जनता के सवालों के लिए शाहरुख ने बॉलीवुड में बनाई नई राह
किंग खान और एसआरके के नामों से भी मशहूर शाहरुख खान अपनी फिल्म 'जवान' के साथ बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रहे हैं;
- जगदीश रत्तनानी
हिंदी फिल्म उद्योग एक ऐसी जगह है जहां का चलन, काम की गुणवत्ता और दर्शकों द्वारा स्वीकृति है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर क्या कहा गया है। हिंदू, मुस्लिम और अन्य सभी धर्मों के कलाकार और टेक्निशियन दर्शकों को सपनों की दुनिया में ले जाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
किंग खान और एसआरके के नामों से भी मशहूर शाहरुख खान अपनी फिल्म 'जवान' के साथ बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रहे हैं। पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई इस फिल्म ने कथित तौर पर सप्ताहांत तक 350 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की जिसे बॉलीवुड फिल्म इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी ओपनिंग कहा जा रहा है। कुछ लोग जो सोचते थे कि शाहरुख का करियर गिरावट पर है वे देख सकते हैं कि वह एक बड़े धमाके के साथ लौट आया है। शाहरुख के जादू में इस बार दक्षिण भारतीय फिल्मों की नायिका नयनतारा, दक्षिण के ही कलाकार विजय सेतुपति और निर्देशक एटली कुमार जैसे तमिल सिनेमा के सितारों ने उत्तर और दक्षिण की प्रतिभाओं को एक पैकेज में जोड़ा है जिसे पूरे देश के दर्शकों द्वारा पसंद किया जा रहा है। पौने तीन घंटे लंबी फिल्म का वर्णन निर्माता कंपनी रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट इन शब्दों में करती है- 'एक हाई-ऑक्टेन एक्शन थ्रिलर, एक ऐसे व्यक्ति की भावनात्मक यात्रा को रेखांकित करती है जो समाज में गलतियों को सुधारने के लिए तैयार है।'
कहने की जरूरत नहीं है, इसमें से बहुत कुछ ठेठ बॉलीवुड बड़बोलापन है। लेकिन इसमें 'समाज में हुई गलतियों' को रेखांकित किया गया है जो 'जवान' को अलग-अलग राजनीतिक रंग के साथ एक साहसिक कदम बनाता है। इसे कई लोग इस समय के विशेष राजनीतिक माहौल में बड़े जोखिम के रूप में देखेंगे जो आगामी चुनावों से और गर्म हो जाएगा। यह फिल्म एक सार्वजनिक अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी के कारण मरीजों की मौत, किसानों की आत्महत्या, घटिया उपकरणों के खराब सौदे जो हमारे सैनिकों की जान को खतरे में डालते हैं, पानी और हवा को प्रदूषित करने वाले हमारे कारखानों या चुनिंदा व्यवसायियों, व्हीलर-डीलरों की सुरक्षा पर प्रकाश डालती है।
इसमें, फिल्म समाज की बुराइयों के खिलाफ सामान्य निंदा से परे जाती है क्योंकि वे अपना हक पाने के लिए संघर्ष करते हैं जिसे आम तौर पर दुष्ट बिचौलिए, भ्रष्ट राजनेता या रोजमर्रा के लोगों की परेशानियों की रूढ़ियों में चित्रित किया जाता है। यह सही है कि 'जवान' में अभी भी बहुत सारी सामान्य बातें हैं लेकिन उचित विषयों को भी उछाला गया है। इस लिहाज से शाहरुख और उनकी टीम ने बेहिचक वास्तविक मुद्दों को खोला है और पलायनवादी मसाला इस्तेमाल करते हुए उन ज्वलंत राजनीतिक सवालों को उभारा है जिन्हें कई लोग देख सकते हैं लेकिन वर्तमान राजनीतिक माहौल में बॉलीवुड के कुछ ही लोग ऐसे सवाल पूछने की हिम्मत करेंगे।
बहुत पहले यह माना जाता था कि बॉलीवुड इसलिए काम करता है क्योंकि हल्के- फुल्के गानों और नृत्यों से मिला मनोरंजन लाखों लोगों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी के दुख से मुक्ति दिलाता है। पिछले कुछ दशकों में यह बदल गया। शुरुआती दौर की रोमांटिक कहानियों और अमीर-गरीब टिप्पणी से लेकर एंग्री-यंग-मैन, बोल्ड रोमांस वाली फिल्मों और फिर उदारीकरण के बाद कम लागत वाली फिल्मों का आगमन हुआ जिन्होंने नए विषयों के साथ प्रयोग किया। बदलते समय ने बड़े पर्दे पर आधुनिक समय के मुद्दों को और अधिक मुखर किया जैसे लिव-इन रिलेशनशिप, एलजीबीटीक्यू+अधिकार और उनके वैवाहिक संबंध, जातीय संघर्ष, 'मुठभेड़' हत्याएं, ग्रामीण-शहरी विभाजन, ऑटिज़्म, अकेलापन, मानसिक स्वास्थ्य आदि। पिछले कुछ वर्षों में कई फिल्मों में राजनीतिक संदेश भी रहे हैं और इस अर्थ में बॉलीवुड हमेशा राजनीतिक था लेकिन अप्रत्यक्ष तरीके से। यह ज्यादातर सुरक्षित क्षेत्र में खेला जाता था- बहुत से लोगों ने प्रतिष्ठान की आंखों में नहीं देखा लेकिन विषय पर झुकाव के साथ अपनी बात कही।
