विश्वकर्मा जयंती पर जानिए, भगवान विश्वकर्मा के किन-किन रूपों की पूजा करने से मिलता है धन-धान्य

देश में विश्वकर्मा पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस बार भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर को मनाई जा रही है;

Update: 2024-09-17 23:25 GMT

नई दिल्ली। देश में विश्वकर्मा पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस बार भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर को मनाई जा रही है।

ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा दुनिया के पहले इंजीनियर और वास्तुकार थे। उनकी जयंती पर पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि, यश और वैभव आता है।

आज विश्वकर्मा भगवान की जयंती के अवसर पर जानेंगे कि उनके किन-किन रूपों की पूजा करने पर धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा के कई रूप हैं। पूजा करने से लोगों को यश, वैभव और संपदा की प्राप्ति होती है।

सबसे पहला रूप है, दो बाहु वाले भगवान विश्वकर्मा का। मान्यता है कि भगवान के इस रूप की पूजा करने से भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा का दूसरा रूप चार बाहु वाले भगवान हैं।

भगवान के इन रूपों के लिए मान्यता है कि भगवान के ये दोनो स्वरूप निर्माण की कई अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। जिसकी वजह से यह दोनों रूपों की अपने भक्तों पर कृपा होने से उन्हें नई-नई चीजों का सौभाग्य बड़ी जल्दी मिलता है।

इसके बाद भगवान विश्वकर्मा के दस बाहु वाले रूप एवं एक मुख, चार मुख और पंचमुख वाले रूप आते हैं।

दस भुजा वाले भगवान विश्वकर्मा को निर्माण की प्रक्रिया में तेजी के लिए और जल्दी यश वैभव मिलने के लिए पूजा की जाती है।

इसके अलावा उनके पांच पुत्रों की भी पूजा सनातन धर्म में बताई गई है। इसके प्रमाण वराह पुराण में मिलते हैं। उनके पुत्रों के नाम मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। उनके पांच पुत्रों के लिए मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। पांचों ने अलग-अलग कई वास्तु कलाओं का आविष्कार किया।

मनु को लोहे का देवता, मय को लकड़ी का देवता, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे का देवता शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी का देवता माना जाता है।

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