भारत में लुप्त होती परिवार व दाम्पत्य की अवधारणा
तेजी से आधुनिकता की ओर जाता भारतीय समाज बहुत कुछ छोड़ता जा रहा है। भारतीय समाज व परिवार टूटने के कगार पर खड़ा हो गया है;
- डॉ, सत्यभामा आडिल
तेजी से आधुनिकता की ओर जाता भारतीय समाज बहुत कुछ छोड़ता जा रहा है। भारतीय समाज व परिवार टूटने के कगार पर खड़ा हो गया है। ऐसा लगता है कि परिवार नाम का कंसेप्ट लुप्त हो जाएगा!
थोड़ा विचार करें-ऐसी धारणा का क्या कारण है?
हम नारी शिक्षा,समानता,आर्थिक स्वतंत्रता की हिमायत करते हुये नारी विमर्श करते हैं। यह सब तो ठीक है,पर परिवार क्यों टूट रहा?
शिक्षा के बाद स्वतंत्र रहने की भावना बनती जा रही है।कई लड़कियों से बातचीत व साक्षात्कार के बाद कुछ कारण सामने आए--1-- क नामक लड़की विवाह पूर्व की आजादी चाहती है।यानी लडकों से बराबर की दोस्ती,उनके साथ घूमना फिरना, सास ससुर के सामने भी उसी तरह रहना उठना,बैठना!भारतीय मर्यादा को वह पिछड़ेपन का प्रतीक मानती है।
2--विदेशी संस्कृति ही आधुनिकता है--यही मानती है।मंदिर जाने की आलोचना करती है।
3-लड़की ख--पूरी तरह नास्तिक है।उसकी सास ने एक दिन कहा कि आज पूजा है,सुंदर साड़ी पहन लो। जेवर भी पहन लो,सज धज के तैयार हो जाओ।मेहमान भी आने वाले हैं। ख--ने अस्वीकार कर दिया।वह लंबे गाउन पहनकर ही बैठी रही। नवविवाहिता बहू को इस तरह मनमानी करते देखकर सास को बहुत दुख हुआ।बेटा भी दु:खी हो गया। इस दिन से दोनों में खट-पट होने लगी।शादी के दस दिन ही हुए थे और मन मुटाव शुरू हो गया!
3---लड़की ग--ने कहा, 'वह तो घर के काम में मदद भी नहीं करता'?
'किस तरह'?
'एक टाइम मैं खाना बनाती हूँ, तो दूसरे टाइम उसे बनाना चाहिए? वह नहीं बनाता।
मैं नहीं रह सकती उसके साथ!
हर शाम हम होटल का खाना खाते हैं।'
4--लड़का- घ-ने कहा--'मैं पुरुष हूँ,क्यों खाना बनाऊंगा? खाना बनाना तो -- लेडिज का काम है!
5--लड़का-च--ने कहा--'उसे कमाने का घमंड है।अपने को बहुत बड़ा सोचती है! मैं नहीं रह सकता उसके साथ'!
6--लड़का छ--ने कहा--'उसे पैसा बचाना नहीं आता। बहुत ख़र्चीली है। मेरी नहीं निभ सकता उसके साथ!'
7--लड़का ज--बोला--'उसे मेरी माँ की बात सुननी चाहिए।वह कोई बात मानती ही नहीं!यह अकडूपन मैं पसंद नहीं करता!'
8--शादी में विदाई के समय लड़की झ -को उसकी नानी ने समझाईश दी--'देख मुन्नी ,सास ससुर से डरना मत! अपनी पसंद के कपड़े ठसक के साथ पहनना। कोई झुकने की जरूरत नहीं।
तू इंजीनियर है न,बहुत पढ़ीलिखी?अपने शार्ट ड्रेसेस भी पहनना! काहे की शर्म?
बड़े हैं तो अपनी जगह बड़े हैं! 'ऐसी सीख देने वाली नानी अपनी नर्स बहू को ,घर पर सिर ढंक कर रहने का आदेश देती है!
आचरण व स्वभाव का यह अंतर्विरोध बहुत समस्या खड़ा कर रहा है?
9-- बिना माता पिता की सहमति के विवाह करना निश्चित रूप से,चिंता का कारण बन रहा है।
हम नारी स्वातंर्त्य का नारा लगा रहे,'बेटा बेटी' एक समान का नारा लगा रहे, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दे रहे,नारी की आर्थिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित दे रहे,नारी स्वावलम्बन की दिशा में आगे बढ़ रही,---फिर दाम्पत्य टूटने व पारिवारिक विघटन का निदान किस तरह हो सकता है?
ऊपर लिखी शिकायतों के आधार पर तलाक हो रहे हैं।परिवार बन नहीं रहा,टूट रहा है!
क्या समाधान हो सकता है?
परिवार को बचाने व दाम्पत्य के स्थायित्व के लिए क्या किया जाना चाहिए?बहुत गम्भीर व विचारणीय प्रश्न है!
आज भारतीय सामाजिक व्यवस्था जिस संकट से जूझ रही,वह चिंता का विषय है!हम क्या करें?,कौन सा रास्ता निकालें?
