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संविधान बनाम सत्ताविधान

चुनाव आयोग बताएगा कि आप भारत के नागरिक हैं या नहीं और सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि आप सच्चे भारतीय हैं या नहीं, इस समय का सत्ताविधान यही संदेश दे रहा है

संविधान बनाम सत्ताविधान
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  • सर्वमित्रा सुरजन

बिहार में चल रही मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण में 65 लाख लोगों के नाम काटे जा चुके हैं, इनमें से जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें छोड़कर बाकी लोग केवल इसलिए वोट देने से वंचित रह जाएंगे, क्योंकि अपनी नागरिकता साबित करने की चुनौती वे पूरी नहीं कर पाए। सवाल सरकार से होने चाहिए थे कि अगर लाखों लोग भारत के नागरिक न होने के बावजूद एक राज्य में रह रहे हैं, तो सरकार अब तक क्या कर रही थी?

चुनाव आयोग बताएगा कि आप भारत के नागरिक हैं या नहीं और सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि आप सच्चे भारतीय हैं या नहीं, इस समय का सत्ताविधान यही संदेश दे रहा है। 2024 के चुनाव में जब विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन ने देश को आगाह किया था कि लोकतंत्र और संविधान दोनों को भाजपा खत्म करना चाहती है, तब उस चेतावनी को न ठीक से सुना गया, न समझा गया। लोकतंत्र और संविधान से ज्यादा महत्व मंदिर वहीं बना दिया गया है की बात को दिया गया। एक धक्का और के नारे लगा-लगाकर जिस बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया था, उसी जमीन पर भव्य राम मंदिर बनते देख बहुत से लोगों के कलेजे पर ठंडक पड़ी। लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि जब अदालत ने कहा है कि मस्जिद तोड़ना अपराध था, तो फिर उसके अपराधी कहां हैं, उन्हें सजा क्यों नहीं हुई? जो अपराध हुआ था, उस जगह पर मंदिर बनाना क्या इंसाफ कहलाएगा? अगर आज यह अन्याय होने दिया जा रहा है, तो फिर क्या आगे इस अन्याय के रूप और तरीके नहीं बदलेंगे, क्या इसकी चपेट में बाकी लोग नहीं आएंगे? इन सारे सवालों पर जनता गौर कर सकती थी, लेकिन उसे इसकी मोहलत ही नहीं दी गई। जैसे 2014 के चुनावों से पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को सबसे अहम मुद्दा बनाकर अन्ना आंदोलन खड़ा किया गया था, उसकी तरह 2024 के चुनाव से पहले राम मंदिर बनाने को सबसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा बनाया गया। इनमें जनता के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े सवाल तो दबे ही, सबके अधिक संविधान पर खतरे का सवाल दब गया। भाजपा को तो फिर से सत्ता मिल गई और नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी। लेकिन जनता को क्या मिला, अपनी नागरिकता और देशभक्ति साबित करने की चुनौती।

बिहार में चल रही मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण में 65 लाख लोगों के नाम काटे जा चुके हैं, इनमें से जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें छोड़कर बाकी लोग केवल इसलिए वोट देने से वंचित रह जाएंगे, क्योंकि अपनी नागरिकता साबित करने की चुनौती वे पूरी नहीं कर पाए। सवाल सरकार से होने चाहिए थे कि अगर लाखों लोग भारत के नागरिक न होने के बावजूद एक राज्य में रह रहे हैं, तो सरकार अब तक क्या कर रही थी? लेकिन कमाल ये है कि सरकार पर कार्रवाई नहीं हो रही, जनता पर हो रही है। इसी तरह देश के कई वर्गकिलोमीटर पर चीन कब्जा कर चुका है, यह बात कई बार संसद में, मीडिया में और अन्य मंचों से उठाई जा चुकी है। लेकिन यहां भी सरकार की जिम्मेदारी तय करने की जगह सवाल उठाने वाले राहुल गांधी से कहा गया कि आप सच्चे भारतीय होते तो यह सब नहीं कहते।

सोचने वाली बात है कि क्या सुप्रीम कोर्ट से अब देशभक्ति का सर्टिफिकेट भी जारी किया जाने लगा है? क्या अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की परिभाषा बदल चुकी है और क्या कहना सच्चे भारतीय की निशानी है, क्या कहना सच्चे भारतीय की निशानी नहीं है, यह भी अब सुप्रीम कोर्ट में तय होगा? सवाल यह भी है कि क्या किसी राजनेता को केवल संसद में बोलने का अधिकार है, जो संसद तक नहीं पहुंचा है, क्या वह जनता और देश की आवाज़ उठा नहीं सकता?

ये सारे सवाल इसलिए उठे हैं क्योंकि बीते दिनों कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर मानहानि का एक और मुकदमा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मुकदमे पर तो अदालत ने रोक तो लगाई, लेकिन उसके साथ जो मौखिक टिप्पणी की, उसे ही फैसला बताते हुए मोदी समर्थकों को भ्रामक सूचना फैलाने का मौका मिला कि राहुल गांधी की हार हुई है। मोतीलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी और सोनिया गांधी तक सबके बलिदानों को धृष्टता के साथ भुलाते हुए भाजपा और उसकी ट्रोल आर्मी ने एक बार फिर राहुल गांधी के सच्चे भारतीय होने पर सवाल उठाए। जी हां, सच्चा भारतीय यही शब्द जस्टिस दीपांकर दत्ता ने सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के लिए इस्तेमाल किए।

मामला 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हुई झड़प के संदर्भ में भारतीय सेना के बारे में की गई उनकी टिप्पणियों से जुड़ा है। हालांकि, राहुल गांधी को अंतरिम राहत दी गई थी, लेकिन सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने श्री गांधी की टिप्पणियों पर असहमति जताते हुए मौखिक टिप्पणी की। अदालत में राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से जस्टिस दत्ता ने पूछा 'डॉ. सिंघवी बताइए, आपको कैसे पता चला कि 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीनियों ने कब्ज़ा कर लिया है? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सामग्री है? आप बिना किसी सबूत के ये बयान क्यों दे रहे हैं... अगर आप एक सच्चे भारतीय होते तो आप यह सब नहीं कहते।' जस्टिस दत्ता ने इससे पहले यह भी कहा कि 'आपको जो कुछ भी कहना है, संसद में क्यों नहीं कहते? आपको सोशल मीडिया पोस्ट में ऐसा क्यों कहना पड़ता है?'

