वाह रे प्रदूषण बोर्ड, पराली जले धड़ल्ले से पर अलाव से आपत्ति
निगम द्वारा 50 स्थानों पर अलाव जलाना तय है जबकि इसरो की रिपोर्ट के अनुसार केवल डबरा भितरवार क्षेत्र में ही 800 से अधिक स्थानों पर पराली जलाई जाती है। फिर प्रदूषण की बड़ी वजह क्या हुई?;
By : देशबन्धु
Update: 2022-12-02 16:22 GMT
गजेन्द्र इंगले
ग्वालियर: कड़कड़ाती सर्दी से बचाव के लिए नगर निगम रात में लकड़ी के अलाव जलाकर जनता को राहत देता है। लेकिन इस साल प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी एचएस मालवीय ने निगमायुक्त किशोर कान्याल को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने अलाव जलाने आपत्ति जताते हुए लिखा है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स 330 से 460 तक पहुँच चुका है। लकड़ी के अलाव जलाने पर स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है। प्रदूषण बोर्ड ने लकड़ी की जगह स्मोकलेस कोल, गैस फायर स्टोव के विकल्प का सुझाव भी दिया है। निगमायुक्त किशोर कान्याल ने विकल्प अपनाने की बात कही है। एक तरफ शहर में जलने वाले अलाव पर इतना हो हल्ला हो रहा है। तो दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रो में खुले आम पराली जलाई जा रही है जो बढ़ते प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है। अब पराली छोड़ अलाव पर फोकस समझ से परे है।
आपको बता दें कि डबरा भितरवार क्षेत्र में खुले आम पराली जलाई जा रही है, जिसकी खबर को देशबन्धु ने प्रकाशित किया था, साथ ही इस मामले में जिला पंचायत सीईओ आशीष तिवारी व प्रदूषण अधिकारी को भी अवगत कराया था। लेकिन इस मामले को न तो प्रदूषण बोर्ड ने गम्भीरता से लिया न जिला प्रशासन या जिला पंचायत ने कोई कार्यवाही की। प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्र अधिकारी एचएस मालवीय का कहना है कि जिला प्रशासन को कार्यवाही करनी चाहिए। जबकि जिला पंचायत सीईओ आशीष तिवारी भी पराली जलाने के प्रश्न पर जवाब देने से बचते नजर आए। निश्चित ही लकड़ी के अलाव के विकल्प स्मोकलेस कोल, गैस फायर स्टोव का उपयोग होना चाहिए लेकिन यदि पराली जलाने पर प्रतिबंध पर भी सख्ती हो तो प्रदूषण नियंत्रण के ज्यादा अच्छे परिणाम देखने को मिले।
इसरो इस तरह जल रही पराली की सेटेलाइट इमेज के आधार पर रिपोर्ट भी देता है। इस रिपोर्ट में सैंकड़ों जगह पर पराली जलाने का जिक्र है। देशबन्धु संवाददाता ने भी स्पॉट पर जाकर कई जगह की जीपीएस इमेज लेकर सम्बंधित अशिकारियों को दी थी, अब जिम्मेदार अधिकारियों की ऐसी क्या मजबूरी है कि बढ़ते प्रदूषण की इतनी बड़ी वजह पर आंख मूंद कर बैठे हैं। नगर निगम द्वारा केवल 50 स्थानों पर अलाव जलाना तय है जबकि इसरो की रिपोर्ट के अनुसार केवल डबरा भितरवार क्षेत्र में ही 800 से अधिक स्थानों पर पराली जलाए जाने की सेटेलाइट इमेज उपलब्ध हैं। अब पाठक ही तय करें कि प्रदूषण की बड़ी वजह क्या है और किस वजह पर जिम्मेदार साहब को सक्रियता दिखानी चाहिए।