हसीना के खिलाफ आईसीटीबीडी में क्यों चल रहा मामला? जानें फैसले के बाद पूर्व पीएम के पास क्या होगा विकल्प?
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ दर्ज मामलों में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल बांग्लादेश (आईसीटीबीडी) आज फैसला सुनाने वाली है। हसीना के खिलाफ कई आरोप हैं, जिसे लेकर आईसीटीबीडी में सुनवाई शुरू हो गई है;
- आईसीटीबीडी क्या है
- आईसीटीबीडी हसीना के मामले की सुनवाई क्यों कर रही है
- आईसीटीबीडी में किन मामलों की सुनवाई होती है
- फैसले के बाद शेख हसीना के पास आगे क्या विकल्प बचेगा
नई दिल्ली। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ दर्ज मामलों में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल बांग्लादेश (आईसीटीबीडी) आज फैसला सुनाने वाली है। हसीना के खिलाफ कई आरोप हैं, जिसे लेकर आईसीटीबीडी में सुनवाई शुरू हो गई है। आइए जानते हैं कि आईसीटीबीडी क्या है और हसीना के मामले की सुनवाई क्यों कर रही है। इसके साथ ही हम ये भी जानेंगे कि आईसीटीबीडी में किन मामलों की सुनवाई होती है और शेख हसीना के पास आगे क्या विकल्प बचेगा।
इस पूरे मामले में सजा पर फैसले से पहले बांग्लादेश में तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है। बांग्लादेश में बीते कुछ दिनों में धमाके, आगजनी और हिंसा की घटनाएं देखने को मिली हैं। इस बीच आज फैसले को देखते हुए चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल बांग्लादेश की स्थापना खासतौर पर अपराधों की सुनवाई के लिए की गई है। इसकी स्थापना 1973 में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल एक्ट के तहत की गई थी। इस अदालत में उन मामलों की सुनवाई होती है जिनका अधिकार क्षेत्र सामान्य कोर्ट में नहीं आता है।
इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य 1971 के युद्ध अपराधों, मानवता के विरुद्ध अपराधों, नरसंहार और सामूहिक अत्याचारों के मामलों की सुनवाई करना था। इसका मतलब है कि अगर किसी मामले को मानवता के विरुद्ध अपराध के अधीन रखा गया है, तो इसकी सुनवाई सिर्फ आईसीटीबीडी करेगा।
बांग्लादेश की पूर्व पीएम और अन्य के खिलाफ हत्या, अपराध रोकने में नाकामी, और मानवता के खिलाफ अपराध के अलावा छात्रों को गिरफ्तार कर टॉर्चर करने, एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग, फायरिंग, और बलों का घातक इस्तेमाल करने का आदेश देने समेत कई आरोप लगे हैं। इस वजह से इस केस की सुनवाई आईसीटीबीडी में की जाएगी।
शेख हसीना के खिलाफ मृत्युदंड की मांग की गई है। आज आईसीटीबीडी की तरफ से जो भी फैसला आएगा, उसके बाद शेख हसीना के पास ज्यादा विकल्प नहीं होंगे। हसीना आईसीटीबीडी के फैसले के खिलाफ केवल बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट (अपील डिवीजन) का ही दरवाजा खटखटा सकती हैं।
इससे पहले आईसीटीबीडी ने 1971 के युद्ध अपराधों से जुड़े लगभग सभी बड़े नेताओं के केस की सुनवाई की है। कोर्ट ने गोलाम अजम, सईदी, कादिर मुल्ला, कमरुज्जमान, मोजाहिद, सलाउद्दीन क्वादर चौधरी, और मीर कासेम अली जैसे हाई-प्रोफाइल और ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि करीब 100 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी।
बांग्लादेश ने 1971 में मुक्ति संग्राम के तहत पाकिस्तान से स्वाधीनता हासिल की थी। वहीं आईसीटीबीडी की स्थापना इंटरनेशनल क्राइम (ट्रिब्यूनल) अधिनियम के तहत की गई, जिसे 1971 के मुक्ति संग्राम के दो साल बाद पारित किया गया था। इसमें 25 मार्च से लेकर 16 दिसंबर 1971 तक बांग्लादेश में किए गए नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपराधों में शामिल व्यक्तियों का पता लगाने, उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करने के साथ ही उन्हें सजा दिलाने का काम शामिल था।
दरअसल, 1970 के आम चुनाव में पूर्व पाकिस्तान में शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली आवामी लीग ने 162 में से 160 सीटों पर जीत दर्ज की। शेख मुजीबुर रहमान की लोकप्रियता काफी ज्यादा थी, जिसकी वजह से पाकिस्तानी हुकूमत ने शेख मुजीबुर रहमान की इस जीत को मानने से इनकार कर दिया था।
धीरे-धीरे हालात खराब होते गए और अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने दमनकारी अभियान चलाना शुरू किया, जिसमें भारी तादाद में लोगों ने खुद को बचाने के लिए भारत में शरण तक ली थी।
इसके बाद भारत ने 4 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया, जो 16 दिसंबर को खत्म हुआ। इस युद्ध में भारत की बड़ी जीत हुई और पाकिस्तान के करीब 82 हजार सैनिकों को भारत ने बंदी बना लिया। इसके अलावा करीब 11 हजार नागरिक भी भारत की चपेट में आए। इसके बाद इन बंदियों में से करीब 195 के खिलाफ युद्ध अपराध का मामला शुरू किया गया।
1974 में पाकिस्तान ने मजबूरी में बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी, जिसके बाद इन 195 लोगों के खिलाफ दायर मामले को खत्म कर वापस उनके देश भेज दिया।
इसके बाद 2009 में इस अधिनियम में संशोधन कर इसके दायरे में आम नागरिकों को भी लाया गया। इसका मतलब यह है कि अगर किसी नागरिक के खिलाफ मानवता के विरुद्ध या नरसंहार का मामला दर्ज होता है, तो उसकी भी सुनवाई स्पेशल ट्रिब्यूनल में ही की जाएगी।