22 दिसंबर की बड़ी खबरें और अपडेट्स
भारत और दुनिया की बड़ी खबरें एक साथ, एक ही जगह पढ़ने के लिए आप सही पेज पर हैं. इस लाइव ब्लॉग को हम लगातार अपडेट कर रहे हैं, ताकि ताजा खबरें आप तक पहुंचा सकें;
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- पर्यावरण मंत्री ने किया अरावली की नई परिभाषा का बचाव
- सबसे बड़े परमाणु बिजली संयंत्र को फिर शुरू करेगा जापान
- समंदर में डूबते एशिया के एक छोटे से टापू का केस, स्विट्जरलैंड में मुकदमा
- भारत-न्यूजीलैंड ट्रेड डील: डेयरी इंडस्ट्री को सुरक्षित रखने में सफल रहा भारत
- ट्रंप ने ग्रीनलैंड के लिए दूत नियुक्त किया, डेनमार्क ने जताई नाराजगी
- द मैन हू न्यू इनफिनिटी: भारत के मशहूर गणितज्ञ रामानुजन की जयंती
- कार ब्लास्ट में रूसी सैन्य अधिकारी की मौत, यूक्रेनी भूमिका की भी पड़ताल
मॉस्को: कार बम धमाके में रूसी जनरल की मौत, पहले भी हो चुके हैं ऐसे हमले
रूस की राजधानी मॉस्को में एक कार बम धमाका हुआ, जिसमें रूसी सेना के एक जनरल की मौत हो गई. रूसी जांचकर्ताओं ने कहा है कि वे पड़ताल कर रहे हैं कि क्या ब्लास्ट का संबंध "यूक्रेनी स्पेशल फोर्सेज" से है.
मारे गए सैन्य अधिकारी का नाम लेफ्टिनेंट जनरल फेनील सारवारोव बताया गया है. वह रशियन जनरल स्टाफ के ट्रेनिंग विभाग के प्रमुख थे. सोमवार, 22 दिसंबर की सुबह हुए धमाके से कुछ ही घंटे पहले मियामी में रूसी और यूक्रेनी प्रतिनिधियों के बीच युद्ध खत्म करने पर वार्ता हुई थी.
यूक्रेनी बच्चों को उत्तर कोरिया भेजे जाने पर मचा हंगामा
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, सारवारोव 'किआ एसयूवी' चला रहे थे. सुबह के वक्त वे एक पार्किंग से निकले और कार के नीचे बम फटा. एएफपी के अनुसार, बम उनकी कार के नीचे लगाया गया था.
त्रिपक्षीय बातचीत को तैयार नहीं पुतिन, पर माक्रों से मिलने को राजी
रूस की 'स्टेट इन्वेस्टिगेटिव कमेटी' ने संबंधित धमाके का एक वीडियो जारी किया, जिसमें क्षतिग्रस्त कार दिख रही है. ड्राइवर की सीट पर खून है और कार का एक दरवाजा उड़ गया है. एएफपी ने मौके पर गए अपने पत्रकारों के हवाले से बताया कि धमाके के कारण कार का फ्रेम मुड़ गया.
जांच समिति की एक प्रवक्ता ने कहा, "हत्या के बहुत से विवरणों की जांच की जा रही है. इनमें से एक, अपराध का बंदोबस्त करने में यूक्रेनी खुफिया सेवाओं की संभावित भूमिका भी है." यूक्रेन ने अभी कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है.
रॉयटर्स के मुताबिक, तकरीबन चार साल से जारी जंग में रूस की कई सैन्य शख्सियतों और यूक्रेन युद्ध के हाई-प्रोफाइल सपोर्टरों की हत्या की जा चुकी है. एएफपी ने भी रिपोर्ट किया कि ताजा हमला, अतीत में सैन्य अधिकारियों और युद्ध समर्थक लोगों की हत्याओं से मिलता-जुलता है.
