कर्मचारियों से रिकव्हरी, चखना दुकानों से वसूली
सरकार ने अवैध शराब की बिक्री और कोचिया प्रथा पर रोक लगाकर लोगों को शराब के नशे से दूर करने व धीरे-धीरे शराब बंदी की ओर कदम बढ़ाने का इरादा कर शराब दुकानों का सरकारीकरण किया हो;
कोरबा। सरकार ने अवैध शराब की बिक्री और कोचिया प्रथा पर रोक लगाकर लोगों को शराब के नशे से दूर करने व धीरे-धीरे शराब बंदी की ओर कदम बढ़ाने का इरादा कर शराब दुकानों का सरकारीकरण किया हो लेकिन दूसरी ओर यह नई व्यवस्था दूसरे तरीके से अधिकारियों के लाल होने का माध्यम बन रही है। पहले शराब ठेकेदारों से महीना बंधा था और अब शराब दुकानों में होने वाले नुकसान की भरपाई से लेकर चखना दुकानदारों से वसूली और यहां तक कि शीशी बेच कर अधिकारी व उसके शागिर्द लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं, जिसका कोई हिसाब- किताब नहीं है।
जिले में नई व्यवस्था के बाद कुल 38 देशी-विदेशी मदिरा दुकानों का संचालन हो रहा है। आबकारी विभाग के अंतर्गत प्राइम वन प्राईवेट लिमिटेड भोपाल के द्वारा संचालित करायी जा रही दुकानों में सुपरवाईजर, सेल्समेन और बहुउद्देशीय कर्मचारी काम कर रहे हैं। अप्रैल 2017 से लागू इस नई व्यवस्था में काम कराने की अपनी शर्ते भी लागू हैं। माना जा रहा था कि शराब दुकानों का सरकारीकरण कर दिए जाने से भ्रष्टाचारों पर विराम लगेगा, लेकिन माहिर अधिकारी दूसरा रास्ता अपने शागिर्दो के साथ निकाल ही लेते हैं। वैसे तो संचालक कंपनी के द्वारा शराब दुकानों में होने वाले नुकसान की भरपाई वहां के कर्मचारी से प्राय: हर महीने की जाती है, लेकिन ताजा तरीन मामला छन कर सामने आया है, जिसमें आबकारी विभाग के अधिकारी ने नुकसान के एवज में जमा किए गए रुपए ही गोलमाल कर दिया।
सूत्रों के मुताबिक निहारिका की विदेशी और दर्री क्षेत्रातंर्गत लाटा में संचालित देशी और विदेशी शराब दुकान में लगभग 5 लाख का घाटा सामने आया।
निहारिका में अप्रैल-मई माह के मध्य और लाटा में अगस्त-सितंबर के मध्य यह घाटा हुआ है। निहारिका के दुकान का घाटा पूर्व के कर्मचारियों व सेल्समेन से वसूल कर 1 लाख 72 हजार रुपए आबकारी विभाग के अधिकारी के पास जमा कर दिया गया। नियमत: आबकारी के माध्यम से यह राशि बैंक के माध्यम से सरकार के खाते में जमा होनी चाहिए थी, लेकिन जमा नहीं कराया गया। सरकार ने घाटे के इस रकम को संचालक कंपनी के खाते से रिकव्हर कर लिया और कंपनी के द्वारा इस घाटे की पूर्ति हेतु सभी 38 दुकानों के कर्मचारियों से वसूली उनके वेतन में कटौती कर की गई।
सुपरवाईजर से 6 हजार, सेल्समेन से 5 हजार से अधिक और यहां तक कि झाड़ू- पोछा लगाने वाले तक से भी वेतन कटौती कर पांच लाख से अधिक की रिकव्हरी कंपनी ने की। सूत्र बताते है कि दो माह पहले भी दो-दो हजार रुपए इसी नाम से काटा गया था और उससे पहले चार सौ व दो सौ रुपए की भी कटौती की गई। सवाल यह है कि जब निहारिका की दुकान का घाटा 1 लाख 72 हजार रुपए रिकव्हर कर लिया गया था, तब दोबारा वसूली की नौबत क्यों आयी और पहले की गई वसूली की राशि सरकार के खाते में जमा क्यों नहीं की गई? इस तरह शराब दुकान कर्मियों पर दोहरा आर्थिक भार डाल कर उनका शोषण व 1 लाख 72 हजार रुपए का घपला होने की बात सामने आयी है।
शीशी बेच कर कमा रहे चार लाख?
सूत्रों की माने तो आबकारी विभाग के चर्चित अधिकारी के द्वारा अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर शराब दुकान में चखना व्यवसायियों से प्रतिदिन ठेला वाले से तीन सौ रुपए व दुकान वाले से 15 सौ से 25 सौ रुपए, इस तरह हर महीने 50 से 60 हजार की वसूली की जा रही है। वसूली के लिए अधिकारी ने बकायदा अपने भरोसेमंद कर्मचारी भी रखे है।
जो व्यवसायी थोड़ा बहुत कम पैसा मंदी के नाम से लेने की गुजारिश करता है, उसे दुकान नहीं लगाने व कार्यवाही की हिदायत दी जाती है। यह भी खबर छनकर आयी है कि किराये के भवन में चल रहे दुकानों का किराया सरकार को ज्यादा बताकर वसूल कर इसकी लगभग आधी रकम ही मकान मालिक को आपस में तय किरायेदारी के अनुसार दी जा ही है। सूत्र बताते हैं कि शराब दुकानों में आने वाली पेटियों के पु_े और शराबियों द्वारा छोड़ गए शीशी-बोतल को भी इस अधिकारी के द्वारा अपने लाभ के लिए परिचित से खुलवाई गई कबाड़ की दुकान में बेचा जाकर प्रतिमाह करीब चार लाख रुपये की बेहिसाब कमाई की जा रही है, जिसका कोई लेखा-जोखा नहीं है।
नाम न छापने की शर्त पर एक दुकान के कर्मचारी ने बताया कि दुकान में तीन दिन में माल आता है और एक दिन का पु_ा 70 से 80 हजार रुपए का होता है और इस तरह लगभग सभी दुकानों को मिलाकर महीने में 4-5 लाख रुपये की कमाई इस अधिकारी की हो रही है। शराब पेटियों के शीशी पर सरकार की कोई जवाबदारी नहीं है और इस पर शराब दुकानों वालों का हक होता है। इसके बावजूद उक्त अधिकारी के द्वारा यह कार्य किया जा रहा है।