7 विधायकों की पहेली : कैसे गायब सहयोगियों ने भाजपा को जम्मू कश्मीर की राज्यसभा सीट दिला दी

जम्मू कश्मीर में चौथी राज्यसभा सीट के लिए चले बेहद अहम मुकाबले में, अंतिम संख्या-गणना राजनीतिक गणित से कम और राजनीतिक साजिशों से ज्यादा जुड़ी हुई है;

Update: 2025-10-25 11:46 GMT

विपक्षी गठबंधन के सात अहम वोटों के रहस्यमय ढंग से गायब होने से मिली भाजपा को जीत

जम्मू। जम्मू कश्मीर में चौथी राज्यसभा सीट के लिए चले बेहद अहम मुकाबले में, अंतिम संख्या-गणना राजनीतिक गणित से कम और राजनीतिक साजिशों से ज्यादा जुड़ी हुई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसके पास जरूरी संख्याबल नहीं था, उन्होंने अपने उम्मीदवार सतपाल शर्मा को शानदार जीत दिलाई, यह जीत विपक्षी गठबंधन के सात अहम वोटों के रहस्यमय ढंग से गायब होने या गलत दिशा में जाने से मिली।

इस नतीजे ने सात पार्टी-संबद्ध और निर्दलीय विधानसभा सदस्यों (विधायकों) पर गहरी नजर डाली है, जिनके वोट तय रास्ते से भटक गए प्रतीत होते हैं। नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने बड़ी मेहनत से 58 विधायकों (41 नेकां, छह कांग्रेस, सात निर्दलीय, तीन पीडीपी और एक सीपीआई (एम)) का एक मजबूत समूह इकट्ठा किया था। यह संख्या तीसरी और चौथी दोनों सीटें आराम से हासिल करने के लिए पर्याप्त थी।

हालांकि, अंतिम गणना ने समन्वित जवाबी हमले की तस्वीर पेश की। दरअसल भाजपा उम्मीदवार सतपाल शर्मा को 32 वोट मिले, जो भाजपा की कुल संख्या से चार वोट अधिक थे। ये चार ’अतिरिक्त’ वोट भाजपा के पक्ष में क्रास-वोटिंग के स्पष्ट प्रमाण हैं। जबकि नेकां के इमरान नबी डार, जिन्हें 28 या 29 वोटों की निश्चित संख्या की आवश्यकता थी, उन्हें मात्र 21 वोट मिले, सात या आठ की कमी।

इसी तरह से दूसरे विजयी नेकां उम्मीदवार, शम्मी ओबेराय को 31 वोट मिले, जो आवश्यक संख्या से एक अधिक है, जिसके बारे में विश्लेषकों का तर्क है कि यह संख्या डार को मिलनी चाहिए थी। कुल मिलाकर, नेकां के दोनों उम्मीदवारों को अनुमानित 58 के बजाय 51 वोट मिले। सात वोटों का अंतर, वे वोट जो या तो भाजपा को मिले, जानबूझकर रद्द किए गए, या गलत दिशा में दिए गएकृइस चुनाव का मुख्य रहस्य है। नतीजों के तुरंत बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने उन लोगों की ईमानदारी पर सवाल उठाया जिन्होंने समर्थन का वादा किया था लेकिन उलटफेर कर दिया।

मुख्यमंत्री के बयान से यह स्पष्ट हो गया कि नेशनल कांफ्रेंस का मानना है कि उनके अपने विधायक अपनी बात पर अड़े रहे, और उन्होंने सीधे तौर पर सहयोगियों और कथित समर्थकों पर उंगली उठाई। वे कहते थे कि हमारे किसी भी विधायक ने क्रास-वोटिंग नहीं की, इसलिए सवाल उठता है, भाजपा के चार अतिरिक्त वोट कहां से आए? वे विधायक कौन थे जिन्होंने मतदान करते समय गलत वरीयता संख्या अंकित करके जानबूझकर अपने वोट अमान्य कर दिए? क्या उनमें इतनी हिम्मत है कि वे हमें वोट देने का वादा करने के बाद भाजपा की मदद करने की बात स्वीकार करें? किस दबाव या प्रलोभन ने उन्हें यह चुनाव करने में मदद की?

इन कड़े शब्दों से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विवाद शुरू होने की उम्मीद है, जिससे गठबंधन संबंधों में खटास आ सकती है और यह जम्मू कश्मीर की राजनीति में एक निर्णायक मुद्दा बन सकता है। इस विवाद ने राज्यसभा चुनावों से संबंधित नियमों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है, जहां विधायकों को अपना चिह्नित वोट डालने से पहले अधिकृत पोलिंग एजेंटों को दिखाना होता है। यह अनिवार्यता पार्टी सदस्यों द्वारा क्रास-वोटिंग को रोकने के लिए है।

हालांकि, एक कांग्रेस विधायक के संबंध में एक प्रक्रियात्मक अनियमितता देखी गई। कांग्रेस विधायक निजामुद्दीन भट, जो पार्टी के पोलिंग एजेंट थे, ने बिना किसी वैकल्पिक पोलिंग एजेंट की मौजूदगी के अपना वोट डाल दिया।

भट के जवाब ने एक विचित्र नाटकीयता को और बढ़ा दिया। वे कहते थे कि मैं मुख्य पोलिंग एजेंट था और मुझे अपना वोट खुद को दिखाना पड़ा। इसके अलावा, नेकां के सूत्रों ने दावा किया कि पीडीपी विधायकों को इमरान नबी डार को वोट देने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अंतिम मतगणना से पता चलता है कि उन्होंने इसका पालन नहीं किया होगा। निर्दलीय विधायकों के विपरीत, जिन्हें अपना वोट दिखाने की आवश्यकता नहीं होती है, राजनीतिक दलों के विधायकों को अपना मतपत्र दिखाना होता है, जिससे इन विशिष्ट पार्टी सदस्यों द्वारा क्रास-वोटिंग या जानबूझकर रद्द करना सीधे तौर पर अवज्ञा का कार्य बन जाता है।

क्रास-वोटिंग ने सत्तारूढ़ गठबंधन के वोटिंग ब्लाकों की कमजोर संरचना को उजागर कर दिया है और अब आने वाले दिनों में एक कटु राजनीतिक हिसाब-किताब का मंच तैयार कर दिया है। वादे के मुताबिक रास्ता भटकने वाले सात लोगों की पहचान चुनाव का सबसे अहम राज बनी हुई है।

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