ललित सुरजन की कलम से- विदेशी मीडिया बनाम प्रधानमंत्री
'सबको पता है कि विदेशी पूंजी निवेशकों और कारपोरेट घरानों को भारत का वर्तमान राजनीतिक माहौल पसंद नहीं आ रहा है;
'सबको पता है कि विदेशी पूंजी निवेशकों और कारपोरेट घरानों को भारत का वर्तमान राजनीतिक माहौल पसंद नहीं आ रहा है। वे चाहते हैं कि भारत रातोंरात उनके मनोनुकूल आर्थिक नीतियां लागू कर दे- जैसे बैंक व बीमा क्षेत्र का पूर्ण निजीकरण, खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी प्रवेश, पेंशन का जिम्मा निजी क्षेत्र को देना आदि। डॉ. सिंह यह सब नहीं कर पा रहे हैं या नहीं कर रहे हैं, इससे विदेशी पूंजीपतियों का कुंठित होना स्वाभाविक है। संभव है कि वे अपनी भड़ास को पूंजी-आश्रित मीडिया के माध्यम से निकाल रहे हों।'
'यूं तो भारत में विदेशी मीडिया के अनेक पत्रकार कार्यरत हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर का भारत के बारे में ज्ञान उथला और एकतरफा है। ऐसे कम ही लोग हैं, जो दूरदराज के इलाकों में जाकर भारत की समग्र तस्वीर देखने की कोशिश कर रहे हों, वरना यादातर तो भारत के महानगरों के अभिजात वर्ग की कॉकटेल पार्टियों या व्यक्तिगत चर्चाओं से ही अपनी कलम के लिए मसाला जुटाते हैं।'
(देशबन्धु में 7 सितम्बर 2012 को प्रकाशित सम्पादकीय)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/09/blog-post_6.html