किसके साथ जाएंगे बिहार के दलित

बिहार विधानसभा चुनाव करीब आते ही दल बदल का खेल तेज हो गया है. महागठबंधन हो या फिर एनडीए दोनों के लिए ही दलितों का वोट इस चुनावों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. तो ऐसे में इस बार बिहार की दलित राजनीति किस करवट बैठेगी. और कौन सा गठबंधन पड़ेगा भारी;

Update: 2020-08-18 15:59 GMT

बिहार विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए और महागठबंधन में उथल पुथल मची हुई है. एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान और जेडीयू नेताओं के बीच खुलकर बयानबाजी चल रही है. चिराग के बयानों को लेकर नीतीश कुमार बीजेपी से भी गुहार लगा चुका है. लेकिन लगता नहीं है कि चिराग बीजेपी के दबाव में आते दिख रहे हैं. इसलिए उनके तेवर जेडीयू और नीतीश कुमार के खिलाफ तल्ख होते जा रहे हैं. कुछ ऐसा ही हाल महागठबंधन में हैं. जहां लम्बे समय से हिन्दुस्तान आवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी आरजेडी को लेकर सहज नहीं दिख रहे हें. उनकी महागठबंधन में समन्वय समिति बनाने की मांग आरजेडी पूरी नहीं कर रही है और मांझी अल्टीमेटम पर अल्टीमेटम दिए जा रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी नीतीश कुमार से नजदीकियां बढ़ी हैं. उन्हें नीतीश अब अच्छे लगने लगे हैं. तभी तो जब श्याम रजक ने जेडीयू छोड़ आरजेडी का दामन थामा और उन्होंने नीतीश कुमार को दलित विरोध कहा तो मांझी नीतीश के बचाव में आ गए. जीतनराम मांझी ने श्याम रजक पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि

यदि नीतीश दलित विरोधी थे तो श्याम रजक को उन्होंने मंत्री क्यों बनाया. अब चुनाव आ गए और श्याम रजक ने पार्टी छोड़ दी तो उन्हें नीतीश दलित विरोधी लगने लगे हैं. यदि श्याम रजक के आरोप सही होते तो उन्हें पहले ही मंत्रीपद से इस्तीफा दे देना चाहिए था.यानी साफ है चिराग पासवान एनडीए से बाहर जाते दिख रहे हैं तो हम एनडीए के करीब आती दिख रही है. राज्य के जातिगतण समीकरणों की बात की जाए तो 

ओबीसी       51 प्रतिशत
यादव        14  प्रतिशत
सवर्ण        17 प्रतिशत
मुस्लिम       16 प्रतिशत
अन्य         2 प्रतिशत

ओबीसी वर्ग में यादव 14 प्रतिशत, कुशवाहा यानी कोइरी 6 प्रतिशत और कुर्मी करीब 4.5 प्रतिशत हैं. जबकि दलितों में पासवान 5 प्रतिशत और मुसहर समुदाय करीब 4 प्रतिशत है. बिहार की जातिगत राजनीति में यादव आरजेडी के परम्परागत वोटर माने जाते हैं जबकि कोइरी और कुर्मी जेडीयू के समर्थक,  सवर्ण वोटों में बीजेपी का आधार सबसे ज्यादा मजबूत है. ऐसे में मुस्लिम और यादव वोटों के सहारे महागठबंधन के पास 30 प्रतिशत वोटों का मजबूत आधार है. जबकि एनडीए के पास करीब 27 प्रतिशत वोट हैं जिसमें कोइरी, कुर्मी और सवर्ण वोट शामिल हैं. नीतीश कुमार की स्वीकार्यता महादलित और अति पिछड़ा वर्ग में भी है . यही कारण है कि विधानसभा चुनावों में दलित वोट महत्वपूर्ण हो गया है. जिधर दलित वोट जाएगा सत्ता भी उधर ही चली जाएगी. और चिराग पासवान हो या जीतन राम मांझी दोनों को चुनाव में अपनी अहमियता का अंदाजा भी है. इसीलिए दोनों ही अपने गठबंधन सहयोगियों के खिलाफ भले ही जमकर बयान दे रहे हो लेकिन न तो चिराग के खिलाफ नीतीश ने कुछ कहा है और न ही मांझी को लेकर तेजस्वी ने कठोर टिप्पणी की है. लेकिन चिराग और जीतनराम मांझी की मांगे भी ये लोग पूरी नहीं कर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार दलित वोट किसकी नैया पार लगाएगा.

 

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