नेहरू ने दिलाया था सबको वोट का अधिकार : अब उसे लिमिटेड करने का प्रयास
राहुल की यह बात सही है कि मुख्यत: तो जनता को जागरूक होना पड़ेगा। लोकतंत्र उसी के लिए है। अगर वही नशे में रही तो उसका वोट उसके हाथ से छिन जाएगा

- शकील अख्तर
राहुल की यह बात सही है कि मुख्यत: तो जनता को जागरूक होना पड़ेगा। लोकतंत्र उसी के लिए है। अगर वही नशे में रही तो उसका वोट उसके हाथ से छिन जाएगा। नफरत और विभाजन यही दो चीज भाजपा को आती हैं। पिछले 11 साल में प्रधानमंत्री मोदी ने इन दोनों का नशा फैलाने के अलावा और कुछ नहीं किया। राहुल इसी नशे को तोड़ना चाहते हैं।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपना काम कर दिया। अब यह देश की जनता पर है और संवैधानिक संस्थाओं पर भी कि क्या वोट चोरी के इतने बड़े खुलासे के बाद भी उनकी नींद या नशा नहीं टूटता? राहुल गांधी ने तो 7 अगस्त को अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में साफ कहा कि इतना बड़ा धमाका उन्होंने जनता को जगाने के लिए किया है। वह जागे सोचे कि वोट किस तरह चोरी करके सरकार बनाई जा रही है।
राहुल की यह बात सही है कि मुख्यत: तो जनता को जागरूक होना पड़ेगा। लोकतंत्र उसी के लिए है। अगर वही नशे में रही तो उसका वोट उसके हाथ से छिन जाएगा। नफरत और विभाजन यही दो चीज भाजपा को आती हैं। पिछले 11 साल में प्रधानमंत्री मोदी ने इन दोनों का नशा फैलाने के अलावा और कुछ नहीं किया।
राहुल इसी नशे को तोड़ना चाहते हैं। और देश के लिए यह जरूरी है कि उसमें विभाजन नहीं एकता हो। नफरत नहीं प्रेम हो। नफरत और विभाजन कुछ समय के लिए वोट तो दिला सकते हैं मगर हमेशा नहीं। फिर वोट चोरी करना पड़ता है। राहुल ने मय सबूतों के बताया कि 2024 लोकसभा चुनाव में किस तरह वोट चोरी हुआ। दस्तावेजों के जरिए। और दस्तावेज भी चुनाव आयोग के ही। कोई अखबारों की कटिंग नहीं, किसी नेता के कोई आरोप नहीं वह कागज जो चुनाव आयोग के हैं।
मगर चुनाव आयोग नेता प्रतिपक्ष के एक आरोप का जवाब नहीं दे पाया है। मगर जालसाजी पकड़ी जाने पर उल्टा हमलावर होने की कोशिश कर रहा है। राहुल से शपथपत्र मांग रहा है। किस बात का शपथ पत्र? राहुल नेता प्रतिपक्ष हैं। संविधान की शपथ लेकर सांसद बने हैं। और जब लोकसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो हर प्रत्याशी शपथ पत्र देता है। लेकिन क्या चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने से पहले इन लोगों ने कोई शपथ पत्र दिया था?
इन्होंने तो नहीं दिया। मगर समाजवादी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में 18 हजार शपथपत्र देकर चुनाव आयोग से वोट काटे जाने की शिकायत की थी। लेकिन क्या हुआ? सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राहुल से शपथ पत्र मांगे जाने पर कहा कि पहले चुनाव आयोग यह बताए कि हमारी शपथ पत्र देकर शिकायतों पर उसने क्या किया? एक बीएलओ तक नहीं हटाया। आज तक कोई जवाब भी नहीं आया। उन्होंने पिछले दिनों हुए कुंदरकी विधानसभा उप चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि पुलिस वाले सर्विस रिवाल्वर लिए वोटरों को धमका रहे थे। खुद पुलिस वोट डाल रही थी। इसकी रिकार्डिंग चुनाव आयोग को दी गई। मगर क्या हुआ?
यहां यह बताना जरूरी है कि भाजपा ने यह सीट 31 साल बाद जीती। मुरादाबाद जिले की मुस्लिम बहुल यह सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। चुनाव आयोग को इस उपचुनाव के बारे में अखिलेश के सवालों का जवाब देना चाहिए। उससे पहले 18 हजार शपथ पत्रों के साथ की गई वोट काटने की सपा की शिकयतों का भी। फिर राहुल से कोई सवाल करना चाहिए।
दूसरी बात जो हम कह रहे हैं कि राहुल ने तो जनता तक खुलासा पहुंचाने की बात कही। मगर देश की सबसे प्रमुख संवैधानिक संस्था सुप्रीम कोर्ट क्या कर रही है? क्या इतनी बड़ी वोट चोरी के दस्तावेजी खुलासे के बाद उसे स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिए?
