सरकारी लापरवाही लोगों की जान पर भारी

नवी मुंबई में रविवार को खुले मैदान में 'महाराष्टप्त भूषण' पुरस्कार समारोह आयोजित किया गया था;

Update: 2023-04-19 03:50 GMT

नवी मुंबई में रविवार को खुले मैदान में 'महाराष्टप्त भूषण' पुरस्कार समारोह आयोजित किया गया था। 1995 में शिवसेना और भाजपा की मिली-जुली सरकार ने इसकी शुरुआत की थी। यह महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पुरस्कार है और पहला महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार 1996 में दिया गया था। साहित्य, कला, खेल, विज्ञान, समाज सेवा, पत्रकारिता, लोक प्रशासन और स्वास्थ्य कार्य इन क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को यह पुरस्कार दिया जाता है। इस बार यह पुरस्कार आध्यात्मिक नेता और समाजसुधारक अप्पासाहेब धर्माधिकारी को दिया गया। 2008 में उनके पिता नाना साहेब धर्माधिकारी भी इससे सम्मानित हो चुके हैं। महाराष्ट्र की विभूतियों को सम्मानित करने का यह आय़ोजन रविवार को एक दर्दनाक घटना में तब्दील हो गया।

कार्यक्रम में लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी। खुले मैदान में समारोह चल रहा था और इस दौरान तपती गर्मी और लू की चपेट में आने से 13 लोगों की मौत हो गई, कई अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है। सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में 11 की मौत का ही जिक्र है, लेकिन सोमवार को मृतकों का आंकड़ा बढ़ गया। एक की मौत हो या 11 की या 13 की, एक इंसान के जाने से पूरा परिवार उजड़ने की कगार पर आ जाता है, इस व्यथा से हर मध्यमवर्गीय, निम्नवर्गीय नागरिक परिचित है। खुले मैदान में अपने नेता या उद्धारक को सम्मानित होते देखने के लिए जो लोग बैठे हुए थे, वे अभिजात्य वर्ग के तो नहीं होंगे, यह तय है। अगर होते तो शायद व्यवस्था का स्तर कुछ और होता।

अप्पासाहेब को सम्मानित करने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह आए थे और कार्यक्रम का वक्त दोपहर का रखा गया था। सरकार का कहना है कि अप्पासाहेब से पूछकर यह वक्त रखा गया था। हालांकि शिवसेना सांसद संजय राउत के मुताबिक अमित शाह की सुविधा से कार्यक्रम का वक्त तय किया गया। कारण कुछ भी हो, सच यही है कि गर्म मौसम के बावजूद दोपहर में कार्यक्रम रखने की गैरजिम्मेदारी और लापरवाही दिखाई गई। इस कार्यक्रम के आयोजक हिंदुस्तानी ही थे, विदेशी नहीं, जो उन्हें पता ही न हो कि गर्मी के महीने गर्म प्रदेशों में कितना कहर हर साल बरपाते हैं।

लू के कारण लोगों की मौत होना, गर्मियों के कारण स्कूलों में असमय अवकाश घोषित कर देना, जंगलों में आग लगना, पशु-पक्षियों का प्यास से तड़पना, ऐसी खबरें गर्मी के मौसम में हर साल ही आती हैं। फिर भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। जब कार्यक्रम के लिए मंच तैयार हो रहा होगा, बाकी व्यवस्थाएं की जा रही होंगी, तब भी गर्मी का पता चल ही रहा होगा। लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया होगा, क्योंकि दर्शकों में अधिकतर आम लोग ही शामिल थे और आम जनता की जान की कीमत इस देश में कुछ है ही नहीं। लॉकडाउन के वक्त पैदल चलने मजदूरों की जान की परवाह नहीं की गई, मोरबी कांड में मरने वालों को अब तक इंसाफ नहीं मिल सका है, तो अब महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार समारोह में हुई आपराधिक लापरवाही में किसी को सजा मिलेगी, इसकी उम्मीद करना बेमानी है।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इन मौतों को 'बहुत दुर्भाग्यपूर्ण' बताया। खुद को आटो चलाने वाला बताकर आम आदमी से जुड़े होने का दावा करने वाले श्री शिंदे बताएं कि किस तरह की मौत को वे 'सौभाग्यपूर्ण' मानते हैं। उन्हें पता होना चाहिए एक इंसान की मौत से पूरा परिवार प्रभावित होता है। उनके दुर्भाग्यपूर्ण कहने से किसी का दुख कम नहीं होगा, न ही मृतक के परिजनों को जो पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान उन्होंने किया है, उससे किसी कोई क्षतिपूर्ति होगी। महाराष्ट्र भूषण सम्मान में 25 लाख रुपए सम्मान निधि के तौर पर दिए जाते हैं। हर बार यह कार्यक्रम किसी सभागृह में होता था और कुछ लाख रुपए के खर्च में सारी व्यवस्थाएं हो जाती थीं। लेकिन इस बार 305 एकड़ के खुले मैदान में यह आयोजन हुआ, जिस पर 13 करोड़ रुपए खर्च हुए।

शिंदे सरकार इस बात का जवाब दे कि 25 लाख रुपए की सम्मान राशि और 13 करोड़ रुपए खर्च के बीच के हिसाब-किताब को वह कैसे न्यायसंगत ठहराएगी। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री उदय सामंत का कहना है कि इतने बड़े मैदान को समतल करने और वहां लोगों के लिए सुविधाएं जुटाने में पैसा खर्च हुआ है। सवाल ये है कि ऐसी कौन सी सुविधाएं वहां दी गईं, जो लोगों की जिंदगी बचाने के काम नहीं आ सकी। खबरों के मुताबिक आयोजन स्थल पर छह सौ सहायक, डेढ़ सौ नर्स, और 75 एम्बुलेंस तैनात थीं। लोगों को लाने-ले जाने के लिए 1050 बसें भी थीं।

जब इतना इंतजाम था तो फिर कैसे इतने सारे लोग बीमार पड़ गए। आयोजन पर इतना पैसा खर्च करने के बाद भी खुले मैदान में आयोजित किए गए इस सम्मान समारोह में जनता के लिए न तो पंडाल की व्यवस्था थी, न ही पीने के पानी का पर्याप्त इंतजाम। इसका परिणाम यह हुआ कि सुबह से वहां जमा लाखों लोगों को बिना छांव के कड़ी धूप में बैठना पड़ा। उन्हें न तो पीने का पानी मिला और न अन्य तरह की कोई सहायता। लिहाजा तेज धूप और डिहाइड्रेशन के चलते लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी। श्री धर्माधिकारी के संगठन श्री सदस्य के अनुयायियों के लिए ऑडियो/वीडियो सुविधाएं थीं और गर्मी में पीने का पानी नहीं था, इस हैरतअंगेज़ इंतजाम पर क्या कहा जाए।

13 लोगों की अकाल मौत पर जब विपक्षी दलों के लोग सवाल उठा रहे हैं, तो उन्हें नसीहत मिल रही है कि इस पर राजनीति न की जाए। लेकिन इस हादसे को दुर्भाग्यपूर्ण कहने या कुछ लाख के मुआवजे और हमदर्दी से मृतकों की जान वापस नहीं आ जाएगी। विपक्ष ही नहीं किसी भी दल से जुड़े नेताओं को ऐसे हादसों पर सवाल उठाने ही चाहिए, क्योंकि वे जनता की आवाज उठाने के लिए ही राजनीति में हैं, सरकार की गलतियों को बहाने से ढंकने के लिए नहीं।

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