धर्म सिखाता है जीवन की विधा : साध्वी ऋतंभरा

जीवन से जुड़ी सच्चाईयों को कुरेदते हुए साध्वीं ऋतंभरा ने श्रद्धालुओं को मानस कथा के दूसरे दिन कहा कि आज के लोगों को बैंक-बैलेंस की चिंता सता रही है;

Update: 2017-07-02 18:13 GMT

चिंता बैंक बैलेंस की नहीं,मां-पिता के आर्शिवाद की करें
मन की दशा और चिंतन को बदलने की है आज जरूरत

 

रायपुर। जीवन से जुड़ी सच्चाईयों को कुरेदते हुए साध्वीं ऋतंभरा ने श्रद्धालुओं को मानस कथा के दूसरे दिन कहा कि आज के लोगों को बैंक-बैलेंस की चिंता सता रही है लेकिन माता-पिता के आर्शिवाद की नहीं। आज लोग जीएसटी को लेकर चिंतित हैं। छोटी-छोटी विपत्तियों से रोना शुरु कर देते हैं। जीवन निकल जाता है तब जीवन जीने का ध्यान आता है। जीवन के भवन में खजाने को पाने के लिए जब जाते है तो भोग, लालच, काम, क्रोध जैसे द्वार सामने आ जाता है मनुष्य इसी में उलझ कर रह जाता है और जीवन देने वाला प्रभु जो कि असली खजाना है वंचित रह जाता है। आज मन की दशा और चिंतन को बदलने की जरुरत है, जितना देते नहीं है उससे कहीं ज्यादा पाने की इच्छा रखते है। धर्मराजों तक को विवश करने की शक्ति भारत की नारियों में है, जीवन की विधा सिखाता है धर्म। 

इंडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में त्रिदिवसीय श्री मंगलमानस अनुष्ठान के दूसरे दिन साध्वी ऋतंभरा ने - साधना ही मुक्ति का शुभ द्वार है, सत्य ही तो शांति का आधार है, भक्ति वंदना के साथ सत्संग की शुरुआत की। जीवन में हम क्रिया नहीं प्रतिक्रिया करते है, जितना देते नहीं है उससे हजार गुणा ज्यादा पाने की अपेक्षा रखते हैं। दूसरों के अभिमान में प्यार का द्वार बनाकर तो देखो, समाधान के लिए तुम पहल तो करो, सब में रहकर अलग रहने की विधा सीखो। परमानंद में रहने और जीवन की विधा सिखाता है धर्म। हमारी पहचान-हमारी संस्कृति, हमारे संस्कारों से है, मर्यादाओं में जीने वाले हम लोग है और यही भारतीय नारी की महिमा है। संबंधों की पवित्रता और रिश्तों के प्रति निष्ठा भारत की नारियों में है। 

