गोवा में गठबंधन की गांठ पड़ी ढीली, अकेले दम बहुमत के दावे बेदम
पणजी ! अपने खूबसूरत समुद्रतटों के चलते देश में पर्यटन के सबसे बड़े केंद्र के रूप में मशहूर 40 सीटों वाले छोटे राज्य गोवा में चार फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 10 से भी अधिक;
पणजी ! अपने खूबसूरत समुद्रतटों के चलते देश में पर्यटन के सबसे बड़े केंद्र के रूप में मशहूर 40 सीटों वाले छोटे राज्य गोवा में चार फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 10 से भी अधिक राजनीतिक दल किस्मत आजमा रहे हैं और सभी अपने पत्ते खोलने के लिए अभी तैयार नहीं है।
गोवा में 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में जहां दो प्रमुख गुटों कांग्रेस नीत गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत गठबंधन के बीच सीधी टक्कर थी, वहीं इस बार गोवा में सरकार बनाने को लेकर करीब सारे ही दल अकेले दम बहुमत हासिल करने का दावा कर रहे हैं।
सबसे रोचक स्थिति यह है कि करीब सभी दल 'आफ द रिकार्ड' यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में 2017 में मतदान से पहले गठबंधन करना उनके लिए मजबूरी जैसा भी है।
पिछले विधानसभा चुनाव-2012 में कांग्रेस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ गठबंधन किया था, तो भाजपा ने महाराष्ट्रवादी गोमंतक (एमजीपी) पार्टी के साथ गठबंधन कर सत्ता हासिल की थी।
कांग्रेस जहां देर से ही सही अब अपना जोर लगाती दिख रही है, वहीं भाजपा इस बार पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर पर निर्भर नजर आ रही है।
कांग्रेस ने लंबे समय से चले आ रहे अटकलों से पर्दा हटाते हुए गोवा फॉरवर्ड पार्टी के बिना अकेले दम चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि वह राज्य के 40 में से 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है, "हम सीटों के बंटवारें पर बातचीत कर रहे थे, लेकिन कुछ वजहों से इस पर फैसला नहीं हो सका।"
राकांपा से पहले ही अलग हो चुकी कांग्रेस पार्टी का कहना है कि गोवा फॉरवर्ड पार्टी और इसके महत्वाकांक्षी अध्यक्ष विजय सरदेसाई के साथ गठबंधन का प्रयास इसलिए असफल रहा, क्योंकि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व त्रिशंकु परिणाम आने पर सरदेसाई के संभावित मोलभाव को शुरू में ही खत्म कर देना चाहता था।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ प्रादेशिक नेता ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, "जोड़तोड़ करने का सरदेसाई का पुराना रिकॉर्ड रहा है। हमारा उद्देश्य शुरू से उनकी महत्वाकांक्षा के पर कतर देने और उन्हें चुनाव हराने का है।"
कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति से आने वाले नेता जोसेफ डी सिल्वा को सरदेसाई के खिलाफ उतारा है। डी सिल्वा 2012 में फातोरदा सीट से निर्वाचित हुए थे।
दूसरी ओर सरदेसाई ने उल्टे कांग्रेस पर भाजपा को, खासकर पर्रिकर को जिताने की साजिश करने का आरोप लगाया।
सरदेसाई ने कहा, "कांग्रेस गोवा में भाजपा की ही दूसरी टीम है। यह सब सर्कस का खेल हो चुका है, जिसके रिंगमास्टर पर्रिकर हैं और कांग्रेस, भाजपा के हाथ का खिलौना बन चुकी है।"
वहीं सत्तारूढ़ भाजपा-एमजीपी गठबंधन का टूटना भी पहले से तय लग रहा था। मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर ने पिछले ही महीने एमजीपी के दो मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया था।
पारसेकर ने कहा, "वे गठबंधन धर्म के खिलाफ काम कर रहे थे, यहां तक कि भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की योजना बना रहे थे। हमें मजबूरी में उनके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी।"
गौरतलब है कि एमजीपी मौजूदा भाजपा और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में भी घटक दल रही है और अब तक तीन बार गठबंधन तोड़ चुकी है। वैसे तो एमजीपी की हैसियत हमेशा से ही गठबंधन में 'छोटे भाई' की रही है, लेकिन गोवा को पहला मुख्यमंत्री देने वाली एमजीपी इस बार अपना कद बढ़ाने को आतुर दिख रही है।
एमजीपी ने इस बार 26 सीटों से चुनाव लड़ने का एलान किया है।
एमजीपी के अध्यक्ष दीपक धावलिकर ने आईएएनएस से कहा, "जीत हमारी ही होगी। हम चाहते हैं कि सुदिन धावलिकर राज्य के नए मुख्यमंत्री बनें।"
सुदिन भाजपा-नीत गठबंधन सरकार में लोक निर्माण मंत्री रह चुके हैं।
एमजीपी ने चुनाव से पहले गोवा सुरक्षा मंच (जीएसएम) और शिवसेना से गठबंधन किया है, लेकिन मतदान के बाद भाजपा से गठबंधन करने का विकल्प भी खुला रखा है। उल्लेखनीय है कि गोवा सुरक्षा मंच के सर्वेसर्वा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गोवा इकाई के पूर्व प्रमुख सुभाष वेंलिंगकर हैं।
धावलिकर ने विकल्पों को खुला छोड़ते हुए कहा, "मैं अभी आपको इस बारे में कुछ नहीं बता सकता..राजनीति में कई बार आपको चाणक्य नीति अपनानी पड़ती है।"
गोवा की राजनीति में इस बार जो सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है, वह पहली बार चुनावी समर में उतरी आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से हो सकता है। आप गोवा में अकेले दम सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।