अब तो मोदी जी भी मीडिया की बेइज्जती करने लगे !
मीडिया ने जिस तरह सच को झूठ और झूठ को सच दिखाया है वह भयानक है;
- शकील अख्तर
मीडिया ने जिस तरह सच को झूठ और झूठ को सच दिखाया है वह भयानक है। जनता में इसकी बड़ी प्रतिक्रिया है। खुद मीडिया वालों को यह समझ में आ रहा है। इसलिए अभी देश के एक सबसे बड़े चैनल के मालिक की बेटी चीफ एडिटर और एंकर पत्रकार सब रायबरेली जाकर प्रियंका गांधी के साथ ग्रुप फोटो खिंचवा रहे हैं। और शेयर कर रहे हैं। एक दूसरा बड़ा हिन्दी चैनल खुल कर देश में मीडिया की स्वतंत्रता का सवाल उठा रहा है। सबको लग रहा है कि कुछ ज्यादा ही गिर गए। उठने की कोशिश कर रहे हैं।
मीडिया कुछ तो ठिकाने आया है। 4 जून को नतीजा चाहे जो हो मीडिया को लगने लगा है कि गुलामी में उसकी इज्जत दो कौड़ी की हो गई है। चुनाव का समय है, न चाहते हुए भी जनता के बीच जाना पड़ता है और वहां जिस तरह दुत्कारा जा रहा है वह सहन करना आसान नहीं है।
बेइज्जती तो प्रधानमंत्री भी कर रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह तो धमका ही देते हैं मगर उसे मालिकों की मर्जी समझकर सहना पड़ता है। लेकिन आम जनता, खुद अपने परिवार और दोस्तों के बीच भी जब लोग आपको तिरस्कार से देखने लगें तो शर्म आती है।
इंसान कुछ भी हो जाए कितना भी गिर जाए मगर शर्म कहीं न कहीं रहती है। बेइज्जती सहना हमेशा संभव नहीं होता। एक डॉन ऑन एयर एक पत्रकार से कह रहा है- 'आपको क्या आता है? कुछ सीखिए! मगर उसे हें हें करते हुए और सवाल पूछते जाना है। नौकरी है। एक युवा कह रहा है टीवी वाले के माइक पर कि अगर किसी को लगता है कि रोजगार नहीं है, महंगाई है, अग्निवीर खराब स्कीम है तो वह तीन दिन गोदी मीडिया देख ले। देश में सब अच्छा अच्छा ही दिखेगा। आधी बात सुनकर जो टीवी वाले का चेहरा खिला जा रहा था लास्ट का हिस्सा सुनकर बेचारे की हालत खराब हो गई। ऐसी बेइज्जती।
युवा खुले आम टीवी की आईडी देखते ही दलाल बोलने लगते हैं। कन्हैया कुमार ने एक एंकर से छोले कुलचे का भुगतान यह कहकर करवा दिया कि इन्हें डीए मिलता है। अब पता नहीं कन्हैया का आशय कौन से अलाउंस से था। मगर लोग फौरन चिल्लाने लगे दलाली अलाउंस मिलता है!
जनता इस तरह पहले नहीं कहती थी। मगर इस चुनाव में जब मीडिया ने रोजगार का सवाल नहीं उठाया बल्कि यह कहने लगी कि दो करोड़ रोजगार हर साल के हिसाब से मोदी जी 20 करोड़ रोजगार तो दे चुके हैं तो युवा भड़क गया।
यहां तक कि राहुल गांधी जो आम तौर पर ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करते उन्होंने भी चमचा बोल दिया। कहा कि चमचों के साथ इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने बोला। यह शायद राहुल का अब तक का मीडिया के लिए उपयोग किया सबसे कड़ा शब्द है। इससे पहले उन्होंने कुछ पत्रकारों को बीजेपी का बिल्ला लगा लो कहा था। लेकिन राहुल प्रियंका ने उस तरह मीडिया पर दबाव डालने की कभी कोशिश नहीं की जैसे प्रधानमंत्री क्रान्तिकारी, अति क्रान्तिकारी कह कर करते हैं।
राहुल मीडिया से शिकवा करते हैं। मजाक में कहते हैं कि हम इन्हें मित्र मीडिया कहते हैं मगर यह हमारे मित्र नहीं। लेकिन अभी दिल्ली में एक जनसभा में बोलते हुए राहुल ने जहां प्रधानमंत्री के कुछ भी बोलने पर सवाल उठाते हुए कह दिया कि इसके लिए मीडिया दोषी है।
मीडिया प्रधानमंत्री को आसान सवाल देता है। जी दो और दो कितने होते हैं? और फिर खुशी से चिल्लाता है कि देखिए हमारे प्रधानमंत्री ने जो विश्व गुरु हैं कितना सही जवाब दिया। उधर राहुल प्रियंका से पूछते हैं 19 का पहाड़ा!
