Top
Begin typing your search above and press return to search.

राहुल गांधी की परीक्षा का वक्त

सोमवार शाम को जब सारे अंग्रेजी और बड़े चैनल प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा, चीनी नेता जिनपिंग और रूसी पुतिन के साथ घनिष्टता बताती तस्वीरे दिखाने और विशेषज्ञों से उनका मतलब बताने तथा मोदी जी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा किए भारत विरोधी फैसलों की काट ढूंढने का दावा कर रहे थे

राहुल गांधी की परीक्षा का वक्त
X
  • अरविन्द मोहन

इस यात्रा को सफल बताने में हर्ज नहीं है और इसके चलते कांग्रेसी कार्यकर्ता तो उत्साह में आए ही हैं(जिनकी संख्या काफी कम है) लेकिन राजद और भाकपा-माले के लोग ज्यादा उत्साह में हैं। एनडीए से चुनावी मुकाबला तो मुख्य रूप से उन्हे ही करना है। यह उत्साह चुनाव तक कायम रहता है या नहीं, यही राहुल ऐंड कंपनी की मुख्य चुनौती है।

सोमवार शाम को जब सारे अंग्रेजी और बड़े चैनल प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा, चीनी नेता जिनपिंग और रूसी पुतिन के साथ घनिष्टता बताती तस्वीरे दिखाने और विशेषज्ञों से उनका मतलब बताने तथा मोदी जी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा किए भारत विरोधी फैसलों की काट ढूंढने का दावा कर रहे थे तब अधिकांश छोटे चैनल और यू ट्यूब वाले प्रसारण बिहार की राजधानी में राहुल गांधी-तेजस्वी की रैली की चर्चा में मगन थे। इसका कारण क्या हो सकता है पर इतना साफ है कि राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा ने भी बराबरी की दिलचस्पी पैदा की है। पहली सितंबर को उसका समापन था और भारी भीड उमड़ी थी। यह भी हुआ कि प्रशासन ने आयोजकों को गांधी मैदान में सभा की इजाजत नहीं दी तो वे अंबेडकर चौक तक जाना चाहते थे। रैली को वहां तक भी पहुंचने नहीं दिया गया। शुरुआती योजना लोगों की भारी भीड़ के साथ इंडिया गठबंधन के नेताओं को जुटाकर राजनैतिक संदेश देने की थी पर नीतीश राज में शायद पहली बार इस तरह की राजनैतिक रोक-टोक दिखाई दी। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी को सासाराम में अपनी यात्रा की शुरुआत की इजाजत भी काफी देर से दी गई और रात के अंधेरे में मोटरसाइकिल के हेडलैंप की रोशनी में हेलीपैड बनाना पड़ा। सब मुश्किलें पार करके यात्रा में सफल रहने के बाद अब उनकी असली परीक्षा शुरू हो रही है।

अब नीतीश कुमार जैसे मंझे हुए राजनेता को यह सब कदम क्यों उठाना पड़ा यह तो वही बताएंगे लेकिन यह बिहार की राजनीति की संस्कृति नहीं है। सिर्फ जेपी आंदोलन के समय ऐसी रोक-टोक की असफल कोशिश कांग्रेसी सरकार ने की थी लेकिन स्टीमर बंद कराने के बावजूद नौजवान भरी गंगा को केले के पेड़ों को जोड़कर बनाई कामचलाऊ डोंगी से पार करके पटना जुट गए। उल्लेखनीय है कि तब पटना में कोई पुल न था और उत्तर बिहार वालों को स्टीमर के सहारे ही राजधानी आना होता था। तब यह भी हुआ कि जब कांग्रेस के आपातकाल लगाने के समर्थन में कम्युनिष्ट पार्टी ने पटना में रैली की तो उनके लोगों को स्टीमर घाट के कुलियों से भिड़ना पड़ा जो बच्चों का हाल देखकर नाराज थे। इस बार वैसी स्थिति तो नहीं थी लेकिन राहुल गांधी और बड़े नेताओं की सुरक्षा का सवाल बार-बार उठता रहा। और इसी में दरभंगा में जब एक घुसपैठी ने मंच से प्रधानमंत्री की मां को गाली दे दी तो स्वाभाविक तौर पर बड़ा बवाल मचा। भाजपा के लोग इसे ही मुद्दा बनाकर पूरी यात्रा के राजनैतिक 'पुण्य' को खत्म करना चाहते थे। कई जगह झड़प भी हुई, हिंसा हुई लेकिन बहुत ज्यादा बात नहीं बढ़ी। असल में कांग्रेस का संगठन अभी उस स्तर पर भाजपा से लोहा लेने लायक है भी नहीं।

