वैचारिक मंथन से निकली कविताएं

भारतीय ज्ञान पीठ से 2022 में प्रकाशित 53 सार्थक नई कविताओ के संग्रह कोरोना काल में अचार डालता कवि के साथ उन्होंने वैचारिक दस्तक दी है;

Update: 2023-08-13 03:19 GMT

- विवेकरंजन श्रीवास्तव

भारतीय ज्ञान पीठ से 2022 में प्रकाशित 53 सार्थक नई कविताओ के संग्रह कोरोना काल में अचार डालता कवि के साथ उन्होंने वैचारिक दस्तक दी है । इसे पढ़ने के लिये भारतीय ज्ञानपीठ से किताब का प्रकाशन ही सबसे बड़ी संस्तुति है । किताब में परम्परा के विपरीत किसी की कोई भूमिका नहीं है । वे बिना प्राक्कथन में कोई बात कहे पाठक को कविताओ के संग साहित्यिक अवगाहन कर वैचारिक मंथन के लिये छोड़ देते हैं । हमारे समय की राजनैतिक तथा सामाजिक स्थितियों की विवशता से सभी अंतर्मन से क्षुब्ध हैं । समाज विकल्प विहीन किंकर्तव्यमूढ़ जड़ होकर रह जाने को बाध्य बना दिया गया है ।

हिन्दी व्यंग्य और कविता में रामस्वरूप दीक्षित जाना पहचाना नाम है । वे टीकमगढ़ जेसे छोटे स्थान से साहित्य जगत में बड़ी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं । हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सक्रिय रहे हैं तथा इन दिनो सोशल मीडीया के माध्यम से देश विदेश के रचनाकारों को परस्पर चर्चा का सक्रिय मंच संचालित कर रहे हैं । भारतीय ज्ञान पीठ से 2022 में प्रकाशित 53 सार्थक नई कविताओ के संग्रह कोरोना काल में अचार डालता कवि के साथ उन्होंने वैचारिक दस्तक दी है । इसे पढ़ने के लिये भारतीय ज्ञानपीठ से किताब का प्रकाशन ही सबसे बड़ी संस्तुति है । किताब में परम्परा के विपरीत किसी की कोई भूमिका नहीं है । वे बिना प्राक्कथन में कोई बात कहे पाठक को कविताओ के संग साहित्यिक अवगाहन कर वैचारिक मंथन के लिये छोड़ देते हैं । हमारे समय की राजनैतिक तथा सामाजिक स्थितियों की विवशता से सभी अंतर्मन से क्षुब्ध हैं ।

समाज विकल्प विहीन किंकर्तव्यमूढ़ जड़ होकर रह जाने को बाध्य बना दिया गया है । रामस्वरूप दीक्षित जी जैसे सक्षम शब्द सारथी कागजों पर अपने मन की पीड़ा उड़ेल लेते हैं . वे लिखते हैं 'यूं तो कविता कुछ नहीं कर सकती , उसे करना भी नहीं चाहिये , कवि के अंतर्मन के भावों का उच्छवास ही तो है वह....किन्तु वे अगली पंक्तियों में स्वयं ही कविता की उपादेयता भी वर्णित करते हैं ... कविता कह देती है राजा से बिना डरे कि तुम्हारी आँखो में उतर आया है मोतिया बिंद' इस संग्रह की प्रत्येक कविता में साहस के यही भाव पाठक के रूप में मुझे अंतस तक प्रभावित करते हैं । वे अपनी कविताओ में संभव शाब्दिक समाधान भी बताते हैं किन्तु दुखद है कि जमीनी यथार्थ दुष्कर बना हुआ है . लोगों के मनों में शाश्वत मूल्यों की स्थापना के लिये इस संग्रह जैसा चेतन लेखन आवश्यक हो चला है ।

युद्ध की जरूरत में वे लिखते हैं कि जंगल बिना आपस में लड़े बिना बचाये रखते हैं अपना हरापन , ... मनुष्य ही है जिसे खुद को बचाने के लिये युद्ध की जरूरत है । हत्यारे शीर्षक से लम्बी कविताओ के तीन खण्ड हैं . तारीफ की बात यह है कि भाव के साथ साथ कोरोना काल में अचार डालता कवि की सभी कविताओ में नई कविता के विधान की साधना स्पष्ट परिलक्षित होती है । म_रता की हदों तक परिवेश से आंखें चुराने वाले समाज के इस असहनीय आचरण को इंगित करते हुये वे लिखते हैं कि ' जब खोटों को पुरस्कृत और खरों को बहिृ्कृत किया जा रहा था तब आप क्या कर रहे थे ? के उत्तर में हम कहेंगें कि हम सयाने हो चुके थे और हमने चुप रहना सीख लिया था' . राम स्वरुप जी की कवितायें जनवादी चिंतन से भरपूर हैं । कुछ शीर्षक देखिये गूंगा , बाज , भेड़िये , मुनादी , मजदूर , ताले , इतवार , खतरनाक कवि , तानाशाह , आदि सभी में मूल भाव सदाशयता और मानवीय मूल्यों के लिये आम आदमी की आवाज बनने का यत्न ही है ।

पिता , पिता का कमरा , माँ के न रहने पर वे रचनायें हैं जो रिश्तों की संवेदना संजोती हैं । संग्रह की शीर्षक रचना कोरोना काल में अचार डालता कवि में वे लिखते हैं कि अचार डालने में डूबा कवि भूल गया कि बाहरी दुनियां में जिस रोटी के साथ अचार खाया जाता है वह तेजी से गायब हो रही है। इन गूढ़ प्रतीको को डिकोड करना पाठक को साहित्यिक आनंद देता है । अनेक बिन्दुओ पर कथ्य से असहमत होते हुये भी मैने दीक्षित जी की सभी रचनायें इत्मिनान से शब्द शब्द की जुगाली करते हुये तथा उनके परिवेश को परिकल्पित करते हुये पढ़ीं और उनके विन्यास , शब्द योजना , रचना काल तथा भाषाई ट्विस्ट का साहित्यिक आनंद लिया । संग्रह पढ़ने मनन करने योग्य है।

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