वही अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी जिसमें ना कब्जा हुआ हो या ना मुआवजा मिला हो: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत वही अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी जहां सरकार ने पांच साल के अंदर न तो भूमि पर कब्ज़ा लिया हो या न मुआवजा दिया हो;

Update: 2020-03-06 13:55 GMT

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत वही अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी जहां सरकार ने पांच साल के अंदर न तो भूमि पर कब्ज़ा लिया हो या न मुआवजा दिया हो।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत वही अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी जहां सरकार ने पांच साल के अंदर न तो भूमि पर कब्ज़ा लिया या न मुआवजा दिया।

संविधान पीठ में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट भी शामिल हैं।

न्यायालय ने साथ ही यह स्पष्ट किया कि यदि पांच साल के अंदर ज़मीन पर कब्जा कर लिया लेकिन मुआवजा नहीं दिया गया या फिर मुआवजा दे दिया गया लेकिन पांच साल में सरकार ने ज़मीन पर कब्जा नहीं लिया, इन दोनों ही स्थितियों में ज़मीन अधिग्रहण रद्द नहीं होगा।

संविधान पीठ ने साफ किया कि ज़मीन के जो मालिक मुआवजे की रकम को अस्वीकार कर देते है, वे ज़मीन अधिग्रहण को रद्द करने की मांग नहीं कर सकते।

संविधान पीठ ने इससे पहले दो अलग-अलग खंडपीठ में दी गई विरोधाभासी व्यवस्था को रद्द किया।

न्यायालय ने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के तहत अधिग्रहण प्रक्रिया समाप्त नहीं होगी यदि मुआवजा ट्रेज़री में जमा करा दिया गया हो।

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