यमुना में गिरने वाले नालों पर अस्थायी बांधों से घट रहा नदी का प्रदूषण

यमुना में गिरने वाले गंदे पानी के नालों पर अस्थायी बांधों का निर्माण प्रदूषकों की मात्रा को कम करने में एक प्रभावी तरीका हो रहा साबित हो रहा है;

Update: 2022-02-28 01:42 GMT

दिल्ली। यमुना में गिरने वाले गंदे पानी के नालों पर अस्थायी बांधों का निर्माण प्रदूषकों की मात्रा को कम करने में एक प्रभावी तरीका हो रहा साबित हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना को प्रदूषित करने वाले नाले अगर साफ हो जाएं तो यमुना अपने आप साफ हो जाएगी। दिल्ली में प्रमुख नालों पर बने चेक डैम से प्रदूषण स्तर में गिरावट भी आई है। दरअसल, किसी भी बड़ी नदी को साफ करने के लिए उसके श्रोतों को साफ करना जरूरी होता है। ठीक इसी तर्ज पर यमुना में गिरने वाले सभी गंदे नालों की सफाई का बेड़ा दिल्ली सरकार ने उठाया है। नालों के पानी की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।

जल मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि इन परियोजना के सकारात्मक परिणाम अब दिखने शुरू हो गए हैं। प्रमुख नालों पर बनाए गए अस्थायी बांधों के कारण अब नालों के बीओडी स्तर में सुधार आया है। साथ ही अन्य प्रदूषकों की मात्रा को कम करने में काफी मदद मिली है।

यमुना को स्वच्छ करने की दिशा में चल रही गतिविधियों के अनुरूप, दिल्ली सरकार का सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, यमुना के सबसे बड़े प्रदूषक यानी नजफगढ़ ड्रेन और सप्लीमेंट्री ड्रेन के उपचार के लिए अपनी योजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है।

इस योजना के तहत, नालों के जरिये यमुना के प्रदूषित होने की समस्या के समाधान पर काम किया जा रहा है। सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफसीडी) के मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि यमुना को प्रदूषित करने वाले नालों की सफाई होते ही यमुना अपने आप साफ होने लगेगी। यमुना में मिलने वाले दूषित नालों में प्रदूषकों की मात्रा को कम करने के लिए अस्थायी बांधों का निर्माण एक प्रभावशाली तरीका साबित हो रहा है।

इस परियोजना के तहत, दिल्ली सरकार ने नजफगढ़ ड्रेन और सप्लीमेंट्री ड्रेन के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाने के काम की शुरुआत कर दी है। इस पहल में नजफगढ़ ड्रेन, जो यमुना में गिरने से पहले लगभग 57 किमी चलती है और सप्लीमेंट्री ड्रेन, जो ककरौला रेगुलेटर के पास से निकलती है और नजफगढ़ नाले में गिरती है, दोनों को साफ किया जाएगा। इसके लिए इन नालों के रास्ते में छोटे-छोटे अस्थायी बांध बनाए गए हैं।

एक अस्थायी बांध या मेड़, जो नालों पर बना छोटा अवरोध होता है और यह जल स्तर को ऊपर की तरफ थोड़ा और उठाने में मदद करता है। बांध पानी को अपने पीछे जमा होने देते हैं। बहते पानी के अवरोध को बढ़ाने के लिए नाले के बीच-प्रवाह में बांध बनाए जाते हैं। इससे भारी प्रदूषक वहीं नीचे रुक जाते हैं और पानी धीरे-धीरे निकाल जाता है।

इस समय, दिल्ली जल बोर्ड अपने इंटरसेप्टर सीवर प्रोजेक्ट (आईएसपी) के माध्यम से नजफगढ़ के साथ-साथ सप्लीमेंट्री ड्रेन के अपशिष्ट जल का उपचार करता है।

इसके अलावा, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग द्वारा और भी कई कदम उठाए जा रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से नालियों की गाद निकालना, अपशिष्ट अवरोधों की स्थापना, तैरते ठोस पदार्थो को निकालने के लिए फ्लोटिंग बूम का इस्तेमाल, ठोस अपशिष्ट और निर्माण कार्यों से निकले अपशिष्टों को नाले से हटाना, कचरा और अन्य खरपतवार हटाना, नाली की भूमि में डंपिंग को रोकने के लिए चारदीवारी की मरम्मत करना, पुलों पर तार की जाली का निर्माण, चेतावनी बोर्ड की स्थापना और इनलेट्स जाली को नाली के मुंह लगाना शामिल है।

इस परियोजना के तहत सप्लीमेंट्री ड्रेन पर 11 व नजफगढ़ ड्रेन पर 3 बांध का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है, जबकि 10 बांध का कार्य प्रगति पर है। हाल ही में निर्मित बांधों ने सकारात्मक परिणाम दिखाना शुरू कर दिया है और इसलिए आने वाले समय में इस परियोजना की सफल होने संभावना बढ़ती जा रही है।

प्रदूषण का स्तर मापने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा एक रिपोर्ट बनाई गई, जिसमें रिठाला सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), रोहिणी सेक्टर 11 के पास बने बांध, रोहिणी सेक्टर 16 में बने बांध और रोहिणी सेक्टर 15 में बने बांध के पास से सेंपल एकत्रित किए गए। इससे पता लगा की अस्थाई बांध-निर्माण के बाद सस्पेंडेड ठोस पदार्थों में भारी कमी आई है। रिठाला से रोहिणी सेक्टर 15 के बीच कुल सस्पेंडेड ठोस पदार्थ का स्तर 166 मिलीग्राम प्रति लीटर से घटकर केवल 49 मिलीग्राम प्रति लीटर रह गया है।

यह परिणाम अपशिष्ट जल में अमोनिया की मात्रा में आने वाली भारी कमी को भी दर्शाता है। परीक्षण में पाया गया कि रिठाला में अमोनिया का स्तर 26 मिलीग्राम प्रति लीटर था, जो रोहिणी सेक्टर 15 तक आते आते मात्र 18 मिलीग्राम प्रति लीटर रह गया।

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