वे गुनाहगार लड़कियां?

बाबा साहब के इस कथन को देश का मान बढ़ाने वाली वे महिला खिलाड़ी कैसे देखती होंगी जो न्याय के लिए सात महीने से संघर्ष कर रही हैं;

Update: 2023-07-13 02:30 GMT

- संदीप सिंह 

यह सब उस सरकार में हो रहा है जो 'बेटी बचाओ'  का नारा लगाती है। इस केस का नतीजा जो भी हो, लेकिन इस पूरे प्रकरण से देश की महिलाओं को यही संदेश गया है कि अगर अत्याचार करने वाला व्यक्ति ताकतवर है, सरकार में ऊंचे ओहदे पर है या सरकार संरक्षित माफिया है तो वह न्याय को बंधक बनाकर रखेगा और पीड़िता को न्याय नहीं मिलेगा। 

किसी समाज की प्रगति मैं उस समाज में महिलाओं की प्रगति से आंकता हूं।' 

- डॉ. भीमराव आंबेडकर

बाबा साहब के इस कथन को देश का मान बढ़ाने वाली वे महिला खिलाड़ी कैसे देखती होंगी जो न्याय के लिए सात महीने से संघर्ष कर रही हैं? जब कोई खिलाड़ी दुनिया के किसी कोने में मेडल जीतकर तिरंगा लहराता है तो पूरे देश में खुशी का माहौल होता है। लोग बधाइयां देते हैं। महिला खिलाड़ियों की जीत बाकियों से बड़ी होती है। उनकी जीत पर लाखों आंखों को हौंसला और सपना मिल जाता है। खिलाड़ियों की उपलब्धि उनकी निजी होने के साथ-साथ देश की उपलब्धि होती है, जिससे देश की जनता भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करती है। हमारे खिलाड़ी दुनिया भर में हमारा परचम लहराते हैं, इसीलिए उन्हें देश का गौरव माना जाता है और जनता उन्हें सिर-आंखों पर बिठाती है। खिलाड़ियों से जनता का यह जुड़ाव और जनभावनाओं को देखते हुए, राजनीतिक गलियारे में भी खिलाड़ियों को खूब तवज्जो दी जाती है।

लेकिन भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों के मामले में जो कुछ हुआ है, वह पूरे देश के लिए शर्मिंदगी की वजह बन गया है। वे देश की संसद के बगल में महीनों बैठी रहीं मगर प्रधानमंत्री के कान पर जूं भी नहीं रेंगी। कई महीनों के बाद भी उनकी सरकार द्वारा इसकी नोटिस भी नहीं ली गई। तब गोल्ड मेडल जीतने वाली महिला खिलाड़ियों ने सामने आकर कहा कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह ने उनका यौन शोषण किया है और देश की जनता सन्न रह गई। मगर बीजेपी सरकार ने अपने सांसद पर कार्रवाई करने की जगह एक कमेटी बनाकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। कमेटी ने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें न तो खिलाड़ियों के किसी आरोप का संज्ञान लिया गया था, न ही पुलिस कार्रवाई की सिफारिश की गई थी।

आरोप लगाने वाली खिलाड़ियों में एक खिलाड़ी ऐसी भी थी जिसका आरोप था कि जब उसका शोषण हुआ तब वह नाबालिग थी, लेकिन कार्रवाई तो दूर, पुलिस केस तक दर्ज नहीं कर रही थी। खिलाड़ी बहनें सड़क पर आंसू बहाती रहीं और सरकार मौन होकर अपने सांसद को बचाती रही। आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो तलब किए जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किया। एक एफआईआर में पॉक्सो एक्ट लगाया गया, जिसमें तुरंत गिरफ्तारी का नियम है, लेकिन गृहमंत्री के मातहत काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने सांसद की गिरफ्तारी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद सरकार अपने सांसद के बचाव में खड़ी रही। खिलाड़ियों के बारे में कई तरह की बातें मीडिया और सोशल मीडिया में कही गईं, अफवाहें फैलाई गईं, खिलाड़ियों को बदनाम करने का अभियान चलाया गया, ब्रजभूषण सिंह मीडिया में और अपने क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शन करते रहे। 