अगर एक ही तरह के सवाल दोनों से पूछ लिए जाएं तो सोचिए क्या हो? क्या प्रधानमंत्री से पूछ सकते हैं कि रोजगार क्यों नहीं है? प्रियंका से कहते हैं कि रायबरेली अमेठी में विकास क्यों नहीं हुआ? प्रियंका जवाब देती हैं बताती हैं कि कितना काम हुआ है। मगर फिर कहते हैं पिछड़े तो हैं! यह वैसा ही है जैसा आप कुछ भी कर दो, दे दो मगर अगला माने ही नहीं। इसके लिए एक कहानी है कि आखिर आदमी ने अपनी गर्दन काट कर ही पेश कर दी। तो उसे देखकर फरमाते हैं कि टेढ़ी कटी है!
प्रधानमंत्री से पूछ लिया कि आपने कहा था कांग्रेस आएगी तो राममंदिर में ताला डलवा देगी। तो प्रधानमंत्री फौरन बदल गए कि नहीं मैंने नहीं कहा। जबकि वे कह चुके थे। वीडियो चल रहा है। और उससे भी शर्मनाक बात यह है कि वहां उस एंकर, जो बेचारा उनके परम भक्तों में शामिल था, को झूठा बताकर पब्लिक मीटिंग में और बढ़ा-चढ़ाकर कह दिया कि बुलडोजर चलवा देगी। भूल गए कि बुलडोजर की राजनीति तो उनके ही एक मुख्यमंत्री करते हैं।
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री करीब 50 इंटरव्यू दे चुके हैं। इसी चुनाव के दौरान। मगर किसी ने एक सवाल बेरोजगारी पर, महंगाई पर, भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोर्ट में महिला पहलवानों के साथ यौन दुर्व्यवहार का आरोप पत्र दाखिल होने के बावजूद उस पर कोई कार्रवाई न करने, बल्कि उसके बेटे को टिकट देने, मणिपुर न जाने, कर्नाटक में बलात्कार के चार सौ मामलों के आरोपी प्रजव्वल रेवन्ना के लिए वोट मांगने, कोरोना वैक्सिन के निर्माताओं से चंदा लेने, जबकि वैक्सिन से लोगों की जान जा रही है पर नहीं पूछा।
फिर पूछा कि आप थकते क्यों नहीं हो! उन्हें बताया कि आप पर नफरत और विभाजन फैलाने वाले आरोपों में कोई जान नहीं है। एंकर कहती है कि हम अपने व्यक्तिगत अनुभव से बताते हैं कि मुसलमान आप के लिए जान देने को तैयार हैं!
और प्रधानमंत्री मोदी गंगा में खड़े होकर कहते हैं कि मैंने कभी हिन्दू-मुसलमान नहीं करा। और अगर करूं तो मैं राजनीति में रहने लायक नहीं हूं। अखबारों ने सोचा कि गंगा में खड़े हो होकर कहना तो बड़ी बात है। हिन्दू धर्म में हाथ में जल लेकर भी जो कहा जाता है उसे हमेशा निभाया जाता है। फिर प्रधानमंत्री तो कहते है कि गंगा ही मेरी असली मां है तो उसके आंचल में बैठकर गलत कैसे कह सकते हैं?
अखबारों ने सबने फर्स्ट लीड लगाई। प्रधानमंत्री ने कहा मैं हिन्दू-मुसलमान करता ही नहीं। मगर अखबारों की स्याही भी नहीं सूखी कि अगले ही दिन प्रधानमंत्री ने फिर कहा कि कांग्रेस हिन्दुओं से छीनकर मुसलमानों को दे देगी।
हद तो यह है कि भैंस छीनने की बात प्रधानमंत्री ने की। भैंस! लेकिन जो बताए जा रहे हैं 50 इंटरव्यू और उससे ज्यादा पत्रकार एंकर, उनमें से किसी ने नहीं पूछा कि प्रधानमंत्री जी यह भैंस आपके दिमाग में कैसे आ गई। वैसे पूछना तो मंगल सूत्र के बारे में भी था। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस मंगलसूत्र छीन लेगी। मगर किसी ने नहीं पूछा। महिला पत्रकारों ने भी नहीं। जबकि प्रियंका गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मंगल सूत्र के बारे में जानते हैं?
राहुल प्रियंका से तो खूब पूछते है कि आपके बारे में मोदी जी ने यह कहा, भाजपा ने यह कहा! ऐसे ही मोदी जी से पूछ लेते कि प्रियंका गांधी पूछ रही हैं कि क्या आप मंगलसूत्र के बारे में जानते हैं?
बीजेपी तो वोट की राजनीति के लिए जो कर रही है वह कर रही है मगर मीडिया जिस तरह उसके झूठ को नफरत और विभाजन को फैलाता है वह सबसे घातक है। भारत को खोखला कर दिया।
मीडिया ने जिस तरह सच को झूठ और झूठ को सच दिखाया है वह भयानक है। जनता में इसकी बड़ी प्रतिक्रिया है। खुद मीडिया वालों को यह समझ में आ रहा है। इसलिए अभी देश के एक सबसे बड़े चैनल के मालिक की बेटी चीफ एडिटर और एंकर पत्रकार सब रायबरेली जाकर प्रियंका गांधी के साथ ग्रुप फोटो खिंचवा रहे हैं। और शेयर कर रहे हैं। एक दूसरा बड़ा हिन्दी चैनल खुल कर देश में मीडिया की स्वतंत्रता का सवाल उठा रहा है। सबको लग रहा है कि कुछ ज्यादा ही गिर गए। उठने की कोशिश कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)