धमाका एक रिहायशी इलाके में हुआ. यहां की एक निवासी ने एएफपी से कहा, "हमने इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी. हमने सोचा हम सुरक्षित हैं और फिर ऐन हमारे पास यह हो जाता है." एक अन्य निवासी ने कहा, "यह युद्ध की कीमत है."
'राष्ट्रीय गणित दिवस' पर रामानुजन को याद कर रहा भारत
विख्यात गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती के मौके पर शुक्रवार, 22 दिसंबर को भारत में 'राष्ट्रीय गणित दिवस' मनाया जा रहा है. गणित के क्षेत्र में रामानुजन के योगदान को देखते हुए, साल 2011 में उनकी सालगिरह को 'राष्ट्रीय गणित दिवस' के रूप में मनाने की शुरुआत हुई थी. इसका उद्देश्य रामानुजन को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ गणित के प्रति जागरुकता बढ़ाना भी है.
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के ईरोड जिले में हुआ था. उन्हें बचपन से ही गणित में दिलचस्पी थी. साल 1913 में उनका ब्रिटेन के गणितज्ञ गॉडफ्रे एच. हार्डी के साथ पत्राचार शुरू हुआ, जिसके बाद वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज चले गए. वहां उन्होंने कई चुनौतीपूर्ण गणितियी समस्याओं को हल करने की दिशा में काम किया.
'आकाशवाणी' के मुताबिक, बिना औपचारिक शिक्षा के भी उन्होंने संख्या सिद्धांत, अनंत शृंखला और कई अन्य जटिल समस्याओं को हल कर दुनिया को हैरान कर दिया था. उनके द्वारा दिए गए गणितियी सिद्धांतों पर आज भी अध्ययन और शोध किए जाते हैं. रामानुजन को 'द मैन हू न्यू इनफिनिटी' यानी 'अनंत को जानने वाला व्यक्ति' भी कहा जाता है.
ट्रंप ने छोड़ी नहीं है ग्रीनलैंड हासिल करने की चाहत, डेनमार्क का जवाब: सम्मान करो
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ग्रीनलैंड में रुचि जग जाहिर है. ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि वह ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाना चाहते हैं. अब उन्होंने लुइजियाना के गवर्नर जेफ लैंड्री को ग्रीनलैंड का विशेष दूत बनाया है.
डेनमार्क के विदेश मंत्री, लास लॉके रासमुसीन ने कहा कि अमेरिका के इस कदम से वह "बहुत गुस्से" में हैं. उन्होंने अमेरिका को चेताया कि वह डेनमार्क की संप्रभुता का सम्मान करे. डेनमार्क ने यह भी कहा है कि वह इस "बिल्कुल अस्वीकार्य" नियुक्ति पर अमेरिकी राजदूत को तलब करेगा.
विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि अमेरिका का यह कदम संकेत है कि ग्रीनलैंड में वॉशिंगटन की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है, "यह नियुक्ति ग्रीनलैंड में कायम अमेरिका की दिलचस्पी को दृढ़ करती है. मगर, हम जोर देते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका समेत सभी किंगडम ऑफ डेनमार्क की भूभागीय अखंडता के प्रति सम्मान दिखाएं."
ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री येन्स फेदरिक निल्सन ने भी कहा कि ग्रीनलैंड के लिए विशेष दूत की नियुक्ति से उनके लिए कुछ नहीं बदलेगा, वे अपना भविष्य खुद तय करेंगे.
ट्रंप ने रविवार, 21 दिसंबर को एक सोशल पोस्ट में लिखा, "जेफ समझते हैं कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ग्रीनलैंड कितना अहम है." जेफ लैंड्री ने अपनी नियुक्ति पर ट्रंप को धन्यवाद कहा. वह पहले भी ट्रंप के 'मिशन ग्रीनलैंड' का समर्थन करते रहे हैं.
जैसा कि जनवरी 2025 में अपने एक सोशल पोस्ट में लैंड्री ने लिखा था, "राष्ट्रपति ट्रंप बिल्कुल सही हैं! हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि ग्रीनलैंड, यूनाइटेड स्टेट्स में शामिल हो जाए. यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा, हमारे लिए बहुत अच्छा होगा! चलिए इसे पूरा करें!"
