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कुछ भी कीजिये विवादित हो जाता है क्योंकि किया जाता है – सैम पित्रोदा

राहुल गाँधी अमेरिका जाने वाले हैं। डीबी लाइव की ओर से प्रशांत टंडन ने इस विषय पर ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा से बात की

कुछ भी कीजिये विवादित हो जाता है क्योंकि किया जाता है – सैम पित्रोदा
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राहुल गाँधी अमेरिका जाने वाले हैं। डीबी लाइव की ओर से प्रशांत टंडन ने इस विषय पर ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा से बात की। राजीव गांधी के मित्र सैम पित्रोदा 81 साल के हैं और भारत में संचार क्रांति के जनक माने जाते हैं। इस समय आप शिकागो में रहते हैं। उनसे यह बातचीत वीडियो कॉल पर हुई।
यात्रा के समय के बारे में उन्होंने कहा कि इसका संबंध कर्नाटक की जीत से नहीं है। योजना बनाने में समय लगता है और अभी भी अमेरिकी दौरे की तैयारी पूरी नहीं हुई है। राहुल गांधी विदेश जाते हैं तो एक कोर ईवेंट होता है और कई अन्य कार्यक्रम होते हैं। इस वक्त स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का लेक्चर कोर ईवेंट है। इसका निमंत्रण दो-तीन महीने पहले आया था। अभी डीटेल प्लान नहीं बना है। मैं इसका खुलासा नहीं कर सकता हूं। यात्रा 10 दिन से कम की है और अभी योजना स्तर पर है। जैसे जैसे चीजें फिक्स होती जाएंगी हम फैसला करेंगे। अभी जो फिक्स है वह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का इंटरैक्शन। वाशिंगटन और न्यूयॉर्क जाना भी तय है।
उनसे पूछा गया कि राहुल गांधी का पिछला यूके दौरा विवादित हो गया था। इसपर उन्होंने कहा, कुछ भी कीजिये, भारत में विवादित हो जाता है क्योंकि विवादित किया जाता है। आप फैक्ट्स देखिये। हमारी दृष्टि से वो बहुत नॉर्मल चीज़ है। हमारा देश बहुत बड़ा है, लोकतांत्रिक देश है और हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि वैश्विक समुदाय से बात करें। इसलिए हम इंग्लैंड में अमेरिका में जाकर बोलते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हम भारत के खिलाफ बोलते हैं। सरकार के खिलाफ बोलना अलग चीज़ है। सरकार इंडिया नहीं है, आप समझिये। सरकार, भारत का एक छोटा हिस्सा है। सरकार के खिलाफ बोलना विपक्ष का काम है। कुछ गलत लगा तो बोलेंगे। लेकिन मीडिया ऐसे प्रस्तुत करती है जैसे देश के खिलाफ़ है।
उनसे पूछा गया कि विदेशी जमीन राजनतिक अखाड़ा क्यों बन रही है। उन्होंने कहा, नहीं ऐसा नहीं है, वो राजनीति का अखाड़ा नहीं है। हम उसे राजनीति का अखाड़ा बताते हैं। समझे? देखिये, पहले तो प्रधानमंत्री विदेश जाकर देश के खिलाफ कुछ कहें और विपक्ष के खिलाफ कुछ बोलें। वे देश के प्रधानमंत्री हैं, हम सबके प्राइम मिनिस्टर है। किसी भी पार्टी के हों, कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी ओर, विपक्ष जो कहता है वह सरकार के खिलाफ होता है। प्रधानमंत्री जो बोलते हैं वह देश के लिए बोलते हैं। तो आपको ये अंतर समझना है? हम समझते हैं, क्लियरली। लेकिन हम आप को बदल तो नहीं सकते हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की बहुत अच्छी जीत हुई है। जो एनआरआई तबका है वो इसे कैसे देख रहा है? उन्होंने कहा, कर्नाटक का चुनाव सबके लिए महत्वपूर्ण था। अनिवासी आबादी में कर्नाटक के बहुत सारे लोग हैं। मध्य पूर्व में हैं, यूरोप में हैं, अमेरिका में हैं, ऑस्ट्रेलिया