त्रिपुरा के शिक्षक दिल्ली में करेंगे विरोध प्रदर्शन

अदालत के एक फैसले के कारण त्रिपुरा में 10,000 से अधिक सरकारी शिक्षक नौकरी से निकाले जाने का सामना कर रहे;

Update: 2020-01-01 17:54 GMT

अगरतला। अदालत के एक फैसले के कारण त्रिपुरा में 10,000 से अधिक सरकारी शिक्षक नौकरी से निकाले जाने का सामना कर रहे हैं। शिक्षक संघ के एक नेता ने आज कहा कि शिक्षक इस संबंध में इस महीने के अंत में दिल्ली में धरना-प्रदर्शन करेंगे। ऑल त्रिपुरा एडहॉक टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बिमल साहा ने यहां कहा, "अब तक 43 शिक्षकों की मानसिक तनाव और चिंता के कारण मृत्यु हो गई है।"

उन्होंने कहा कि पुरुष और महिला शिक्षक इस महीने के अंत में या फरवरी के प्रारंभ में नई दिल्ली के जंतर मंतर पर एक धरना प्रदर्शन करेंगे, जिसमें त्रिपुरा सरकार द्वारा उनकी नौकरी जारी रखने की मांग की जाएगी।

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नीत वाम मोर्चा सरकार के सत्ता में आने के बाद 2010 से स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की शैक्षणिक योग्यता वाले 10,323 सरकारी शिक्षकों को अलग-अलग चरणों में त्रिपुरा के सरकारी स्कूलों में शामिल किया गया।

यह भर्ती प्रक्रिया बाद में मुकदमेबाजी में चली गई और 2014 में त्रिपुरा हाईकोर्ट ने सभी 10,323 शिक्षकों को उनके चयन के लिए मानदंडों में विसंगतियां बताते हुए नौकरी से हटाए जाने का फैसला सुना दिया।

इसके बाद तत्कालीन वाममोर्चा सरकार और शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिकाएं दायर की गईं, मगर शीर्ष अदालत ने 29 मार्च, 2017 को हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

पिछली वाम मोर्चा सरकार की एक अपील के बाद हालांकि शीर्ष अदालत ने शिक्षकों की सेवा को पिछले साल जून तक बढ़ा दिया था।

पिछले साल मार्च में सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने इस संबंध में पिछले साल जून में सुप्रीम कोर्ट में एक नई अपील दायर की थी। इसके बाद अदालत ने शिक्षकों की सेवाओं को मार्च 2020 तक एकमुश्त अंतिम विस्तार दिया।

शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हालांकि इनमें से कुछ शिक्षकों की अन्य सरकारी पदों पर और अलग-अलग भर्ती प्रक्रियाओं के माध्यम से नौकरी लग चुकी है, जिनमें शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) भी शामिल है। मगर अधिकांश शिक्षकों को अभी भी नौकरी जाने पर नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

एडहॉक टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ और अन्य शिक्षा विभाग के अधिकारियों से मुलाकात कर अपनी नौकरियों की सुरक्षा के लिए कई अवसरों पर बातचीत व आंदोलन किए हैं, लेकिन सभी प्रयास विफल रहे हैं।

फरवरी 2018 त्रिपुरा विधानसभा चुनाव से पहले शिक्षकों की भर्ती और अदालतों द्वारा उनकी नौकरी समाप्त करना एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा था।

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