हिंदी के मशहूर कवि चंद्रकांत देवताले का निधन 

मेरी किस्मत में यही अच्छा रहा/ कि आग और गुस्से ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा/और मैंने उन लोगों पर यकीन कभी नहीं किया/ जो घृणित युद्ध में शामिल हैं;

Update: 2017-08-15 14:10 GMT

नई दिल्ली।  मेरी किस्मत में यही अच्छा रहा/ कि आग और गुस्से ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा/और मैंने उन लोगों पर यकीन कभी नहीं किया/ जो घृणित युद्ध में शामिल हैं।, अंतर्मन को बेधने वाली इन पंक्तियों के रचयिता,  साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के मशहूर कवि चंद्रकांत देवताले का सोमवार देर नई दिल्ली में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। श्री देवताले एक महीने से बीमार थे।   

देवताले जी का जन्म मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के जौल खेड़ा में 7 नवंबर 1936 को हुआ था। 1960 के दशक में अकविता आंदोलन के साथ उनकी पहचान साहित्य जगत में बनी। लकड़बग्घा हंस रहा है संग्रह से वे काफी चर्चित हुए थे। हिंदी में एम. ए. करने के बाद उन्होंने मुक्तिबोध पर पी. एच. डी. की थी। इंदौर में कालेज में उन्होंने अध्यापन किया, सेवानिवृत्ति के बाद से वे स्वतंत्र लेखन कर रहे थे। रौशनी के मैदान  के उस तरफ,, पत्थर फेंक रहा हूं, हड्डियों में छिपे ज्वार आदि उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। उन्होंने संत तुकाराम और दिलीप चित्रे की रचनाओं का अनुवाद भी किया था। हाल ही में उनकी दो किताबों बर्तोल्त ब्रेख्त की कहानी पर आधारित नाट्य रूपांतरण 'सुकरात का घाव तथा भूखण्ड तप रहा है का लोकार्पण किया गया था।

साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा देवताले जी को माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान भी सम्मानित किया गया। उनकी कविताओं के अनुवाद प्राय: सभी भारतीय भाषाओं में और कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं। देवतालेजी की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में हैं। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। सरल शब्दों में लिखी उनकी कविताओं में अद्भुत संपे्रषणीय क्षमता थी, जो अपने बहाव में पाठक को सहज बहा ले जाती थीं।

माँ ने हर चीज़ के छिलके उतारे मेरे लिए 

देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे 

और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया 

मैंने धरती पर कविता लिखी है 

चन्द्रमा को गिटार में बदला है 

समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया 

सूरज पर कभी भी कविता लिख दूँगा 

माँ पर नहीं लिख सकता कविता!

उनकी एक मार्मिक कविता माँ पर नहीं लिख सकता कविता! के अंश हैं, जो कवि की सूक्ष्मदृषिट, संवेदना और अनुभूति का परिचय देती हैं। उनके निधन पर साहित्य जगत में शोककी लहर दौड़ गई है। देशबन्धु पत्र समूह के प्रमुख संपादक, वरिषठ साहित्यकार ललित सुरजन, व्यंग्यकार व कवि प्रभाकर चौबे, वरिषठ लेखक रमाकांत श्रीवास्तव, भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीला धर मंडलोई, विष्णु खरे, विष्णु नागर, मंगलेश डबराल आदि ने श्री देवताले के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। स्व.देवताले के परिवार में उनकी दो पुत्रियां हैं। उनकी पुत्री अनुप्रिया देवताले प्रसिद्ध वायलिन वादक हैं। 

पैदा हुआ जिस आग से

खा जाएगी एक दिन वही मुझको

आग का स्वाद ही तो

कविता, प्रेम, जीवन-संघर्ष समूचा

और मृत्यु का प्रवेश द्वार भी जिस पर लिखा -

मना है रोते हुए प्रवेश करना

देवताले जी की इन्हीं पंक्तियों के साथ उन्हें हमारी श्रद्धांजलि

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