2-पहली बात तो यह कि हम घर पर बेटी व बेटा दोनों को समान ढंग से संस्कारित करें।।शिक्षा के साथ साथ घरेलू जिम्मेदारियों के निर्वहन में समान भागीदारी निभाएं--ऐसा संस्कारित करें।अब वह समय बीत गया जब लड़की व लड़के के काम अलग अलग होते थे। दूसरी बात --लड़की का भी सम्मान होना चाहिए।दूसरी ओर,लड़की भी, लड़कों से सम्मानजनक ढंग से पेश आये! हर लड़की जैसे कमतर नहीं होती,उसी तरह हर लड़का भी बदतर/कमतर नहीं होता! शादी के निर्णय के साथ ,यह सब समझ होनी चाहिए--दोनों में। दोनों एक दूसरे के माता पिता का सम्मान करें। बुजुर्गों का सम्मान करें। यह संस्कार दोनों में होना जरूरी है!
यदि पत्नी की कमाई ,पति से अधिक है ,तो किसी में भी कॉम्प्लेक्स नहीं आना चाहिए। इसे सामान्य रूप से लिया जाना चाहिए! यह शादी के निर्णय से पहले ही सोचें। अभी अभी 5 दम्पति विवाह के 25 साल बाद इसलिए अलग हुए कि पत्नी अधिक बुद्धिमान है,प्रमोशन हो रहा,उच्च पद पर है। अपने बेटे / बेटी के साथ अलग होकर दूसरा विवाह कर ली। दूसरे पति ने उसके बेटे,/बेटी को अपना लिया!
समाज में ऐसा सामाजिक परिवर्तन आ रहा है---क्या इससे भारतीय पारिवारिक/दाम्पत्य जीवन का विकल्प ध्वस्त नहीं हो रहा?
क्या अच्छा है? क्या बुरा? यह तो भविष्य में पता चलेगा! पर टूटता दाम्पत्य--चिंता का विषय अवश्य है!
माता पिता अपने बेटे व बेटी को सहयोग करें।
यदि दोनों में किसी बात पर मनमुटाव हो तो उन्हें समझाने का सकारात्मक प्रयास करें,--न कि तलाक के लिए उकसायें!
जिस तरह माता पिता द्वारा तय किये गए विवाह में उनका साथ देते हैं,उसी तरह अपनी पसंद से किये गए विवाह में भी,--माता पिता सहयोग करें।बेटे बेटी को अकेला न छोड़ें!माता पिता के आशीर्वाद की छाया बनी रहनी चाहिए! एक नैतिक दायित्व का निर्वाह करें! किसी भी स्थिति में--उन्हें अकेला न छोड़ें!यह सोचना--कि--
'उनकी पसंद,उनका निर्णय,- वे जानें'--ऐसा दृष्टिकोण न बनाएं!
परिवार के लुप्त होते कन्सेप्ट में एक नई जीवनशैली भी आ गयी है--'लिव इन रिलेशन'! नई पीढ़ी की स्वतंत्र सोच को हवा देने में यह 'लिव इन' की नई जीवन शैली
आगे बढ़ रही है! यह परिवार को तोड़ती हुई युवापीढ़ी को स्वछंद बना रही!उनके जीवन के स्थायित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ी कर रही। तत्कालीन आनन्द के लिए 'लिव इन' की ओर जाना उनके भविष्य को अनिश्चित बना देता है।यह भारत के सुखद पारिवारिक जीवन के विरुद्ध जीवन शैली है! यहां परिवार लुप्त हो जाता है। यह यायावर की जिंदगी है। यदि बच्चे हुए तो वे किधर,कहां जाएंगे? उनकी परवरिश कौन करेगा?
तात्कालिक शारीरिक आनन्द के लिए परिवार के सुदृढ स्तम्भ को गिराना/नकारना गलत है! भारतीय समाज में पारिवारिक व दाम्पत्य जीवन का सुरक्षित खम्भा धराशायी होने की कगार पर है।
आज चहुं ओर एकल परिवार रह रहा है। पहले कृषि जीवन व व्यावसायिक जीवन में संयुक्त परिवार होता था,--तब इतनी समस्याएं नहीं होती थीं। पर अब विभिन्न तरह की शिक्षा पद्धति व नौकरी के कारण युवा वर्ग बाहर नौकरी पर जा रहे,विदेश में भी रह रहे,--तो जीवन शैली पूरी तरह बदल रही है यहां तक कि घर का किचन/रसोई भी लुप्त होता जा रहा!बाहर होटल परिसर का बना बनाया भोजन सरलता से उपलब्ध है,तो रसोई में भी मेहनत नहीं चाहते!,ये बहुत सारे कारण हैं--जिनसे हमारा परिवार व दाम्पत्य --लुप्त होता जा रहा। ऊपर से 'लिव इन' भारत की बड़ी सामाजिक समस्या बन गयी है। भरतीय जीवन शैली पर पाश्चात्य संस्कृति व जीवन शैली का प्रभाव जबरदस्त ढंग से पड़ रहा है। हमें चिंतन की जरूरत है।युवा पीढ़ी ने आस्था भी खो दी है। नास्तिक होना फैशन बन गया है। यही आधुनिक होने की परिभाषा भी बन गयी है! स्वछंदगामी युवा पीढ़ी को अंकुश व मर्यादा में लाने का मार्ग तलाशें! पूरे देश के हर वर्ग का दायित्व है यह।
आइए, हम चिंतन करें व कुछ अच्छा विकल्प खोजें! यह हम सबका दायित्व है!