शिवरात्रि और नटराज : जब अस्तित्व तांडव करता है
यह पूरा ब्रह्मांड एक सतत नृत्य है। हर कण, हर ग्रह, हर गैलेक्सी लगातार नृत्य कर रही है;
- सचिन सिंह परिहार
यह पूरा ब्रह्मांड एक सतत नृत्य है। हर कण, हर ग्रह, हर गैलेक्सी लगातार नृत्य कर रही है। हमारे भीतर की ऊर्जा भी निरंतर गति में है। यह गति, यह कंपन, यह लयबद्धता ही शिव का तांडव है।
यह कोई संयोग नहीं कि शिव को 'आदियोगी' कहा गया है। यह कोई संयोग नहीं कि उन्हें 'नटराज' कहा गया है। और यह भी कोई संयोग नहीं कि महाशिवरात्रि की रात उनके जागरण की रात मानी जाती है।
जब ब्रह्मांड में पहला कंपन हुआ, जब शून्य में पहली गूंज उठी, जब ऊर्जा ने गति पाई तभी तांडव प्रकट हुआ। यही नृत्य सृजन का कारण बना, यही नृत्य संहार का आधार बना, और यही नृत्य शिवत्व की पहचान बना।
शिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं है, यह एक जीवंत संभावना है एक ऐसी रात, जब अस्तित्व हमें आमंत्रित करता है कि हम अपनी सीमाओं को तोड़ें, अपने भीतर के नृत्य को खोजें, और स्वयं को शिवमय कर लें।
यह पूरा ब्रह्मांड एक सतत नृत्य है। हर कण, हर ग्रह, हर गैलेक्सी लगातार नृत्य कर रही है। हमारे भीतर की ऊर्जा भी निरंतर गति में है। यह गति, यह कंपन, यह लयबद्धता ही शिव का तांडव है। लेकिन यह केवल संहार का नृत्य नहीं, बल्कि सृजन, परिवर्तन और परम चेतना की ओर एक यात्रा है।
शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं। वे कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं हैं। वे केवल एक देवता नहीं, वे स्वयं अस्तित्व का सार हैं। शिव अनंत हैं, वे शाश्वत हैं। यदि हम अपने भीतर झाँक सकें, यदि अपनी सीमाओं से परे जा सकें, यदि जीवन के कंपन को महसूस कर सकें, तो हम पाएँगे कि शिव हमारे ही भीतर हैं। वे कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारी चेतना में समाहित हैं।
हमने नटराज की मूर्ति देखी है शिव का वह रूप जिसमें वे एक संतुलित मुद्रा में तांडव कर रहे हैं। लेकिन यह नृत्य केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व का प्रतिबिंब है। इस नृत्य में सृजन छिपा है, संहार छिपा है, मोक्ष छिपा है। जब शिव डमरू बजाते हैं, तो यह सृष्टि की उत्पत्ति का कंपन है। जब वे अग्नि उठाते हैं, तो यह संहार नहीं, बल्कि एक नए जन्म की तैयारी है।
जब वे अपस्मार (अहंकार और अज्ञानता) को पैरों तले दबाते हैं, तो यह मुक्ति की राह दिखाता है।जब उनका एक पैर हवा में उठता है,तो यह दर्शाता है कि जो इस नृत्य को समझ ले, वह स्वयं भी मुक्त हो सकता है।शिव का तांडव केवल विनाश का नृत्य नहीं, बल्कि जीवन का मूल सिद्धांत है। यह वही नृत्य है जो हमारे भीतर भी हर क्षण, हर पल हो रहा है। महाशिवरात्रि कोई साधारण रात नहीं होती। यह वह रात है जब पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि हमारे शरीर की ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर उठती है।
योगशास्त्र के अनुसार,इस रात में यदि शरीर को सीधा रखा जाए,तो ऊर्जा सहज रूप से सहस्रार (सर्वोच्च चक्र) की ओर बढ़ती है। यही कारण है कि ऋषियों और योगियों ने इसे जागरण की रात कहा। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि हमारे भीतर की ऊर्जा को जागृत करने का एक अवसर है। यदि हम सच में सजग हों, यदि इस रात को सही तरीके से उपयोग कर सकें, तो यह रात हमारे भीतर एक अद्भुत परिवर्तन ला सकती है। यह रात एक संभावना है। यह रात एक साधना है। यह रात एक गति है, जो हमें हमारी सीमाओं से परे ले जा सकती है। यदि हम केवल कर्मकांड में उलझे रहेंगे, तो यह अवसर खो देंगे। लेकिन यदि इसे समझकर अनुभव कर सकें, तो यह रात जीवन की सबसे महत्वपूर्ण रात बन सकती है
यह केवल धार्मिक बात नहीं है,बल्कि विज्ञान भी इसे स्वीकार करता है। स्विट्जरलैंड स्थित ष्टश्वक्रहृ प्रयोगशाला जहाँ ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने का कार्य हो रहा है वहाँ भगवान नटराज की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि ब्रह्मांड की संरचना शिव के तांडव से मिलती जुलती है। क्वांटम फिजिक्स कहती है कि ब्रह्मांड में सब कुछ निरंतर गति में है हर कण, हर ऊर्जा, हर चेतना। ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, यह केवल रूप बदलती है। यही तो शिव का तांडव है सृजन, संहार और पुनर्निर्माण।
शिव का तांडव केवल सृजन और संहार नहीं, बल्कि अनुग्रह (कृपा) का भी प्रतीक है। जब हम इस नृत्य को समझ लेते हैं, तो जीवन में समर्पण का भाव आ जाता है। तांडव हमें सिखाता है कि जीवन का हर परिवर्तन, हर हलचल, हर चुनौती सब कुछ एक लय में है। यदि हम इस लय के साथ बहना सीख लें, तो स्वयं शिवत्व को पा सकते हैं। महाशिवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यही है यह रात हमें शिवत्व को अनुभव करने का अवसर देती है। केवल मंदिर जाकर कुछ रीतियाँ निभाने की आवश्यकता नहीं। केवल शिव के नाम का जाप करने से कुछ नहीं होगा।
सबसे ज़रूरी है इस रात को पूरी सजगता के साथ जीना। अपनी ऊर्जा को भीतर की ओर मोड़ें। अपनी सीमाओं से परे जाने का प्रयास करें। अपने भीतर के शिव को खोजें। अगर हम ऐसा कर सके, तो हमें अनुभव होगा कि शिव केवल एक कल्पना नहीं, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता हैं। वे हर जगह हैं, हर कण में हैं, और सबसे अधिक, हमारे भीतर हैं।
शिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, यह जीवन का उत्सव है।शिव केवल संहारक नहीं, वे पुनर्जन्म के बीज भी हैं। शिव केवल एक विचार नहीं, वे एक अनंत संभावना हैं। इस शिवरात्रि, शिव को केवल बाहर मत खोजिए। शिव को अपने भीतर अनुभव कीजिए।शिव को अपनी चेतना में जगाइए।और जब यह अनुभव हो जाएगा, तो यह सत्य प्रकट होगा
'शिव ही शाश्वत हैं, शिव ही अनंत हैं।'
'नम: शिवाय!'