बॉलीवुड एक ऐसी जगह है जो गीत और नृत्य के लिए जानी जाती है जिसका घोषवाक्य मनोरंजन और ग्लैमर हैं। बॉलीवुड हमेशा एक जीतने वाला फॉर्मूला पसंद करता है, खासकर बड़े बजट की फिल्मों में जो मोटी फीस लेने वाले रॉकिंग सितारों से भरी होती हैं। क्या 'जवान' की सफलता के साथ यहां से यह बदल जाएगा? हमारे पास बॉलीवुड के लिए एक नए रास्ते का प्रस्ताव है, एक ऐसा रास्ता जो अपनी विशाल और बेजोड़ सॉफ्ट पावर का उपयोग करके इस तरह के कुछ महत्वपूर्ण संदेशों को घर-घर तक पहुंचा सकता है और एक तरह से बड़े बजट के असाधारण आयोजन में इस तरह का संदेश पहुंचाने का शायद ही कभी ऐसा प्रयास किया गया हो। इन अर्थों में, फिल्म सभी को सतर्क रखती है और नई कल्पनाओं तथा संभावनाओं को खोलती है कि खतरनाक राजनीतिक स्थानों में घुसने के बाद बॉलीवुड क्या कर सकता है।
फिल्म का मुख्य आकर्षण एक भाषण है जिसमें शाहरुख खान प्रत्याशी से पूछता है- 'प्रिय उम्मीदवार, आप अगले पांच वर्षों में हमारे लिए क्या करेंगे? अगर परिवार में कोई बीमार पड़ता है, तो आप उनके इलाज के लिए क्या करेंगे? मुझे नौकरी दिलाने के लिए आप क्या करेंगे? और यह सवाल उठाने के बाद नागरिकों से यह चुनने के लिए कहता है कि वे किसे वोट देंगे?'
फिल्म का संदेश स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरियों के क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन और सेवा के वितरण की मांग करना है। धर्म, नस्ल या जाति के नाम पर ध्यान भंग नहीं करना है। ये बिल्कुल ऐसे सवाल और मुद्दे हैं जो आज के भारत में फोकस में नहीं हैं। फिल्म में इन सवालों और मुद्दों को एक सफल मसाला प्रारूप में प्रस्तुत कर उन्हें किसी भी अन्य माध्यम की तुलना में जनता तक ले जाया गया है। इन ज्वलंत मुद्दों में से किसी पर गहराई से टिप्पणी नहीं की गई है। गहराई में न जाकर मुद्दों को उठाने का यह वही खेल है जो सत्तापक्ष ने किया है। इस रूप में 'जवान' की टक्कर वही रास्ता अपनाकर,उछल-कूद करके जनता के सामने दूसरा पक्ष रख रही है।
जनता तक इस संदेश की सुपुर्दगी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की पृष्ठभूमि में आती है जो 2024 के चुनावों के बहुत ही जीवंत संदर्भ में है।
इनमें से कोई भी प्रगतिशील संदेश नहीं है या हमारे समय के जटिल राजनीतिक मुद्दों की एक महत्वपूर्ण परीक्षा नहीं है। यह एक आधारभूत शैली है लेकिन इसका महत्व यह है कि इसे वितरित किया गया था और इसकी सफलता- इसकी व्यापक पहुंच, इसके स्लीक पैकेज और इसके बड़े सवालों में है।
यह विडंबना पूर्ण है कि यह उन लोगों के अपरिष्कृत दृष्टिकोण से मेल खाता है जिन्होंने राष्ट्रीय एजेंडे को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, राजनीतिक विमर्श को बदल दिया है और अब जो लोग सभी प्रकार के कनेक्शन खींचकर फिल्म का बहिष्कार करने के बेताब आह्वान के साथ सामने आए हैं- सनातन धर्म पर टिप्पणी के वर्तमान विवाद से लेकर शाहरुख खान की हालिया तिरुपति मंदिर की यात्रा तक।
हिंदी फिल्म उद्योग एक ऐसी जगह है जहां का चलन, काम की गुणवत्ता और दर्शकों द्वारा स्वीकृति है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर क्या कहा गया है। हिंदू, मुस्लिम और अन्य सभी धर्मों के कलाकार और टेक्निशियन दर्शकों को सपनों की दुनिया में ले जाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
बॉलीवुड एक कुशल व्यवसाय मशीन है जहां आप चाहे किसी भी विभाग से जुड़े हों, जो आपको हर दिन खुद को साबित करने के लिए चुनौती देती है। पैसा कमाने और सफलता की सीढ़ियां चढ़ने का आनंद लेना खुद को चुनौती देना है, न कि राजनीतिक प्रतिष्ठान को चुनौती देना। शाहरुख की 'जवान' ने बात कहने के लिए उस जगह का विस्तार किया है। इस प्रयास को संरक्षित और पोषित किया जाना चाहिए और बढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। इसलिए फिल्म की सफलता अच्छी खबर है लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि आगे क्या होगा और बॉलीवुड इस नई राह को कैसे अपना सकता है या कैसे इसका अनुसरण करेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: दी बिलियन प्रेस)