सिसोदिया जी सरकार तो आती जाती रहेगी, पर रंगमच हमेशा है और रहेगा

मशहूर रंगकर्मी और आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने साहित्य कला परिषद द्वारा 'निर्धारित विषयों पर ही नाटक करने हैं’पर आम आदमी पार्टी की सरकार पर सवाल खड़े किए हैं;

Update: 2017-09-25 23:50 GMT

नई दिल्ली। मशहूर रंगकर्मी और आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने साहित्य कला परिषद द्वारा 'निर्धारित विषयों पर ही नाटक करने हैं’पर आम आदमी पार्टी की सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लिखे एक खुले पत्र में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से कहा कि दो थियेटर फेस्टिवल की सूचना में एक नियम में साहित्य कला परिषद के सचिव ने लिखा है कि सरकारी संस्था द्वारा ‘निर्धारित विषयों पर ही नाटक करने हैं।’मतलब अगर फेस्टिवल मे आवेदन करना हो तो,  नाट्यकर्मियों को आपकी सरकार द्वारा दिए, विषयों या एजेंडे पर ही नाटक करना होगा। सवाल है कि आप की सरकार ने नाट्यकर्मियों को इस लायक भी नहीं समझा कि  वे खुद तय कर सकें कि उन्हें किस मुद्दे पर नाटक करना है। 

       उन्होंने सवाल किया अब सरकार के दिशा निर्देश के तहत ही नाटक के विषय होंगे, सरकार तय करेगी कि हमें क्या और कैसे नाटक करने हैं? दोस्त, यह कला की स्वयत्तता के लिए खतरनाक और गलत परंपरा की शुरुआत है। नाटक आपके हिसाब से नहीं चलेंगे, सरकार तो आती जाती रहेगी। पर रंगमच हमेशा है और रहेगा, कृपया, कला की स्वंतत्रता को नियंत्रित न करें। आप अपने तय एजेंडे के अनुरुप विषयों पर नाटक ना करायें, कला की स्वतंत्रता को खत्म ना करें। आपने वाट्सअप मैसेज मे मुझे लिखा कि 'सरकार अगर कोई जरूरत महसूस करे और रचनाकार से उस विषय पर कुछ रचना तैयार करने के लिए कहे तो इसमें किसी को आपत्ति क्यों हो, सरकार में बैठकर मुझे लगता है कि रचनाकार इन मुद्दों पर भी लिखेंगे तो सरकार जनजागरूकता के लिए उन रचनाओं के माध्यम से भी आगे बढ़ेगी।’  

        श्री गौड़ ने कहा कि मनीष भाई, 'सरकार की जरूरत’के कथित  आग्रह पर आप अलग से काम कर सकते हैं। आपके संदेश से सवाल यह भी उठता है कि क्या अभी तक रंगकर्मी मुद्दे विहीन नाटक कर रहे थे, क्या सही है क्या गलत, हमें अभी तक पता ही नही था। आप हमें दिशा देकर कृतार्थ करेंगे। सत्ता में बैठ ऐसी गलतफहमी कम से कम आपको तो नही होनी चाहिए।’साहित्य कला परिषद के भरत मुनि रंग महोत्सव और युवा  नाट्य महोत्सव मे विषय की यह शर्त लगा आप रंगकर्मी की स्वायत्तता के हक को बाध्य कर रहे हैं। महोत्सव मे आर्थिक पक्ष हटा दीजिए, फिर देखिए कितने रंगकर्मी आपके मुद्दों पर काम करते हैं। आपके इसी तर्क पर जब भाजपा अपनी जरूरत के अनुरूप पाठ्यक्रम में कुछ  जोड़ती है या अपनी जरूरत के मुताबिक इतिहास मे संशोधन या  बदलाव करती है तो हम-आप आपत्ति क्यो करते हैं? साहित्य कला परिषद को नकारा, भ्रष्ट तंत्र बताते हुए उन्होंने आप परिषद के इस गैर लोकतांत्रिक फैसले की समीक्षा करें व विषय की बाध्यता तुरंत हटाएं। 

 

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