ग्रीनलैंड, डेनमार्क का एक भूभाग है और बहुत हद तक स्वायत्त है. साल 1953 तक ग्रीनलैंड, डेनमार्क की एक कॉलोनी थी. फिर इसे डेनमार्क के एक जिले की पहचान दी गई. ग्रीनलैंड, घरेलू मामलों में सेल्फ-गवर्निंग है. वहां एक स्थानीय सरकार है, जो ग्रीनलैंड का प्रशासन चलाती है. विदेश नीति और रक्षा नीति, डेनमार्क के अधिकार क्षेत्र में है. डेनमार्क और ग्रीनलैंड, दोनों ही ट्रंप की दिलचस्पी को खारिज करते आए हैं.
भारत-न्यूजीलैंड ट्रेड डील पर बात बनी, ट्रंप के टैरिफ को मात देने की कोशिश
भारत और न्यूजीलैंड के बीच 'मुक्त व्यापार समझौते' पर बात बन गई है. दोनों देशों ने बताया कि डील को अंतिम रूप दे दिया गया है. कानूनी पक्षों की समीक्षा के बाद 2026 की पहली तिमाही में करार पर दस्तखत किए जाने की संभावना है. भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार पेटल ढिल्लों ने पत्रकारों को यह जानकारी दी.
यूरोपीय संघ और भारत के बीच समझौते में क्या है रुकावट
समाचार एजेंसी एपी ने बताया कि इस डील में भारत को अपने सभी उत्पादों और सामानों के निर्यात पर जीरो-ड्यूटी एक्सेस मिलेगा. टैक्स फ्री निर्यात से भारत के जिन क्षेत्रों को लाभ होगा उनमें कपड़ा, इंजीनियरिंग उत्पाद, चमड़ा शामिल हैं.
वहीं, न्यूजीलैंड को लकड़ी, कोयला, बागवानी संबंधित सामान और ऊन के निर्यात में फायदा मिलने की उम्मीद है. भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने बताया कि अगले डेढ़ दशक में न्यूजीलैंड ने भारत में 2,000 करोड़ डॉलर मूल्य का निवेश भी स्वीकार किया है.
एपीईसी जैसे बड़े समूहों में शामिल होने की जगह भारत के लिए क्यों बेहतर हैं द्विपक्षीय समझौते
भारत ने दूध, क्रीम, वे, दही और चीज जैसे डेयरी उत्पादों के आयात को डील से बाहर रखा है. बकरी का मांस, प्याज और बादाम जैसे कुछ उत्पादों को भी "घरेलू संवेदनशीलता" के कारण समझौते में शामिल नहीं किया गया है. न्यूजीलैंड, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगियों में नहीं है. मगर, अधिकारियों का कहना है कि डील के कारण व्यापार बढ़ने की मजबूत संभावना है.
न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सॉं ने एक सोशल पोस्ट में लिखा कि वार्ता संपन्न होने पर उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की. उन्होंने एफटीए को "लैंडमार्क डील" बताते हुए उम्मीद जताई कि अगले दो दशकों में, भारत के लिए न्यूजीलैंड के निर्यात में सालाना 1.1 अरब डॉलर से 1.3 अरब डॉलर तक की वृद्धि की संभावना है, "व्यापार बढ़ने का मतलब है कि देश में और नौकरियां, ज्यादा वेतन और न्यूजीलैंड के मेहनती लोगों के लिए अधिक अवसर."
न्यूजीलैंड के व्यापार मंत्री टॉड मेकक्ले ने कहा कि डील में भारत ने उनके देश को उन बाजारों तक पहुंच दी है, जहां पहले किसी और देश को नहीं दी थी. "न्यूजीलैंड पहला देश है, जिसने एफटीए के अंतर्गत भारत में सेब और शहद तक पहुंच हासिल की है."
