किसान केसरी रामेश्वर डूडी पंचतत्व में विलीन, राजस्थान में शोक की लहर

राजस्थान कांग्रेस के नेता किसान केसरी रामेश्वर डूडी का शुक्रवार देर रात एक बजे निधन हो गया;

Update: 2025-10-05 00:50 GMT

राजनीति और किसान हितों की आवाज अब मौन, रामेश्वर डूडी का निधन

  • बीकानेर ने खोया अपना जननेता, डूडी को दी गई अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
  • राजस्थान के किसान आंदोलन की मजबूत आवाज अब नहीं रही

बीकानेर। राजस्थान कांग्रेस के नेता किसान केसरी रामेश्वर डूडी का शुक्रवार देर रात एक बजे निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार उदयरामसर से दो किमी दूर उनके फार्म हाउस में सम्मान के साथ किया गया। पुत्र अतुल डूडी ने उनको मुखाग्नि दी।

बता दें कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे डूडी लंबे समय से बीमार थे। परिवार के अनुसार वे करीब 25 महीने से कोमा में थे। जैसे ही उनके निधन की सूचना लोगों को मिली, न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि जिले भर में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन पर राज्यपाल हरिभाऊ बागडे, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, और प्रदेश के अनेक नेताओं ने शोक व्यक्त किया।

इससे पहले डूडी के निवास पर उनका शव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहां उनके चाहने वालों ने पुष्प अर्पित कर अपने नेता को श्रद्धाजंलि दी। डूडी की अंतिम यात्रा बीकानेर स्थित उनके आवास वैद्य मघाराम कॉलोनी से रवाना हुई। इस दौरान पूर्व सीएम अशोक गहलोत और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने उनके पार्थिव शरीर को कंधा दिया।

इससे पहले दोपहर में पूर्व सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, मंत्री सुमित गोदारा, किसान आयोग के अध्यक्ष सी आर चौधरी, प्रतिपक्ष नेता टीकाराम जूली, केन्द्रीय मंत्री के पुत्र रविशेखर मेघवाल, जिला प्रमुख मोडाराम मेघवाल, सूरतगढ़ विधायक डूंगरराम गेदर, कांग्रेसी नेता हेमाराम चौधरी, हरीश चौधरी, पूर्व सांसद बद्री जाखड़, पूर्व मंत्री डॉ बी डी कल्ला, गोविन्दराम मेघवाल, भंवर सिंह भाटी, लक्ष्मण कड़वासरा, महेन्द्र गहलोत, पूर्व विधायक बिहारी लाल विश्नोई, विधायक विकास चौधरी, सांसद हनुमान बेनीवाल, पूर्व संसदीय सचिव कन्हैयालाल झंवर सहित हजारों लोगों ने जननेता को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की।

रामेश्वर डूडी उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में किसानों की मजबूत आवाज के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति में एनएसयूआई से की थी। 1995 में वे नोखा के प्रधान बने और पंचायती राज में सक्रिय रहे।

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