दीदी माँ ऋतंभरा ने कहा कि जैसे हमारी चित्त बोलती है वैसे ही सुनाई पड़ती है, इसलिए चित्त की वृत्ति, सुरति को ठाकुरजी से जोड़ो। संबंध जोड़कर ईश्वर को साधो। जो चले जाता है वह अचल नहीं रह सकता इसलिए इनसे जुड़े हुए क्यों बैठे हो। प्रभु के हृदय को प्रेम से ही जीता जा सकता है, जीवन निकल जाता है तब जीवन जीने का ध्यान आता है। जीवन के भवन में खजाने को पाने के लिए जब जाते है तो भोग, लालच, काम, क्रोध जैसे द्वार सामने आ जाता है मनुष्य इसी में उलझ कर रह जाता है और जीवन देने वाला प्रभु जो कि असली खजाना है वंचित रह जाते है। आज मन की दशा और चिंतन को बदलने की जरुरत है। मनुष्य का मन उसे नचाता है। विषय इतना सा होता है लेकिन वह विषैला होता है, वक्त तब मांगा जब वक्त टल गया इसलिए वक्त रहते ही सब कुछ कर लेना चाहिए। 
भारत माता की करें जय-जय कार
कुछ कर गुजरने की व्याकुलता ही जय है इसलिए भारत माता की जय, परिवार की जय, भावना की जय, शक्ति की जय, सदाचार की जय, गुरु-शिष्य परंपरा की जय, संतों की पवित्रता की जय, मोक्ष के अराधना की जय-जय कार से ही भारत की पूरे विश्व में जय होगी। उन्होंने कुटिल सोंच वालों को ललकारते हुए कहा कि प्रभु ने जिस काम के लिए उन्हें इस धरा पर भेजा है उसे भूलकर वे स्वयं को मालिक समझ बैठे है।  
जिंदगी की सच्चाई का बोध संत ही कराएंगे
दीदी माँ ऋतंभरा ने श्रद्धालुओं को हंसाते हुए कहा कि कोई फिल्मी सुपरस्टार आपको जीवन की सच्चाई का पहचान नहीं कराएंगे, वह तो केवल मनोरंजन दे सकते है। असली बोध तो संत ही कराएंगे। गुलेल में गोली लगाकर पके हुए आम तोड़ने वाले अब कहां रह गए, आज लोग मोबाइल में उलझ गए हैं। संत स्वभाव होता है, करुणा प्रेम और सत्य की बातें संत ही बताएंगे। 
थोपी हुई मुस्कुराहट से जीवन नहीं संवरती
गर्मी की छुट्टियों में आज लोग बच्चो को पर्सनालिटी डेवल्पमेंट के लिए भेजते हैं जो बच्चों के चेहरे पर मुस्कान कैसे लाएं, क्या व्यवहार करें यह सिखाना चाहते है। लेकिन ध्यान रखें जब हृदय में आनंद होगा तभी चेहरे पर मुस्कुराहट आएगी। थोपी हुई मुस्कुराहट से जीवन नहीं संवरती है। 
छोटी-छोटी विपत्तियों से न डरें
दीदी माँ ने कहा कि छोटी-छोटी विपत्तियों से डरने की जरुरत नहीं है। कुछ महिलाएं उनसे आकर पूछती है क्या हमें हनुमान चालीसा नहीं पढ़ना चाहिए, क्यों नहीं पढ़ना चाहिए? क्या तुम स्वर्ग की अप्सरा हो जिसे देखकर हनुमान जी का मन खराब हो जाएगा। भय पर आधारित भक्ति नहीं होती, प्रभु के हृदय को प्रेम से ही जीता जा सकता है। ऐसी सोच मानसिक कमजोरी देती है इसलिए मन और चिंतन की दिशा को बदलो। 
चिंता आर्शिवाद की करो, बैंक बैलेंस की नहीं
लोगों को आज अपने बैंक बैलेंस की चिंता सताए जा रही है, कुण्डली में बैठे ग्रह दोष से वे घबरा रहे है। माँ और पिता की चरण को चूम लो, उनका आर्शिवाद रक्षा कवच बन जाएगा इसलिए उस आर्शिवाद की ही चिंता करो। लोग जीएसटी से घबरा रहे है, दीदी माँ ने अपने अंदाज में समझाया कि पहले अपनी कमाई का पैसा माँ को देते थे, शादी के बाद अब वही पैसा पत्नी को देने लगे है यही तो है जीएसटी। 
रो पड़ी महिलाएं
महिलाओं के आँखों में उस वक्त आँसू आ गए जब दीदी माँ ने उन्हें बताया कि आज संतानें सोने-चांदी की चाहत रखते है, अचल संपत्ति का बंटवारा चाहते है इसके लिए वे अपने माँ-बाप की उपेक्षा भी कर बैठते है। इसी से जोड़कर उन्होंने भ्रुण हत्या के संदर्भ में उन्होंने कहा कि आज बेटियों को जन्म से पहले ही मारा जा रहा है, यही बेटियां परिवार को सुख और शांति की प्रसाद दे सकती है। भारत की नारियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि धर्मराजों तक को उन्होंने विवश किया है, भारतीय नारियों में गंगा की गहराई है। भारत की वे नारियां जिन्हें अपने नहीं अपने परिवार की चिंता होती है। 
आज मानस कथा सुबह 11 बजे से
आयोजन समिति की ओर से जानकारी देते हुए मनोज कोठारी ने बताया कि श्री मंगलमानस अनुष्ठान का रविवार को समापन होगा जिसमें सुबह 8 बजे हवन व पूर्णाहूति तथा दीदी माँ ऋतंभरा की वातसल्य वाणी का सत्संग सुबह 11 बजे से, पश्चात फूलों की होली खेली जाएगी। समापन प्रसादी वितरण से होगा। छत्तीसगढ़ सिक्ख फेडरेशन की ओर से दीदी मां को कृपाण भेंटकर स्वागत किया गया। शहर की विभिन्न सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों की ओर से भी स्वागत किया गया। 

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