पत्रकार और विचारक मारे जाएंगे तो निजता और स्वतंत्रता कहाँ रह जाएगी: सजप

 निजता और विचारों की स्वतंत्रता को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौलिक अधिकार करार दिए जाने के 15 दिन के अन्दर गौरी लकेंश की हत्या यह दर्शाती है, कि इस आदेश को अमलीजामा पहनाने की मंशा किसी भी सरकार में नहीं है;

Update: 2017-09-08 11:22 GMT

भोपाल।  निजता और विचारों की स्वतंत्रता को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौलिक अधिकार करार दिए जाने के 15 दिन के अन्दर गौरी लकेंश की हत्या यह दर्शाती है, कि इस आदेश को अमलीजामा पहनाने की मंशा किसी भी सरकार में नहीं है।और इस आदेश की अवेहलना करने वालों को सरकार का समर्थन है।

समाजवादी जन परिषद की मध्य प्रदेश की अध्यक्ष स्मिता ने कहा, कि विचारक और पत्रकार की अपने विचार रखने पर मार देना, लोकतंत्र की हत्या है!अगर हत्यारे एक के बाद एक इस तरह से स्वतंत्र विचार रखने वाले लेखकों और कार्यकर्ताओं को बेख़ौफ़ मारते जाएंगे, तो फिर हमारा सविधान और सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक दिखावा भर बनकर रह जाएगा।

सजप की राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य, अनुराग मोदी ने आज जारी विज्ञप्ति में कहा, कि गौरी लकेंश की हत्या की निंदा और हत्यारों को पकड़ने यह दोनों काम तो जरूरी हैं; मगर, इतने भर से कुछ बदलने वाला नहीं है।क्योंकि, उनका हत्यारा चाहे जो हो, उन्हें उनके विचारों से इत्तेफाक ना रखने वालों ने मारा है; यह तय है और यह देश में अपने आप में कोई अनोखा और पहला मामला नहीं है। पिछले 8-10 सालों में ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं, सजप के नेता भी इस तरह के हमले झेल चुके हैं।

उन्होंने ‘मतभेद और निजता’ के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति से ‘अपनी और से दखल’ की अपील की है। उनका कहना है: सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे; यह सुनिश्चित करने की सवैधानिक जवाबदारी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति की है।क्योंकि, कार्यकर्ताओं और विचारकों की हत्या अकेला मामला नहीं है। सोशल मीडिया से लेकर हर जगह बोलने वालों और पत्रकारों और लेखकों को खुले-आम डराया जा रहा है;भद्दी-भद्दी गलियाँ दी जारी हैं।

उन्होंने साथ ही यह भी अपील की, कि सुप्रीम कोर्ट कार्यकर्ताओं और विचारकों पर हमले के सारे मामले स्वयं देखे; इन मामलों में हाईकोर्ट और राज्य सरकारोंका रवैया बहुत ही ढील-ढाल भरा है।

मोदी ने उदाहरण देते हुए बताया कि सजप की नेता शमीम मोदी,जो वर्तमान में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई (टिस) में कार्यरत हैं, पर मुम्बई में 2009 में हुए जान लेवा हमले (जिसमें उन्हें 108 टाँके आए थे; उनकी गर्दन पर भी वार हुआ था) में सही जांच की याचिका पर पिछले पांच साल में मुंबई हाई कोर्ट में एक कदम भी बात आगे नहीं बढ़ी।  कोर्ट जाँच एजेंसियों का कुछ नहीं कर पा रही हैं।शमीम मोदी ने 2009 में टिस में सहायक प्राध्यापक की नौकरी लेने के पहले, 15 साल तक म. प्र. में राजनैतिक-सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में काम किया।अपनी याचिका में उनका आरोप है, कि उनके काम से नाराज होकर भाजपा के हरदा से तत्कालीन विधायक कमल पटेल ने उनकी हत्या के लिए उक्त हमला करवाया था।

Full View

Tags:    

Similar News