विशेषज्ञों के मुताबिक, डॉनल्ड ट्रंप के लगाए ऊंचे टैरिफ के असर को कम करने के लिए भारत निर्यात के अपने ठिकानों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. भारत को उम्मीद है कि व्यापारिक समझौतों का एक बड़ा नेटवर्क, टैरिफ जैसे बाहरी झटकों से बचाने में उसकी मदद करेगा. हालिया महीनों में भारत कई एफटीए को निर्णायक रूप देने में जुटा है. इनमें यूरोपीय संघ और चिली शामिल हैं.
इंडोनेशियाई द्वीप पर बढ़ता पानी, सीमेंट कंपनी पर स्विट्जरलैंड में मुकदमा
क्या बड़ी कंपनियों को अपने कामकाज की वजह से जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? खासकर तब, जब क्लाइमेट को हुआ नुकसान लाखों लोगों की जिंदगी पर गहरा असर डालता हो! और क्या यह विषय किसी अदालती मुकदमे का आधार बन सकता है?
स्विट्जरलैंड में एक अदालत ने ऐसे एक क्लाइमेट केस पर सुनवाई करने का फैसला किया है. इस केस में दो मुख्य पक्ष हैं. एक ओर, सीमेंट कंपनी होल्शिम और दूसरी तरफ, इंडोनेशिया के एक छोटे से द्वीप के वासी जिनके आइलैंड को समुद्र का बढ़ता पानी निगल रहा है.
बांग्लादेशी तटों को निगल रहा तेजी से बढ़ता समुद्र का स्तर
'स्विस चर्च ऐड' (एचईकेएस) उन एनजीओ में से एक है, जो इस केस में द्वीपवासियों की मदद कर रहे हैं. एचईकेएस ने एक बयान में बताया, "स्विट्जरलैंड में पहली बार एक अदालत ने, एक विशाल कोर्पोरेशन के खिलाफ लाया गया जलवायु मुकदमा मंजूर कर लिया है."
मामले की शुरुआत जनवरी 2023 में हुई, जब इंडोनेशिया के पारी द्वीप पर रहने वाले चार लोगों ने केस दर्ज किया. उन्होंने होल्शिम कंपनी से मुआवजे की मांग की. यह द्वीप समु्द्र में समाता जा रहा है. 'यूरोपियन सेंटर फॉर कॉन्स्टिट्यूशन एंड ह्युमन राइट्स' (ईसीसीएचआर) के मुताबिक, अभी पारी का सबसे ऊंचा पॉइंट समुद्र स्तर से बस डेढ़ मीटर ऊपर है.
जलवायु परिवर्तन के कारण यहां जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है. गंभीर बाढ़ बहुत नियमित हो गई है. ना केवल लोगों का घर और रोजगार, बल्कि वह द्वीप जो पीढ़ियों से उनकी जिंदगी का हिस्सा रहा उसका अस्तित्व खतरे में है.
एक किसान और दिग्गज जर्मन कंपनी के मुकदमे पर दुनिया की नजरें
मात्र 104 एकड़ के इस द्वीप का 11 प्रतिशत हिस्सा, हालिया सालों में गायब हो चुका है. आशंका है कि हद से हद 2050 तक द्वीप का ज्यादातर भाग पानी के नीचे जा सकता है. इसीलिए पारी के लोग, स्विट्जरलैंड में सीमेंट कंपनी होल्शिम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर रहे हैं.
निकेल खनन कंपनी के लालच की भारी कीमत चुका रहे इंडोनेशिया के लोग
होल्शिम, एक स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी है. इसे दुनिया की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी माना जाता है. इंडोनेशिया में 2019 से होल्शिम का कोई सीमेंट प्लांट नहीं है, लेकिन पारी द्वीपवासियों की दलील है कि बढ़ते तापमान और समुद्र स्तर का दोष कंपनी पर भी है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि होल्शिम, दुनिया के 100 सबसे बड़े कॉर्पोरेट सीओटू उत्सर्जकों में से एक है. यानी, जलवायु संबंधी नुकसान में उसकी खासी भागीदारी है.
