दंतेश्वरी मंदिर में जीवबली की जगह सात्विक बलि की परंपरा

छत्तीसगढ़ के बस्तर स्थित आदिशक्ति मां दंतेश्वरी मंदिर के भीतर जीवबलि की कुप्रथा प्रतिबंधित होने के बाद विशेष पूजा के दौरान सात्विक बलि की परंपरा के तहत कुम्हड़े (कद्दू का एक प्रकार) की बलि दी जाती है;

Update: 2017-09-20 14:22 GMT

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर स्थित आदिशक्ति मां दंतेश्वरी मंदिर के भीतर जीवबलि की कुप्रथा प्रतिबंधित होने के बाद विशेष पूजा के दौरान सात्विक बलि की परंपरा के तहत कुम्हड़े (कद्दू का एक प्रकार) की बलि दी जाती है। 

मंदिर के मुख्य पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के मुताबिक दंतेश्वरी मंदिर में नवरात्र पंचमी की रात गुप्त पूजा होती है। इस दौरान सात्विक बलि के रुप में कुम्हड़ा काटा जाता है। यह अनुष्ठान गोपनीय होता है और बाहरी लोगों को शामिल नहीं किया जाता।  इसके लिए पंचमी की रात मंदिर में विशेष पूजा-अनुष्ठान होता है। देवी मां का दूध-दही, शहद आदि से अभिषेक के बाद विशेष पुष्प और वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है। इस दौरान मंदिर और गर्भगृह के कपाट बंद रखे जाते हैं। अनुष्ठान के प्रसाद को भी पुजारी और विशिष्ट लोग ही ग्रहण करते हैं। 

वदंतियों के अनुसार दंतेश्वरी मंदिर में सालों पहले नर और पशु बलि की प्रथा थी, लेकिन अठारहवीं सदी में ही इस पर रोक लगा दी गई। अब मंदिर के गर्भगृह में किसी भी जीव की बलि नहीं दी जाती। हालांकि मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मंदिर के पीछे परिसर में अपनी मनोकामना के अनुसार क्रियाएं संपादित करते हैं। 

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