लेकिन इस यात्रा को सफल बताने में हर्ज नहीं है और इसके चलते कांग्रेसी कार्यकर्ता तो उत्साह में आए ही हैं(जिनकी संख्या काफी कम है) लेकिन राजद और भाकपा-माले के लोग ज्यादा उत्साह में हैं। एनडीए से चुनावी मुकाबला तो मुख्य रूप से उन्हे ही करना है। यह उत्साह चुनाव तक कायम रहता है या नहीं, यही राहुल ऐंड कंपनी की मुख्य चुनौती है। पहले भारत यात्रा, राफेल घोटाला, मोहब्बत की दुकान और सावरकर समेत कई मसलों पर वे ठीक-ठाक हवा बनाने में सफल रहे हैं लेकिन संगठन उस उत्साह को बढ़ाने में ही नहीं बरकरार रखने में भी सक्षम नहीं है। खुद राहुल भी मुद्दा बदल कर पुराने को भूल जाते रहे हैं। अब यह गाली कांड क्यों और कैसे हुआ? इसकी जांच हो रही है। उसका क्या नतीजा आएगा और तब वह कोई राजनैतिक हवा बचेगी यह कहना मुश्किल है। और अभी मोदी जी कुछ और धंधों में उलझे हैं। जब वे मां को गाली वाला प्रकरण लेकर बिहार में भाषण शुरू करेंगे तब क्या असर होगा यह भविष्यवाणी भी मुश्किल है।

दो-तीन चीजें साफ हैं। इस यात्रा ने ठीक-ठाक हलचल मचाई है। मीडिया कवरेज और सामने आए ओपिनियन पोल भी इसकी पुष्टि करते है और जो प्रतिक्रिया कांग्रेसियों और इंडिया गठबंधन के साथियों की है वह भी इसकी पुष्टि करता है। सारा विपक्ष नए सिरे से एक हुआ है। कांग्रेस और इंडिया गठनबंधन के लिए यह चीज फायदे की हो सकती है कि अब बिहार चुनाव में ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। अभी से सिर्फ वही लोग नहीं विपक्ष भी उतना ही सक्रिय हो गया है। खुद प्रधानमंत्री के कई दौरे हो चुके हैं और बिहार सरकार चुनावी रेवादियां घोषित करने लगी है। दो ढाई महीन में आधे से ज्यादा व्यक्त तो चुनाव का ही रहेगा और बाकी में गठबंधन बनाना और सीटों का हिसाब लगाना होगा। इस रैली ने इंडिया गठबंधन का काम आसान किया है जबकि चिराग पासवान और प्रशांत किशोर के चलते इंडिया एनडीए को परेशानी दिखने लगी है।

राहुल गांधी ने वोट चोरी को मोदी और शाह की जोड़ी तथा भाजपा की चुनावी सफलता से जोड़ने की कोशिश की है। कुछ बात बनी है पर वोट चोरी का सवाल सीधे चुनाव आयोग के नाम जाता है जिसने हाल में अपना व्यवहार बहुत बदला है और अदालती दखल के चलते जिसे अपनी मूर्खतापूर्ण जिद छोड़नी पड़ी है। अभी भी लाखों आपत्तियां हैं और आयोग ने नामांकन के दिन तक आपत्ति स्वीकारने और शिकायतों का निपटारा करने का वायदा किया है। अगर आयोग का व्यवहार बदला तो राजनैतिक मुद्दा भी हल्का होगा। लेकिन जब एक-एक ब्लाक में हजारों आवेदन फीस के साथ आ चुके हैं तो निवास प्रमाणपत्र या जन्म प्रमाणपत्र देना भी एक काम होगा। अभी ही एक जोकीहाट ब्लाक में निवास के पचास हजार आवेदन आने की खबर है। ब्लाक का सारा स्टाफ जुट जाए तब भी रोज हजार प्रमाणपत्र देना मुश्किल है। और अगर ब्लाक के लोग यह काम कर सकते हैं तो विशेष सर्वेक्षण वाले बीएलओ क्यों नहीं कर सकते थे। आयोग के फैसलों में हजारों ऐसे सवाल जुड़े हैं और अब तक का उसका रुख और सवाल पैदा करता था।

उसका बदला व्यवहार देर से आया है और राहुल की वोट यात्रा के प्रभाव को कायम नहीं रहने देगा यह देखने की चीज है पर बांग्लादेसी घुसपैठ, रोहिंग्या घुसपैठ जैसे मसले तो गायब हो गए हैं जो भाजपा को धु्रवीकरण कराने में मदद करते थे। नाम काटना और ऐसा करने का डर दिखाना अलग मुद्दा है। भाजपा को उससे भी ज्यादा बड़ा सहारा नीतीश कुमार के साथ होने से है। वह उनको ज्यादा मान और सीटें देकर भी अपने खेमे को संभाल सकती है। आने वाला पखवाड़ा बहुत चीजों को साफ करेगा और राहुल की भी परीक्षा लेगा।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it