कभी पंछी बनकर कभी सय्याद बनकर
कभी श्याम बनके कभी घनश्याम बनके कान्हा चले आते हैं राधा नाम बनके;
- डॉ लोक सेतिया
कभी श्याम बनके कभी घनश्याम बनके कान्हा चले आते हैं राधा नाम बनके। मुझे ये भजन समझ नहीं आया। नेता जी कभी गंगा जाकर गंगादास बन जाते हैं कभी जमुना जाकर जमुनादास हो जाते हैं। किसी देश में जाकर दावा करते हैं उसकी मिट्टी से नाता है तो कभी वापस आकर उसकी ईंट से ईंट बजाने की बात किया करते हैं।
अच्छी बात है कि जो जो कहते हैं वास्तव में करते नहीं अन्यथा दुनिया के नक्शे से बस उनके शासन का देश बचता बाकी का नामो-निशान नहीं बचता। हमारे शहर में इक थे जो हर संस्था के अध्यक्ष होने को उपलब्ध रहते थे और जो संस्था उनको मुख्य अतिथि नहीं बनाती उसका अस्तित्व खतरे में रहता था। अध्यक्षता का रोग उनकी कमज़ोरी बन गया था और एक बार अध्यक्ष बनने के बाद उस संस्था को इतिहास बना देते थे।
बात नेता जी की है उनको शांति पुरस्कार की चाहत है और उनके चाहने वाले उन्हीं को समझते हैं दुश्मन देश का वजूद मिटा देंगे इक दिन। महात्मा गांधी और भगतसिंह दोनों एक साथ उन में हैं जिसकी जब उपयोगिता तब उसी का मुखौटा लगा कर सूरत बदल लेते हैं।
नेहरू जी से बड़ी उलझन रहती है नेताजी को पंचशील की बात करने के बाद उनका नाम महात्मा गांधी के बाद बड़ा क्यों है। अपने पास कोई नहीं था तो उन्हीं के दल के किसी नेता की ऊंची मूर्ति लगवाने का काम किया भी मगर जो चाहते हैं हुआ लगता नहीं। खुद उनका कद कितना बढ़ा घटा कोई नहीं जानता अभी तक। समस्या है कोई और नेता दुश्मन देश को बिना शोर मचाए दो फाड़ कर चुका फिर भी बदनामी आपातकाल की मिटाने से नहीं मिटती। च
लना उनके नक्शे-कदम पर चाहते हैं विश्व भर के नेता कहलाने की चाहत की कीमत देश को चुकानी पड़ती है। चुनावी गंगा जो पाप नहीं करवा दे कम है भगवान झूठ न बुलवाये उनसे बड़ा झूठा कोई दुनिया में मिलना संभव नहीं फिर भी सच उनकी चौखट पर बंधा खड़ा है।
सच की हर टकसाल पर उनका लेबल लगा हुआ है। छलिया मेरा नाम छलना मेरा काम मगर हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई सबको दूर से मेरा सलाम। माफ़ी चाहता हूं शब्द जोड़े हैं दूर से गीत में मतलब बदल गया है।
फतेहाबाद हरियाणा ।।