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी को अंतरिम राहत दी है। तीन सप्ताह की अवधि के लिए अंतरिम रोक लगा दी गई है। लेकिन हमेशा उन्हें गलत साबित करने में लगे रहने वाले लोगों को इस टिप्पणी के बाद राहुल को घेरने का एक और मौका मिल गया है। माननीय अदालत का कहना है कि राहुल गांधी को सोशल मीडिया पोस्ट की जगह संसद में ये बातें उठानी चाहिए थी। जबकि इस देश का नागरिक होने के नाते राहुल गांधी या कोई भी अन्य नागरिक इन सवालों को उठा सकता है और उठाता रहा भी है। खुद भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी चीन के मुद्दे पर लगातार नरेन्द्र मोदी को घेरते रहे हैं, उनका हाल का ही एक ट्वीट है, जिसमें स्वामी ने लिखा है कि- सबसे कमज़ोर? या फिर हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज़्यादा लात खा रहे हैं। अमेरिका और चीन मिलकर स्वयंभू विश्वगुरु को विश्वबुद्ध दिखाने की साजिश रच रहे हैं, और बेशक कश्मीर और पूर्वोत्तर को हड़पना चाहते हैं। चीन पहले ही लद्दाख में घुस चुका है। क्या मोदी सिफ़र् 'कोई आया नहीं...' का रोना रोते रहेंगे?

ऐसे कई और उदाहरण हैं, अखबारों की कतरनें हैं, जिनमें चीन की घुसपैठ का जिक्र हुआ है। क्या इन सब पर भी सच्चे भारतीय न होने का इल्जाम लगेगा। साल 2019 में अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद तापिर गाव ने लोकसभा में कहा था कि अगर कहीं दूसरा डोकलाम होगा तो अरुणाचल प्रदेश में होगा। चीन ने भारतीय सीमा में 50 से 60 किलोमीटर तक कब्जा कर रखा है। चीन अरुणाचल प्रदेश में कब्जा करता है, मीडिया में कोई खबर नहीं आती है। उनके अलावा संसद के भीतर अखिलेश यादव, संजय सिंह जैसे सांसदों ने चीन की घुसपैठ का मुद्दा उठाया है। जब राहुल गांधी लद्दाख गए थे, उस समय वहां के स्थानीय लोगों ने बताया है कि चीन कहां तक घुस आया है और इससे देश पर खतरा बढ़ रहा है।

राहुल गांधी के अलावा भी चीन के अतिक्रमण पर संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह खबरें आई हैं, बयान आए हैं, फिर अकेले राहुल गांधी को सच्चे भारतीय होने या न होने का सर्टिफिकेट क्यों बांटा गया है, यह सोचने वाली बात है। इस टिप्पणी के वक्त को देखें तो परतें और खुलती हैं। इस समय भाजपा बिहार में एसआईआर के मुद्दे पर घिरी हुई है, इसके अलावा ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में संसद में मोदी सरकार विपक्ष के सामने पस्त दिखी। प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त डोनाल्ड ट्रंप भारत पर न केवल टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं, वे भारत का अपमान भी कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की इस पर चुप्पी उनकी 56 इंची छाती वाली छवि को तोड़ रही है। इस बीच राहुल गांधी ने ऐलान किया है कि वे कर्नाटक जाकर चुनाव आयोग की गड़बड़ी पर पुख्ता सबूत देंगे, इसे उन्होंने एटम बम कहा है। जनता की उत्सुकता बढ़ी हुई है कि आखिर इस बम के फटने पर कहां, किसकी पोल खुलेगी। यानी माहौल इस समय पूरी तरह से इंडिया गठबंधन की तरफ झुका हुआ है और सरकार की नाकामियां बढ़-चढ़कर सामने आ रही हैं। इस बीच राहुल गांधी के हक में फैसला सुनाते हुए भी उन पर की गई एक मौखिक टिप्पणी से समूची भाजपा को फिर से राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने का मौका मिल गया। हालांकि इसमें भी भाजपा कामयाब नहीं हो पाई, क्योंकि संसद परिसर में इंडिया गठबंधन के सभी नेताओं ने एक सुर से इस टिप्पणी को गलत बताते हुए राहुल गांधी का साथ दिया है।

राहुल गांधी के जीवन का लंबा हिस्सा इस तरह के संघर्षों में बीता है, तो वे इससे भी पार पा जाएंगे। लेकिन जनता को यह सोचना होगा कि जिस संविधान और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई इस समय इंडिया गठबंधन लड़ रहा है, वो आखिर किन के लिए हैं। आज नागरिकता और देशभक्ति के लिए सबूत मांगे जा रहे हैं, कल संविधानप्रदत्त बाकी अधिकारों को किसी न किसी बहाने छीना जाएगा। आज अगर इस सत्ताविधान की चालाकी को अनदेखा किया गया, तो फिर बर्बादी में वक्त नहीं लगेगा।


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