सूरत कांड की इंदौर में पुनरावृत्ति

लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के इंदौर से कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने जिस प्रकार से नामांकन वापसी के अंतिम दिन नाम वापस लिया है;

Update: 2024-04-30 09:23 GMT

लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के इंदौर से कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने जिस प्रकार से नामांकन वापसी के अंतिम दिन नाम वापस लिया है, वह गुजरात के 'सूरत कांड की पुनरावृत्ति' ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 'गुजरात प्रवर्तित राजनैतिक मॉडल' कदाचित यही है जिसका उल्लेख उन कारकों में से एक के रूप में अवश्य याद किया जायेगा जिनके कारण देश का लोकतंत्र मौजूदा हालत में है। यह अलग बात है कि कुछ लोग, यहां तक कि मीडिया का एक धड़ा इसे 'मास्टरस्ट्रोक' निरूपित कर सकता है, लेकिन उन्हें भी याद रखना होगा कि राजनीति को नैतिकता, मूल्यों एवं आदर्शों से मुक्त करने का तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है परन्तु वह देश के स्थायी हित में कतई नहीं हो सकता। इसकी कीमत कभी न कभी जिम्मेदार व्यक्ति या संगठन को उठानी ही पड़ेगी जो किसी भी रूप में इसके लिये जिम्मेदार हैं या जिनकी ऐसे कृत्यों में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष भागीदारी रही हो।

लोग यह भूल भी नहीं पाये थे कि अक्षय ने जब कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किया था तब उनके साथ शक्ति प्रदर्शन के रूप में निकले जुलूस में खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी उपस्थित थे। हफ्ते भर में ही भारतीय जनता पार्टी ने गुपचुप 'आपरेशन लोटस' चलाकर उन्हें अपने पाले में कर लिया। अब वहां से भाजपा के उम्मीदवार शंकर लालवानी का जीतना तय कहा जा सकता है क्योंकि इस सीट पर मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ही थी। सोमवार को अक्षय कांति इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला के साथ कलेक्टर यानी निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय पहुंचे और अपना नामांकन वापस ले लिया। मप्र की भाजपा सरकार में मंत्री तथा पार्टी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय की कार में वे लौटे। गर्वित विजयवर्गीय ने इसकी एक सेल्फी अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट करते हुए अक्षय का अपनी पार्टी में स्वागत किया है।

कई वर्षों से इंदौर की सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। इस बार कांग्रेस ने अपना युवा नेता उतारा था जिसके पक्ष में कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार भी कर रहे थे और माना जा रहा था कि इस बार यहां से भाजपा की राह बहुत आसान नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में अक्षय ने इंदौर की चार सीटों पर दावेदारी की थी जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। इसके बजाय कांग्रेस ने उन्हें देश की सबसे बड़ी पंचायत का टिकट थमाकर उनमें अपना भरोसा जताया था। बताया यह जाता है कि इनके खिलाफ दायर एक 17 वर्ष पुराने मामले में तीन दिन पहले ही धारा 307 जोड़ी गई थी। क्या ऐसे नाज़ुक मौके पर अपनी पार्टी की पीठ में नहीं वरन छाती में छुरा भोंकने की वजह यही मामला है? वैसे इस सीट पर तीन अन्य प्रत्याशियों ने भी अपने नामांकन वापस ले लिये हैं।

याद हो कि कुछ ही दिन पहले गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर भी लगभग ऐसा ही एपीसोड हुआ है। वहां तो भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को बाकायदा विजयी घोषित कर उन्हें निर्वाचन अधिकारी द्वारा प्रमाणपत्र भी पकड़ा दिया गया क्योंकि उनके खिलाफ़ कांग्रेस समेत सारे प्रत्याशियों के नामांकन या तो रद्द कर दिये गये या खुद उन्होंने ही वापस ले लिये। यहां 7 मई को तीसरे चरण के अंतर्गत मतदान होना था। उसके पहले मध्यप्रदेश की खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के गठबन्धन के अंतर्गत यह सीट सपा को दी गई थी लेकिन उसकी प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन रद्द हो गया जिससे प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को लगभग वाकओवर मिल गया है। कहने को तो इंडिया गठबन्धन ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रत्याशी पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति को समर्थन दिया है लेकिन इसे महज खानापूरी माना जा रहा है। इस सीट पर 26 अप्रैल को यानी दूसरे चरण के तहत मतदान हो चुका है।

कांग्रेस तथा उसके नेतृत्व में बनी इंडिया गठबन्धन के लगातार मजबूत होने तथा भाजपा के कमजोर होते विमर्श का यह साइड इफेक्ट माना जा रहा है जिसके अंतर्गत भाजपा तीसरी बार केन्द्र की सत्ता में आने के लिये तमाम तरह के हथकण्डे अपना रही है। तिस पर, भाजपा ने अब की बार खुद के बल पर 370 तथा अपने नेशनल डेमोक्रेटिक गठबन्धन (एनडीए) के माध्यम से 400 सीटों का लक्ष्य रखा है। उसके गिरते ग्राफ एवं खुद मोदी की घटती लोकप्रियता के चलते यह लक्ष्य असम्भव माना जा रहा है लेकिन एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे लोकसभा क्षेत्र में जैसा खेला भाजपा ने किया है उससे लगता है कि वह चुनाव मैदान में उतरे बगैर ही इसी तरह से अधिकतम सीटें अपनी झोली में डाल लेना चाहती है ताकि मतदान केन्द्रों के जरिये उसकी सम्भावित हार के चलते घटने वाली सीटों की यथासम्भव भरपायी पहले से ही कर ली जाये। चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने निर्वाचन अधिकारी की मदद से अल्पमत में होने के बावजूद अपने उम्मीदवार को जीत दिलाने की कोशिश की थी, वह बतलाता है कि जो भाजपा एक छोटे से स्थानीय निकाय को हासिल करने के लिये नैतिक गिरावट के तमाम मानकों को नज़रंदाज कर सकती है तो लोकसभा सीट पाने तथा अपने राजनैतिक सफर के सबसे बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये वह क्या-क्या नहीं कर सकती।

इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी की नाम वापसी ऐसे समय में हुई है जब पार्टी के कुछ नेता पार्टी छोड़ रहे हैं अथवा पद त्यागकर अपनी नाराजगी जतला रहे हैं। तो भी कांग्रेस को निराश न होकर अपनी लड़ाई जारी रखनी चाहिये।

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