हैं। मगर इससे कई गुना और ज्यादा दे सकती हैं। ये जो मिल रहा है अपने आप। देसी भाषा में कहते हैं अपरस आ रहा है। और अगर सिस्टम हो तो राहुल की मेहनत का पूरा फायदा मिल सकता है। लास्ट। उदाहरण के तौर पर बिहार में सही सीट शेयरिंग। फिर ईमानदारी से टिकट वितरण और आपस में एक दूसरे को हराने पर सख्ती से पाबंदी। साथ ही वोट चोरी पर कड़ी नजर, चुनाव आयोग पर दबाव और कटे हुए नामों को वापस जोड़ने के काम में कोई कोताही नहीं। तब राहुल की मेहनत पूरी वसूल होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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