जेल में ही रहेंगे कुलदीप सिंह सेंगर, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
उन्नाव रेप केस में सजायाफ्ता कुलदीप सेंगर की आजीवन कारावास की सजा दिल्ली हाईकोर्ट ने निलंबित कर दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है।;
नई दिल्ली। उन्नाव रेप पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेंगर को रिहा न किया जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस के आरोपी कुलदीप सेंगर को नोटिस जारी किया है। सेंगर को यह नोटिस सीबीआई की अर्जी पर दिया गया है। सेंगर से चार हफ्ते में जवाब मांगा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 2017 के उन्नाव रेप केस में एक नाबालिग लड़की के साथ रेप के मामले में बीजेपी से निकाले गए नेता कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सज़ा को सस्पेंड कर दिया गया था।
हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के इच्छुक
तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा, “हम बच्ची के प्रति जवाबदेह हैं।” मेहता ने यह भी बताया कि सेंगर न केवल रेप का दोषी है, बल्कि पीड़िता के पिता की हत्या और अन्य लोगों पर हमले का भी दोषी ठहराया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि फिलहाल हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के इच्छुक हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि आमतौर पर नियम यह है कि अगर व्यक्ति जेल से बाहर है तो कोर्ट उसकी आज़ादी नहीं छीनता, लेकिन इस मामले में स्थिति अलग है क्योंकि सेंगर दूसरे केस में अभी भी जेल में है।
हालांकि इस मामले में कुलदीप सिंह सेंगर की ओर से वकीलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह मीडिया ट्रायल है। सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा, “हम अस्थायी रूप से आदेश पर स्टे लगाने के पक्ष में हैं। यहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता छीनने का सवाल नहीं है क्योंकि आरोपी दूसरे मामले में पहले से ही जेल में है।”
इससे पहले सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलील पेश किया। उन्कहोंने कहा कि ये डरावनी घटना है। ट्रायल कोर्ट ने सेंगर की दोषसिद्धि दो काउंट के आधार पर की थी। बियांड रिसनेबल डाउट के तहत दोषी ठहराया गया। हाई कोर्ट ने गलत फैसला दिया है कि तब के MLA सेक्शन 5(c) POCSO के तहत "सरकारी कर्मचारी" नहीं हैं। CBI ने उस फैसले का हवाला दिया जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि जो भी पब्लिक ऑफिस में है, जैसे सांसद या विधायक, उसे सरकारी कर्मचारी माना जाएगा।
सीजेआई ने एसजी मेहता से पूछा कि क्या आपका तर्क यह है कि अगर पीड़ित नाबालिग है तो आरोपी सरकारी कर्मचारी है या नहीं, यह बात मायने नहीं रखती? मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट ने यह कहकर गलती की कि जब अपराध हुआ था, तब विधायक सेंगर एक पब्लिक सर्वेंट नहीं थे, जिन पर ज़्यादा गंभीर गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट के लिए मुकदमा चलाया जाए। पोस्को प्रावधान कहता है कि जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल, पब्लिक सर्वेंट, या शिक्षण संस्थानों/अस्पतालों के कर्मचारियों जैसे खास व्यक्तियों द्वारा पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट किया जाता है, तो अपराध गंभीर हो जाता है, जिससे कड़ी सजा मिलती है।
यह मामला गंभीर सजा का, पीड़िता की उम्र 16 साल से भी कम थीः तुषार मेहता
सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कोर्ट में यह दलील भी कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी। इस मामले में अपील लंबित है। सीबीआई के वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को निर्विवाद रूप से आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया। धारा 376 91) में न्यूनतम 10 वर्ष और अधिकतम सजा आजीवन कारावास है। तुषार मेहता ने कहा कि धारा 376(2) के तहत न्यूनतम सजा 20 वर्ष है और अधिकतम सजा अभियुक्त के जैविक जीवन के अंत तक कारावास है। पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी, इसलिए यह मामला गंभीर सजा के अंतर्गत आएगा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने किस आधार पर दी थी राहत
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सेंगर सात साल से अधिक कैद में है। उसकी अपील पर सुनवाई में काफी ज्यादा वक्त लग रहा है। सात बार इस मामले में डेट टलती रही। इस मामले में हाईकोर्ट को लगा कि अपील में इतना वक्त लग रहा है, तो ऐसे में सेंगर के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन सेंगर के खिलाफ पीड़िता के पिता की हत्या का मामला है, उसके खिलाफ भी अपील की गई है। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि हाईकोर्ट का ऑर्डर न्यायिक प्रक्रिया के आईने में कितना फिट है।