इधर दिल्ली में धरना दे रही खिलाड़ियों को पुलिस ने प्रताड़ित किया। उन्हें गिरफ्तार किया गया, उनका धरना स्थल तोड़ दिया गया और उन्हीं के खिलाफ केस दर्ज कर दिया। इसी बीच, नाबालिग खिलाड़ी ने अपना आरोप वापस ले लिया। लड़की के पिता ने बयान दिया, 'हमने कोर्ट में जाकर बयान बदल दिए। मैंने यह किसी लालच में नहीं, बल्कि डर की वजह से किया। मैं ये नहीं कहता कि मुझे किसी ने धमकी दी या दबाव डाला। लेकिन मेरा परिवार है मुझे कुछ हो गया तो परिवार बर्बाद हो जाएगा।'  क्या यह एक ताकतवर माफिया आरोपी को सरकारी संरक्षण का नतीजा नहीं था? अगर समय रहते कार्रवाई होती तो क्या तब भी पीड़ित लड़की के पिता को डर लगता? 

सरकार की ओर से इतने पैंतरे चले गए कि आखिरकार थक-हारकर खिलाड़ियों ने अपना आंदोलन खत्म कर दिया। न्याय के लिए महिला खिलाड़ियों का यह संघर्ष जनवरी में शुरू हुआ था। सात महीने के संघर्ष के बाद अब दिल्ली पुलिस ने ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट फाइल की है जिसमें पुलिस ने साक्ष्यों के आधार पर ब्रजभूषण सिंह पर यौन उत्पीड़न, पीछा करने, धमकी देने, डराने के गंभीर आरोप लगाते हुए उनपर मुकदमा चलाने और दंडित करने की सिफारिश की है। अब सवाल उठता है कि जो दिल्ली पुलिस आज आरोपों को सच मान रही है, उसी ने सात महीने तक आरोपी को किसके निर्देश पर बचाया? 

सबसे दिलचस्प यह है कि महिला खिलाड़ियों ने बार-बार कहा कि हमने ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद इस बारे में प्रधानमंत्री से शिकायत की थी और उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया था। बावजूद इसके, प्रधानमंत्री मौन रहे। न उन्होंने अपने सांसद पर कार्रवाई की, न उन्हें पद से हटाया, न ही पुलिस को कानून-सम्मत कार्रवाई का आदेश दिया गया। यह कितनी शर्मनाक बात है कि देश का मान बढ़ाने वाली खिलाड़ियों ने खुद प्रधानमंत्री से शिकायत की कि एक सांसद ने उनका यौन शोषण किया, लेकिन सब जानकर प्रधानमंत्री ढाई साल से मौन हैं और एक माफिया को बचा रहे हैं।

यह सब उस सरकार में हो रहा है जो 'बेटी बचाओ'  का नारा लगाती है। इस केस का नतीजा जो भी हो, लेकिन इस पूरे प्रकरण से देश की महिलाओं को यही संदेश गया है कि अगर अत्याचार करने वाला व्यक्ति ताकतवर है, सरकार में ऊंचे ओहदे पर है या सरकार संरक्षित माफिया है तो वह न्याय को बंधक बनाकर रखेगा और पीड़िता को न्याय नहीं मिलेगा। प्रधानमंत्री विदेशी धरती पर जाकर कहते हैं कि भारत 'मदर ऑफ डेमोक्रेसी' है। क्या दुनिया ये नहीं देखेगी कि मदर ऑफ डेमोक्रेसी में पीड़ित बेटियों, बहनों और मांओं को न्याय नहीं मिलता?

पाकिस्तान की मशहूर कवियत्री किश्वर नाहिद की नज़्म का एक टुकड़ा है-

ये हम गुनहगार औरतें हैं 

कि सच का परचम उठा के निकलें 

तो झूठ से शाहराहें अटी मिले हैं 

हर एक दहलीज पे सज़ाओं की दास्तानें रखी मिले हैं 

जो बोल सकती थीं वो ज़बानें कटी मिले हैं 

ये हम गुनहगार औरतें हैं 

कि अब तआकूब में रात भी आए 

तो ये आंखें नहीं बुझेंगी 

कि अब जो दीवार गिर चुकी है 

उसे उठाने की ज़िद न करना!

(लेखक जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं और कांग्रेस से जुड़े हैं।)

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