होल्शिम ने कहा है कि वह अपील करेगा. कंपनी के मुताबिक, वह 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है मगर यह फैसला सरकार को करना होगा कि ये लक्ष्य किस तरह हासिल किए जाएंगे. कंपनी का कहना है कि क्लाइमेट चेंज एक वैश्विक समस्या है, और इससे निपटने के लिए अदालत उचित जगह नहीं है.
गायों के मीथेन उत्सर्जन को रोकने के लिए वैज्ञानिकों की नई कोशिश
यह मामला, एक विस्तृत अंतरराष्ट्रीय अभियान का हिस्सा है. इसके तहत जलवायु को नुकसान पहुंचाने के लिए बड़ी कंपनियों की भी जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की जा रही है, खासतौर पर विकासशील देशों में.
तेल कंपनियां मुख्य रूप से इस मुहिम का निशाना रही हैं, लेकिन जलवायु कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि स्विट्जरलैंड का घटनाक्रम सीमेंट इंडस्ट्री की भूमिका को भी रेखांकित करेगा. इंसानी गतिविधियों के कारण सालभर में जितना कार्बन उत्सर्जन होता है, उसका लगभग आठ प्रतिशत हिस्सा सीमेंट उद्योग से आता है.
शेख हसीना बोलीं, मेरी राजनीतिक हत्या के लिए मुझे वापस नहीं बुला सकते
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना नेबांग्लादेश वापस जाने की संभावनाओं से इनकार किया है. सोमवार, 22 दिसंबर को न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ एक ईमेल इंटरव्यू में हसीना ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है और मौजूदा परिस्थितियों में वे वापस नहीं जाएंगी.
उन्होंने कहा कि "राजनीतिक हत्या" का सामना करने के लिए आप मेरी वापसी की मांग नहीं कर सकते. हसीना ने कहा कि वे बांग्लादेश केवल उसी स्थिति में लौटेंगी, जब वहां एक वैध सरकार और स्वतंत्र न्यायपालिका होगी. उन्होंने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को चुनौती दी कि वे उनके मामले को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में लेकर जाएं.
हसीना ने भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में आए तनाव के लिए भी अंतरिम सरकार को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, "मुहम्मद यूनुस की सरकार भारत के खिलाफ शत्रुतापूर्ण बयान जारी करती है, धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहती है और कट्टरपंथियों को विदेश नीति तय करने की अनुमति देती है और फिर तनाव बढ़ने पर आश्चर्य जाहिर करती है."
जापान में फिर शुरू होगा दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट
जापान में दुनिया के सबसे बड़े परमाणु बिजली संयंत्र 'काशिवाजाकी-करीवा' को फिर शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है. जापान के नीगता प्रांत ने प्लांट में कामकाज दोबारा शुरू करने का निर्णायक फैसला लिया है.
काशिवाजाकी-करीवा, राजधानी टोक्यो के उत्तरपश्चिम में करीब 220 किलोमीटर दूर है. मार्च 2011 में फुकुशिमा हादसे के बाद देश में करीब 54 रिएक्टरों को बंद कर दिया गया था. काशिवाजाकी-करीवा इनमें से ही एक था.
फुकुशिमा त्रासदी के 11 साल बाद जापान परमाणु ऊर्जा नीति में करेगा बदलाव
सोमवार, 22 दिसंबर को नीगता असेंबली ने मतदान करके इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी. यह वोटिंग, प्लांट के पहले रिएक्टर को फिर शुरू करने की राह में आखिरी रुकावट मानी जा रही थी. इस फैसले का विरोध भी हो रहा है. मतदान से पहले करीब 300 की संख्या में लोग असेंबली के बाहर प्रदर्शन के लिए जमा हुए. इनमें अधिकतर बुजुर्ग थे.
जर्मनी में परमाणु कचरे को कम खतरनाक बनाने की नई तकनीक
काशिवाजाकी-करीवा को शुरू में 'टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी' (टेपको) चलाएगी. फुकुशिमा प्लांट का संचालन भी यही कंपनी करती थी. स्थानीय मीडिया के मुताबिक, टेपको प्लांट के सात रिएक्टरों में से पहले को 20 जनवरी से फिर सक्रिय करने पर विचार कर रहा है.