में है - वो सब कर्नाटक के इलेक्शन को ध्यान से देख रहे थे। वे खुश हैं, ओवरसीज कांग्रेस के लोग खुश हैं कि कांग्रेस की जीत हुई। बहुत लोग ऐसा मानते हैं कि इट कुड बी अ टर्निंग पॉइंट? लेकिन हम मानते हैं आगे बहुत सारा काम पड़ा हुआ है। इस जीत से आप शांति से नहीं बैठ सकते। अभी तो तीन राज्यों में चुनाव हैं। उसके बाद 2024 में लोकसभा का चुनाव है। रास्ता बहुत कठिन है। सफर इतनी सीधी नहीं है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, हमें पता है कि पिछले 9 साल में क्या हुआ है। ध्रुवीकृत (पोलराइज़) पॉलिटिक्स के कारण अल्पसंख्यक भारत में कैसा महसूस करते रहे हैं वह हम जानते हैं। इस कारण समुदाय में तनाव है। शांति बिगड़ गई है। मीडिया पूरी तरह एकतरफा है। इस पर गौर किया जा रहा है। सब कुछ कवर हो रहा है। लोग देख रहे हैं कि भारतीय संस्थान उस तरह स्वतंत्र नहीं हैं जैसे हुआ करते थे। न्यायपालिका हो ईडी या आयकर अथवा पुलिस। दूसरी ओर, सिविल सोसाइटी, एनजीओ आदि को भी विदेशी मुद्रा उल्लंघन के नाम पर परेशान किया जाता है। लोगो ने बोलना बंद कर दिया है। लोग घबराते हैं, डर का एक भाव खड़ा किया गया है। इससे लोग अपनी बात वैसे नहीं कह पाते हैं जैसे लोकतंत्र में कहना चाहिए या कहने देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, इसका मतलब है कि वी हैव टू ऐक्ट, वी हैव टू बी सेन्सिटिव, इन द कंट्री, वी हैव टू क्रियेट, एनवायरनमेंट फॉर पीस एंड प्रॉस्पेरिटी। (हमें कार्रवाई करनी होगी, हमें संवेदनशील होना होगा, हमें देश में कुछ रचना है, पर्यावरण, शांति और संपन्नता के लिए)।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, भारत में लोग स्वार्थी हैं, तुरंत फायदा चाहते हैं इसलिए उनमें हिम्मत नहीं है। वे स्टैंड नहीं लेते हैं। भारत में यह बड़ी समस्या है। आप किसी को भी थोड़े पैसों में खरीद सकते हैं। किसी के पीछे किसी एजेंसी को लगा सकते है। मैं आपको एक उदाहरण दूं - पर्सनल एग्जाम्पल। हमने एक पदयात्रा की थी न्यूयॉर्क में। छोटी सी। संडे को पदयात्रा की। सब जगह न्यूज पेपर, टीवी में आया। मंडे मॉर्निंग ईडी ने हमें इंडिया से ई-मेल भेजा। जी हां, सोमवार को सुबह ही। मुझसे पूछा गया, आप बताइए आप कांग्रेस पार्टी में क्या है? कब बने? अजीब सवाल थे। हमने भी लिखा उन्हें कि आपको जाने की जरूरत क्यों है? आप मुझसे ये सब क्यों पूछ रहे हैं? तो उन्होंने जवाब दिया, फलां नियम, फलां धारा बहुत सारी बातें। लेकिन इसका क्या मतलब है? ये डराने की तकनीक हैं। अगर अच्छी तरह से लिखा होता कि मुझे आपसे इतनी इन्फॉर्मेशन आपसे चाहिए। तो मैंने दे दिया हो। लेकिन मैं वरिष्ठ नागरिक हूं मेरा कुछ सम्मान होना चाहिए। आप दो लाइन लिखकर मुझसे सूचना नहीं ले सकते हैं कि फला धारा के अनुसार .... आप होंगे सरकार में सबसे बड़े। मेरे लिए कोई मतलब नहीं है। प्रधानमंत्री जी, एक नागरिक के रूप में मैं सम्मान का हकदार हूं।
करीब एक घंटे के इस इंटरव्यू में बहुत सारी बातें हैं। भारत की राजनीति, उसपर विदेशी नजरिया और भारत के मामले विदेश में क्यों आदि जैसे सवालों के जवाब हैं। इसमें सैम पित्रोदा ने यह भी कहा है कि भारतीय मीडिया उनसे बात नहीं करता है और कभी उन्हें ऐसे इंटरव्यू का मौका नहीं दिया क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं हैं, हम विज्ञापन नहीं दे सकते हैं। हमारे पास कोई बजट नहीं है।


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