वैवाहिक दुष्कर्म मामले के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 15 फरवरी तक जवाब मांगा

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 15 फरवरी, 2023 को या उससे पहले मामले में जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा। मेहता ने कहा कि इस मामले में कानूनी निहितार्थों के अलावा सामाजिक निहितार्थ भी होंगे।;

Update: 2023-01-16 12:26 GMT

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग वाली कई याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र सरकार से 15 फरवरी तक जवाब मांगा। शीर्ष अदालत मार्च में इस मामले की सुनवाई करने पर सहमत हुई।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 15 फरवरी, 2023 को या उससे पहले मामले में जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा। मेहता ने कहा कि इस मामले में कानूनी निहितार्थों के अलावा सामाजिक निहितार्थ भी होंगे।

शीर्ष अदालत ने अलग-अलग उच्च न्यायालयों को फैसला लेने देने के बजाय मामले को खुद अपने हाथ में लेने का फैसला किया। मामले को मार्च में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। पीठ ने सभी पक्षों को 3 मार्च तक अपनी दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया। मेहता ने पीठ को सूचित किया कि सरकार ने इस मामले पर राज्य सरकारों के विचार आमंत्रित किए हैं।

पिछले साल मई में वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण पर विभाजित विचार व्यक्त करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की गई थी। साथ ही पिछले साल जुलाई में शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी। मई में शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पति की याचिका पर नोटिस जारी किया था। हालांकि उसने तब उच्च न्यायालय के फैसले और मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग को लेकर शीर्ष अदालत में याचिकाएं भी दायर की गई हैं।

मामले में पिछले साल 11 मई को न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अलग-अलग राय व्यक्त की। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने यह कहते हुए विवादास्पद कानून को रद्द करने का समर्थन किया कि पति को वैवाहिक बलात्कार के अपराध से छूट देना असंवैधानिक है, जिससे न्यायमूर्ति हरि शंकर सहमत नहीं थे।

न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, सहमति के बिना पत्नी के साथ संभोग करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द कर दिया गया है।

Full View

Tags:    

Similar News