रुपये को सहारा देने के लिए आरबीआई ने दी ईसीबी में ढील

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रुपये की गिरावट को थामने के मकसद से बुधवार को विदेशों से वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) की नीति के कुछ पहलुओं को उदार बनाया जो रुपया प्राधिकृत बांड से संबद्ध है;

Update: 2018-09-20 02:08 GMT

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रुपये की गिरावट को थामने के मकसद से बुधवार को विदेशों से वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) की नीति के कुछ पहलुओं को उदार बनाया जो रुपया प्राधिकृत बांड से संबद्ध है। आरबीआई की ओर से जारी एक अधिसूचना में कहा गया कि केंद्रीय बैंक ने विनिर्माण क्षेत्र से जुड़े पात्र ईसीबी कर्जदार को पांच करोड़ डॉलर तक या कम से कम औसत एक साल की अवधि में परिपक्व होने वाली समतुल्य राशित ईसीबी से जुटाने की अनुमति देने का फैसला लिया है। 

अब तक ईसीबी से पांच करोड़ डॉलर या इसके समतुल्य राशि पात्र कर्जदार कम से कम औसतन तीन साल की परिपक्वता अवधि के लिए जुटा सकता था। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आर्थिक समीक्षा बैठक करने के बाद पिछले सप्ताह सरकार ने जिन पांच उपायों की घोषणा की थी उनमें एक उपाय के रूप में न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि को तीन साल से घटाकर एक साल करने का निर्णय शामिल है। 

वर्तमान में भारतीय बैंक रुपया प्राधिकृत बांड (आरडीबी) के लिए प्रबंधक व ग्राहक हैं और ग्राहक के तौर पर बांड जारी होने के छह महीने के बाद उनका स्वामित्व बांड के आकार के पांच फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है। इस बांड को मसाला बांड भी कहा जाता है। 

केंद्रीय बैंक ने कहा कि इसने लागू मितव्ययी मानकों के तहत विदेशों में जारी आरडीबी में भारतीय बैंकों को प्रबंधक/ग्राहक/बाजार निर्माता/व्यापारी के तौर पर हिस्सा लेने की अनुमति प्रदान करने का फैसला लिया है। 

पिछले सोमवार को सरकार ने 31 मार्च 2019 तक जारी रुपया प्राधिकृत बांड से प्राप्त उधारी पर विदेशी कंपनियों समेत अनिवासियों को भारतीय कंपनियों द्वारा भुगतान योग्य ब्याज पर कर में छूट प्रदान की। 

अब तक एक जुलाई 2020 से पहले जारी ऐसे बांड पर भुगतान योग्य ब्याज पर रियायती कर की दर पांच फीसदी थी। 

इन कदमों का मकसद विदेशी मुद्रा की आमद बढ़ाना है ताकि चालू खाते के घाटे को कम किया जा सके और डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट पर पर अंकुश लगाया जाए। 

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