मृतकों के शव से मांस पकाकर खाता था कोली

खुली अदालत में चली निठारी कांड की सुनवाई में  विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश पवन कुमार तिवारी ने सजा पर बहस के बाद फैसले के लिए एक बजे का समय नियत किया;

Update: 2017-12-09 13:48 GMT

गाजियाबाद।  खुली अदालत में चली निठारी कांड की सुनवाई में  विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश पवन कुमार तिवारी ने सजा पर बहस के बाद फैसले के लिए एक बजे का समय नियत किया। अदालत में सुरेंद कोली ने यह कहते हुए बहस करने से मना कर दिया कि सीबीआई कोई भी आरोप साबित नहीं कर सकी है। इसके बावजूद अदालत एक तरफा कार्यवाही कर रही है।

जबकि मोनिंदर के अधिवक्ता देवराज ने बहस की। खचाखच भरी अदालत में न्यायाधीश ने कहा कि दोनों पक्षों के तर्क एवं सभी परिस्थितियों पर विचार किया गया। खून के बदले खून का सिद्धांत किसी भी समाज में लागू नहीं किया जा सकता है। फिर भी राज्य का काम ऐसा समाज बनाना है, जिसे सभ्य एवं सुसंस्कृत कहा जा सके। यह तभी संभव है जब अभियुक्तगण जैसे लोग सभ्य समाज के लिए नासूर व खतरा बन चुके हों, उन्हें सजा-ए-मौत के दंड से दंडित किया जाए। अभियुक्त कोली ने उस समय हैवानियत की सारी सीमाएं लांघ दीं, जब लोभ देकर बच्चियों व युवतियाों को नोएडा के सेक्टर 31 स्थित कोठी डी-5 में अंदर ले जाकर दुष्कर्म का प्रयास किया और गला दबाकर बेहोश कर दिया।

उनके साथ दुष्कर्म का किया और गला दबाकर हत्या कर दी। शव को काट-पीटकर गैलरी व नाले में फेंक दिया। अभियुक्त मोनिंदर सिंह पंधेर ऐसे अमानवीय पाशविक, क्रूर एवं जघन्यतम अवैध कृत्य में अपने विधिक कर्तव्यों के अवैध लोप द्वारा आपराधिक षड्यंत्र में सम्मिलित होकर समाज व राष्ट्र को सदमा पहुंचाया है। यह घटना सामूहिक अंतरात्मा को झकझोरती है। यह प्रवृत्ति जानवरों में भी नहीं होती है। ऐसे अपराधियों को महिमामयी मिट्टी से बने इस सुंदर और महान देश में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे अपराधियों को कठोरतम सजा इसलिए आवश्यक है ताकि कोई व्यक्ति इस प्रकार की दुस्साहसिक घटना करने से पूर्व हजार बार सोचे और समाज में सकारात्मक संदेश जाए।

सुनियोजित तरीके से देता था कोली हत्या को अंजाम

कोली सुनियोजित तरीके से बच्चियों और युवतियों को अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर मकान के अंदर बुलाता था। अकेले पाकर बिना किसी करुणा व दया के उनके साथ दुष्कर्म करता था।

उनकी हत्या करके शवों को काटकर गैलरी व नाले में फेंक देता था। शरीर के कुछ हिस्से का मांस काटकर उन्हें पकाकर खा जाता था। ऐसा जुर्म सभी की अंतरात्मा को झकझोरता है। श्रृंखलाबद्ध मृतकों की आत्माओं को तभी शांति मिल सकती है जब अभियुक्तों को मृत्युदंड दिया जाए, क्योंकि सुरेंद्र कोली के मन में हमेशा यही रहता था कि मारूं, काटू, खाऊं।

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