पटना पुस्तक मेला : 8वें दिन किन्नरों की समस्याओं पर चर्चा
पटना के नवनिर्मित सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर के ज्ञान भवन में चल रहे 10 दिवसीय पुस्तक मेले के आठवें दिन शनिवार को जहां किन्नरों की समस्याओं पर परिचर्चा का आयोजन किया गया;
पटना। पटना के नवनिर्मित सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर के ज्ञान भवन में चल रहे 10 दिवसीय पुस्तक मेले के आठवें दिन शनिवार को जहां किन्नरों की समस्याओं पर परिचर्चा का आयोजन किया गया, वहीं नाटक 'कुत्ते' के मंचन के जरिये लचर कानून व्यवस्था पर व्यंग्यात्मक प्रहार किया गया। इस बीच, पुस्तक मेले में पुस्तक प्रेमियों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। सेंटर फॉर रीडरशिप डेवलपमेंट (सीआरडी) और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा आयोजित पटना पुस्तक मेले के 24वें संस्करण में कस्तूरबा मंच पर शनिवार को किन्नरों की समस्याओं पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में किन्नरों ने अपनी समस्याओं से लोगों को अवगत कराया।
परिचर्चा का संचालन करते हुए कवयित्री निवेदिता झा ने सबसे पहले किन्नर आदर्शी वर्मा से उनके संघर्षो की दास्तां सुनीं। चर्चा में भाग लेते हुए फुलवारीशरीफ से आईं आदर्शी ने कहा, "कोई पुरुष है, कोई महिला है, हम भी तो अर्धनारीश्वर हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण और पुरुषों की समस्याओं पर तो बात होती है, लेकिन हमारी समस्याओं पर किसी का ध्यान नहीं जाता।"
उन्होंने शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कई प्रकार की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "हमें भी वह सब कुछ चाहिए जो एक आम इंसान को चाहिए।"
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पटना की सोना ने अपना दर्द बयां किया, "हमें अपनापन नहीं मिलता। अगर सरकार अपनी ओर से कोई निर्णय करे, तब समाज में भी फर्क पड़ेगा।"
समाज को अपना दृष्टिकोण बदलने की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि जिस दिन समाज बदलेगा, उसी दिन कानून भी उनके साथ होगा। इस मौके पर 'जेंडर एक्टिविस्ट' भरत कौशिक ने बताया, "ट्रांसजेंडर की हालत बहुत दयनीय है। उनमें हीनभावना भरी हुई है, जिससे मुक्त करने के लिए समाज की स्वीकार्यता जरूरी है।"
मेले में शनिवार को 'निर्माण रंगमंच' की ओर से व्यंग्यात्मक नाटक 'कुत्ते' प्रस्तुत किया गया। संतोष प्रकाश द्वारा लिखी और सतीश प्रकाश द्वारा निर्देशित इस नाटक के जरिए यह दिखाने का प्रयास किया गया कि 'नेताओं के लिए कानून कोई मायने नहीं रखता जबकि आम आदमी को कानून का पालन करने के लिए प्रताड़ित तक होना पड़ता है।' इस नाटक में सोनू कुमार, अपूर्व व शिवम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसी बीच, रशीदन बीवी मंच पर 'नई किताब' कार्यक्रम के तहत कमलेश के कथा संग्रह 'दक्खिन टोला' पर संस्कृतिकर्मी जयप्रकाश ने बातचीत की। कथा संग्रह के शीर्षक के विषय में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कमलेश ने कहा, "मेरे गांव में दक्खिन टोला दलितों का प्रतीक है।" उन्होंने कहा कि नाटक में चरित्रों को गढ़ना नहीं, जीना पड़ता है और उसकी अपनी जटिलताएं हैं, पर कहानी में यह सब नहीं है।
मेले में इसके अलावा भी कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। दो दिसंबर को शुरू यह पुस्तक मेला 11 दिसंबर तक चलेगा। मेले में बिहार और देशभर के 112 प्रकाशक भाग ले रहे हैं। कुल 210 स्टॉल लगाए गए हैं।