महिला सशक्तिकरण, संवैधानिक शासन और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की गरिमा की रक्षा की दिशा में एनएचआरसी का सख़्त कदम

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पंचायत राज संस्थानों एवं शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर “प्रधान पति/प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व” की गंभीर समस्या पर कड़ा रुख अपनाया है। आयोग ने यह सख़्त कदम हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा द्वारा दाखिल की गई शिकायत पर उठाया है;

By :  IANS
Update: 2025-12-14 08:40 GMT

महिला प्रतिनिधियों के अधिकारों की रक्षा हेतु एनएचआरसी का बड़ा कदम

नई दिल्ली। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पंचायत राज संस्थानों एवं शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर “प्रधान पति/प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व” की गंभीर समस्या पर कड़ा रुख अपनाया है। आयोग ने यह सख़्त कदम हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा द्वारा दाखिल की गई शिकायत पर उठाया है।

सुशील वर्मा ने अपनी शिकायत में दावा किया था कि देश भर में कई स्थानों पर निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति अथवा अन्य पुरुष रिश्तेदार वास्तविक सत्ता का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध है। यह प्रथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी डब्ल्यू.पी. (सी) संख्या 615/2023 में असंवैधानिक करार दी जा चुकी है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपनी जांच में पाया कि यह प्रथा अनुच्छेद 14, 15(3) और 21 के तहत प्रदत्त समानता, गरिमा और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।

यह 73वें एवं 74वें संविधान संशोधनों की भावना के विपरीत है, जिनका उद्देश्य महिलाओं को वास्तविक सशक्तीकरण प्रदान करना है।

ऐसे कृत्य भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत आपराधिक दायित्व को भी जन्म दे सकते हैं। आयोग ने पूर्व में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पंचायती राज विभाग एवं शहरी स्थानीय निकाय विभाग के प्रमुख सचिवों से इस विषय पर कार्यवाही रिपोर्ट (एटीआर) मांगी थी। हालांकि, आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों को छोड़कर अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से कोई संतोषजनक जवाब प्राप्त नहीं हुआ।

इस गंभीर लापरवाही को देखते हुए एनएचआरसी ने 32 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के शहरी निकायों और पंचायती राज विभागों के प्रमुख सचिवों को 30 दिसंबर 2025 को आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने हेतु सशर्त समन जारी किए हैं।

यदि 22 दिसंबर 2025 तक विस्तृत कार्यवाही रिपोर्ट आयोग को प्राप्त हो जाती है, तो व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जा सकती है। अन्यथा अनुपालन न करने पर सीपीसी, 1908 के अंतर्गत कठोर कार्रवाई, यहां तक कि वारंट जारी किए जाने का प्रावधान भी लागू होगा।

आयोग ने दो टूक कहा है कि महिला आरक्षण का उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि वास्तविक नेतृत्व और निर्णयकारी भूमिका सुनिश्चित करना है, और किसी भी प्रकार का प्रॉक्सी शासन लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है।

यह आदेश महिला सशक्तिकरण, संवैधानिक शासन और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की गरिमा की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो का बयान:

“राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का यह स्पष्ट मत है कि महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर किसी भी प्रकार का प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व, चाहे वह ‘सरपंच पति’ या ‘प्रधान पति’ के रूप में हो या किसी अन्य अनौपचारिक माध्यम से, संविधान की मूल भावना के विपरीत है। लोकतंत्र में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि ही अपने पद की वैधानिक, प्रशासनिक और निर्णयकारी अधिकारिता की वास्तविक धारक हैं।

"आयोग का दायित्व केवल अधिकारों का संरक्षण करना ही नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि संवैधानिक प्रावधानों का वास्तविक और प्रभावी क्रियान्वयन हो। यदि निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति या रिश्तेदार शासन चलाते हैं, तो यह महिलाओं की गरिमा, समानता और आत्मनिर्णय के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।

"इसी कारण आयोग ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सख्त रुख अपनाया है। यह कार्यवाही किसी एक राज्य या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर में महिला सशक्तिकरण और लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को मजबूत करने की दिशा में एक आवश्यक कदम है।”

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