ललित सुरजन की कलम से- राज्यपाल पद का महत्व?
'यह एक तकनीकी व औपचारिक सच्चाई है कि राज्यपाल राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है और वह केन्द्र व राज्य के बीच संपर्क सेतु का काम करता है;
'यह एक तकनीकी व औपचारिक सच्चाई है कि राज्यपाल राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है और वह केन्द्र व राज्य के बीच संपर्क सेतु का काम करता है। उसे प्रोटोकाल में प्रदेश में सबसे ऊंचा ओहदा हासिल है तथा मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल व मुख्य न्यायाधीश की शपथ ग्रहण जैसी गरिमामय औपचारिकताएं उसके ही द्वारा संपन्न होती है। लेकिन व्यवहारिकता में देखें तो राज्यपाल का सीधा सामना केन्द्रीय गृहमंत्रालय से पड़ता है। यह उसके दायित्वों में शामिल है कि प्रदेश की स्थिति पर वह हर माह गृहमंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भेजे।
राज्यपाल प्रदेश के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति भी होता है एवं अनुच्छेद-5 और 6 वाले राज्यों में उसे कुछ विशेषाधिकार भी हासिल हैं, लेकिन यहां भी व्यावहारिक परिस्थितियां उसे अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने से रोकती हैं। कुलाधिपति होने के नाते वह कुलपतियों की नियुक्ति करता है, लेकिन व्यवहारिकता का तकाजा है कि वह इस बारे में मुख्यमंत्री की इच्छा की अनदेखी न करे अन्यथा अनावश्यक कटुता तथा आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति बनते देर नहीं लगती।
जहां अनुच्छेद-5 लागू है वहां आदिवासी इलाकों का प्रशासन वह सीधा अपने हाथ में ले सकता है, लेकिन वास्तविकता में यह संभव नहीं है। एक मनोनीत राज्यपाल प्रदेश की निर्वाचित सरकार के निर्णयों में आखिर हस्तक्षेप करे भी तो किस हद तक? वह जो अपना मासिक प्रतिवेदन बराए दस्तूर केन्द्रीय गृहमंत्रालय को भेजता है उसका भी हश्र क्या होता है?'
(देशबन्धु में 10 जुलाई 2014 को प्रकाशित)