उधर, फैसले का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी टेपको की क्षमता पर भी सवाल उठा रहे हैं. असेंबली के बाहर एक प्रदर्शनकारी ने माइक पर सवाल किया, "क्या टेपको काशिवाजाकी-करीवा को चलाने के योग्य है?" इसपर वहां मौजूद भीड़ ने जवाब दिया, "नहीं!"
विरोध के बीच टेपको, नीगता वासियों को आश्वस्त करने की कोशिश कर रहा है. टेपको के एक प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी फुकुशिमा जैसे हादसे को फिर ना होने देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए टेपको ने अगले 10 साल के दौरान नीगता में 10,000 करोड़ येन के निवेश की भी घोषणा की.
क्या परमाणु ऊर्जा के सहारे हासिल होंगे जलवायु के लक्ष्य?
मगर, बहुत से स्थानीय लोग अब भी सहमत नहीं हैं. अक्तूबर में आए एक सर्वे के नतीजे में 60 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वह नहीं मानते प्लांट को फिर शुरू करने की स्थितियां पूरी कर ली गई हैं. तकरीबन 70 प्रतिशत लोगों ने टेपको के प्लांट ऑपरेट करने पर चिंता जताई.
जापान, ऊर्जा जरूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन के आयात से निर्भरता कम करना चाहता है. सरकार को उम्मीद है कि काशिवाजाकी-करीवा का पहला रिएक्टर शुरू होने पर ही टोक्यो में बिजली की आपूर्ति दो फीसदी तक बढ़ सकती है. जापान की प्रधानमंत्री सनाए ताकाइची भी परमाणु ऊर्जा की ओर वापसी का समर्थन करती हैं.
जापान में 60 से 70 फीसदी बिजली का उत्पादन आयातित जीवाश्म ईंधनों से होता है. पिछले साल जापान ने 6,800 करोड़ डॉलर कीमत की एलएनजी और कोयला आयात किया. जापान को उम्मीद है कि एआई डेटा सेंटरों में वृद्धि के कारण आने वाले दशकों में उसकी ऊर्जा खपत भी बढ़ेगी.
अपनी जरूरतें पूरी करने और कार्बन उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य पूरा करने के लिए, उसने साल 2040 तक अपने कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है.
पर्यावरण मंत्री का दावा, अरावली का 90 फीसदी हिस्सा पूरी तरह संरक्षित
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी दिए जाने के बाद हो रहे विरोध पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने चुप्पी तोड़ी है. न्यूज एजेंसी 'एएनआई' के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया कि अरावली के एक बेहद सीमित क्षेत्र में ही खनन गतिविधियों की अनुमति दी जाएगी.
उन्होंने कहा, "अरावली पर्वतमाला के 1.19 फीसदी इलाके में ही खनन गतिविधियां हो सकेंगी, जो एक फीसदी से भी कम है और वहां भी कोई नई खदान नहीं खोली गई है…प्रक्रिया को कठिन बना दिया गया है. अरावली पर्वतमाला में मुख्य समस्या अवैध खनन है और इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह परिभाषा दी है और इसकी समीक्षा याचिका अभी भी कोर्ट के सामने लंबित है."
भूपेंद्र यादव ने आगे कहा, "इस व्यापक परिभाषा और सख्त प्रावधानों के साथ, 90 फीसदी क्षेत्र पूरी तरह से संरक्षित है." परिभाषा के 100 मीटर वाले प्रावधान पर उन्होंने कहा कि यह रिचर्ड मर्फी द्वारा दी गई एक मानक परिभाषा है, जिसके अनुसार 100 मीटर ऊंची पहाड़ी को पर्वत माना जाता है. उन्होंने कहा कि पर्वत के शिखर से लेकर जमीनी स्तर तक, पूरा 100 मीटर संरक्षित रहेगा.