ललित सुरजन की कलम से- विदेशों में कालाधन
'विदेशों में जमा धन को वापिस लाने की जो मुहिम चल रही है वह मुख्य तौर पर और शायद जानबूझकर, वर्तमान सरकार को कटघरे में खड़ा करती है;
'विदेशों में जमा धन को वापिस लाने की जो मुहिम चल रही है वह मुख्य तौर पर और शायद जानबूझकर, वर्तमान सरकार को कटघरे में खड़ा करती है। ऐसा आभास दिया जा रहा है कि विदेशी बैंकों में यदि भारतीय धन है तो वह कांग्रेस नेतृत्व के चलते है। विपक्ष के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन पर आक्रमण करने का यह एक और अच्छा मौका है, लेकिन विपक्ष से जिस जिम्मेदारी और ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है, उसका यहां अभाव परिलक्षित होता है।
एक तो ज्ञातव्य है कि जिन भारतीयों ने विदेशी बैंकों में पैसा जमा किया है वे एनआरआई अथवा पीआईओ हो सकते हैं और भारत के कानून संभवत: इस मामले में लागू उन पर न होते हों।
दूसरे, राजनीतिक दलों का जो पैसा इस तरह से जमा होगा वह मुख्य रूप से सैन्य सामग्री की खरीद पर मिले कमीशन का होगा, जिसका एक अच्छा-खासा हिस्सा आम चुनावों के समय किसी न किसी तरीके से देश में आता होगा।
तीसरे, अनेकानेक वाणिज्यिक प्रतिष्ठान आयात-निर्यात की प्रक्रिया में विदेशों में गुप्त रूप से लेनदेन करते हैं तथा स्वीट्जरलैण्ड या अन्यत्र जमाधन में बहुत बड़ा हिस्सा इस तरह से बनाया गया होगा। चौथे, भारत ने मॉरीशस तथा कुछ अन्य देशों के साथ दोहरे कराधन से बचने के लिए संधियां की हैं, उसके माध्यम से जो काला धन आज आ रहा है वह पूरी तरह से वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का ही है।
पांचवी बात यह है कि क्या देश के भीतर कालाधन नहीं है और क्या हर रोज देश के भीतर ही कालाबाजारी, जमाखोरी, गबन और घूस के नए-नए प्रकरण रोज सामने नहीं आ रहे हैं! सरकारी एजेंसियों के द्वारा छापे मारे जाते हैं, संपत्तियां जब्त की जाती हैं और फिर चुपचाप कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है।'
(10 फ़रवरी 2011 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/04/4_21.html