क्या तर्क दिया है चुनाव आयोग ने कि पूरी जांच में 273 साल लगेंगे! जबकि राहुल का कहना है डिजिटल फार्म में चुनाव आयोग उपलब्ध करवाए तो हम मिनटों में जांच कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग के इसी मजाक पर संज्ञान लेना चाहिए कि यह इतने सालों की बातें कैसे कर रहा है? और साथ ही यह भी पूछना चाहिए कि जो वह मांग रहा है उन लाख से ऊपर शपथ पत्रों पर साइन करने में नेता प्रतिपक्ष को कितना समय लगेगा? और यह भी कि अखिलेश यादव ने जो 18 हजार शपथ पत्र के साथ शिकायतें दर्ज करवाईं थीं उनका क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक जिम्मेदारी है। यह उसे निभाना चाहिए। संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को असीमित अधिकार प्रदान करता है। याद रहे देश में संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है। संविधान के आर्टिकल 79 में इसकी व्याख्या है। और इस संसदीय लोकतंत्र का मूल तत्व वोट है। जिस पर संविधान सभा में लंबी बहसें हुईं थी। और नेहरू के पुरजोर तर्कों के बाद यह हर वयस्क व्यक्ति को दिया गया था। इसमें तमाम दक्षिणपंथी विचार थे कि इस को देना चाहिए उसको नहीं। खासतौर से गरीब कमजोर वर्ग को इससे बाहर करने के लिए कहा गया था कि जो पढ़ा-लिखा नहीं है उसे वोटिंग राइट नहीं होना चाहिए।
नेहरू जिनकी आलोचना प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा हमेशा करती रहती है उसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि नेहरू ने वहां सवाल उठाया कि देश की आजादी के लिए लड़ाई किसने लड़ी। और किसने नहीं लड़ी। नेहरू ने कहा कि जिन गरीबों ने आजादी के लिए सबसे आगे बढ़कर योगदान दिया उन्हें ही आजादी के बाद आप सरकार बनाने की प्रक्रिया से बाहर करना चाहते हैं? फिर कौन देगा वोट वे जिनका आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं?
नेहरू के विरोध के इस तरह के बहुत सारे कारण हैं। वे हमेशा आम जनता के साथ खड़े होते दिखाई देते हैं। उन्हें अधिकार देते हुए। मगर यहां उन पर लिखना अभिप्राय नहीं है। बस प्रसंगवश यह बात आ गई कि देश की जनता को वोट का अधिकार कैसे मिला। आज उसी को खत्म करने की साजिश है। बिना शर्त हर बालिग को जो बाद में राजीव गांधी ने 21 साल से कम करके 18 साल में कर दिया था उसे कंट्रोल करने की।
अभी चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कह दिया कि उसने बिहार में जो 65 लाख वोट काटे हैं उसकी सूची वह उन्हें नहीं देगा। मतलब वह चाहे जिसके वोट काट सकता है और यह बताएगा भी नहीं कि किसके काटे और क्यों?
सोमवार 11 अगस्त को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और विपक्ष के सारे नेता संसद भवन से पैदल मार्च करते हुए निर्वाचन सदन जाएंगे। बिहार में गलत तरीके से करवाए विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ। 65 लाख वोट काट दिए और सुप्रीम कोर्ट को कह रहे है कि उसकी सूची देंगे नहीं।
चुनाव आयोग की इसी मनमानी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को एक्शन लेना चाहिए। पुनरीक्षण जो अब वह देश भर में करवा रहा है। मतलब इसी तरह करोड़ों वोट काटेगा। और राहुल ने जैसा कर्नाटक की एक लोकसभा सीट बेंगलुरू सेंटर की केवल एक विधानसभा महादेवपुरा में जांच करके मय पुख्ता सबूतों के बताया कि वहां कैसे एक लाख से ऊपर फर्जी वोट बनाए गए। जिसने पूरे लोकसभा क्षेत्र के मतदान पेटर्न को बदल दिया। राहुल का आरोप है कि अकेले कर्नाटक में 7 सीटें और देश भर में 25 से ज्यादा सीटें ऐसे ही चुनाव आयोग ने फर्जीवाड़े के जरिए बीजेपी को जिताई हैं। सच तक पहुंचने की जिम्मेदारी किस की है? निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट की। उसे करना ही होगा। नहीं तो भारत की न्यायपालिका भारत के लोकतंत्र की हत्या में शामिल मानी जाएगी।
दूसरी बात। जो दरअसल पहली ही है। जनता को हिन्दू-मुसलमान की नफरत से बाहर निकलना होगा। नहीं तो वह यही करती रहेगी और उसका वोट अधिकार खत्म हो जाएगा। संविधान लागू होने से पहले जो कोशिश थी जिसे नेहरू ने नहीं होने दी थी वह हो जाएगा। लिमिटेड लोगों को वोटिंग का अधिकार। गरीब कमजोर वर्ग वोटिंग राइट से बाहर!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


