जीएसपीसी बचाने के लिए दबाव बना रही है सरकार : कांग्रेस
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि तेल आयात पर हजारों करोड़ रुपये बचाने और देश में बड़े पैमाने पर तेल उत्पादन के दावे के साथ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (अब प्रधानमंत्री) ने जिस गुजरात;
नयी दिल्ली। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि तेल आयात पर हजारों करोड़ रुपये बचाने और देश में बड़े पैमाने पर तेल उत्पादन के दावे के साथ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (अब प्रधानमंत्री) ने जिस गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कारपोरेशन (जीएसपीसी) का गठन किया था वह आज दिवालिया होने की कगार पर है और श्री मोदी की प्रतिष्ठा के लिए इस कंपनी को बचाने के लिए सरकार की तरफ से भारी दबाव बनाया जा रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में आयोजित विशेष संवाददाता सम्मेलन में कहा कि श्री मोदी ने तब दावा किया था कि कृष्णा-गोदावरी बेसिन में बड़े पैमाने पर तेल का भंडार है। इसके लिए 15 बैंकों से 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेकर जीएसपीसी का गठन किया गया था। तेल भंडार के शोधन का काम तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने पसंद के लोगों को दिया था।
उन्होंने कहा कि भारी पैसा खर्च होने के बाद इस क्षेत्र में तेल नहीं मिला। कंपनी पर बैंकों का कर्ज बढ़ता गया और वह लौटाने की स्थिति में नहीं रही। सवाल श्री मोदी की प्रतिष्ठा का था, इसलिए सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनी ओएनजीसी को पिछले वर्ष इसके कुछ शेयर बेचे गये। ओएनजीसी ने आठ हजार करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों का लौटा दिया, लेकिन शेष 12 हजार करोड़ रुपये लौटाने में अब जीएसपीसी को दिक्कत आने लगी है। इसलिए यह कर्ज लौटाने का जिम्मा कुछ अन्य सरकारी कंपनियों काे दिया गया है।
श्री रमेश ने कहा कि अब तक कंपनी पर 12 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है और देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को दिवाला तथा ऋण शोधन कानून के तहत कंपनी के भविष्य के बारे में फैसला लेना है। देश के 15 बैंकों से इस कंपनी को ऋण दिलाया गया था, जिसमें सबसे ज्यादा ऋण स्टेट बैंक का है।
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के एक परिपत्र के अनुसार जिन कंपनियों पर बैंकों का 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज बकाया है यदि वे पैसा नहीं लौटा पा रही हैं तो उन्हें नोटिस जारी करके 180 दिन के भीतर दिवालिया घोषित किया जाना है। बिजली क्षेत्र की कुछ कंपनियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस परिपत्र को चुनौती दी और इसकी अवधि दोगुनी करने के लिए दो अगस्त को एक याचिका दायर की है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह याचिका केंद्र सरकार के दबाव में दायर की गयी है और जीएसपीसी को बचाने के लिए संबद्ध पक्षों पर दबाव बनाया जा रहा है।